ह्रस्व स्वर|दीर्घ स्वर|प्लुत स्वर किसे कहते हैं? क्या है बताइए
1] ह्रस्व स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है। उसे ह्स्व स्वर कहते हैं।
ह्स्व स्वर चार होते है:
अ आ उ ऋ
"ऋ" की मात्रा (ृ) के रूप में लगाई जाती है।
एवं उच्चारण "रि" की तरह होता है।
2] दीर्घ स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दोगुना समय लगता है। उस दीर्घ स्वर कहते हैं।
अन्य शब्दों में: स्वरों उच्चारण में अधिक समय लगता है। उसे दीर्घ स्वर कहते हैं।
दीर्घ स्वर सात होते है:
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
दीर्घ स्वर दो शब्दों से मिलकर बनते हैं।
जैसे कि:
आ =[अ +अ]
ई =[इ +इ]
ऊ =[उ +उ]
ए =[अ +इ]
ऐ =[अ +ए]
ओ =[अ +उ]
औ =[अ +ओ]
3] प्लुत स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय यानी तीन मात्राओं का समय लगता है। उसे प्लुत स्वर कहते हैं।
अन्य शब्दों में: जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना समय लगे, उसे "प्लुत" कहते हैं।
इसका चिह्न (ऽ) है।
इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय किया जाता है।
जैसे- सुनोऽऽ, राऽऽम, ओऽऽम्।
हिन्दी में प्रायः प्लुत का प्रयोग नहीं होता।
वैदिक भाषा में प्लुत स्वर का प्रयोग अधिक हुआ है इसे त्रिमात्रिक स्वर कहते हैं।
अं, अः अयोगवाह हैं।
वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले होता है।
अं को अनुस्वार तथा अः को विसर्ग कहा जाता है।
1] ह्रस्व स्वर
जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है। उसे ह्स्व स्वर कहते हैं।
ह्स्व स्वर चार होते है:
अ आ उ ऋ
"ऋ" की मात्रा (ृ) के रूप में लगाई जाती है।
एवं उच्चारण "रि" की तरह होता है।
2] दीर्घ स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दोगुना समय लगता है। उस दीर्घ स्वर कहते हैं।
अन्य शब्दों में: स्वरों उच्चारण में अधिक समय लगता है। उसे दीर्घ स्वर कहते हैं।
दीर्घ स्वर सात होते है:
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
दीर्घ स्वर दो शब्दों से मिलकर बनते हैं।
जैसे कि:
आ =[अ +अ]
ई =[इ +इ]
ऊ =[उ +उ]
ए =[अ +इ]
ऐ =[अ +ए]
ओ =[अ +उ]
औ =[अ +ओ]
3] प्लुत स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय यानी तीन मात्राओं का समय लगता है। उसे प्लुत स्वर कहते हैं।
अन्य शब्दों में: जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना समय लगे, उसे "प्लुत" कहते हैं।
इसका चिह्न (ऽ) है।
इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय किया जाता है।
जैसे- सुनोऽऽ, राऽऽम, ओऽऽम्।
हिन्दी में प्रायः प्लुत का प्रयोग नहीं होता।
वैदिक भाषा में प्लुत स्वर का प्रयोग अधिक हुआ है इसे त्रिमात्रिक स्वर कहते हैं।
अं, अः अयोगवाह हैं।
वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले होता है।
अं को अनुस्वार तथा अः को विसर्ग कहा जाता है।
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