छंद किसे कहते हैं के भेद प्रकार परिभाषा in हिंदी व्याकरण

आज के इस लेख में मैं आपके लिए छंद के बारे में संपूर्ण जानकारी लेकर आया हूं। इसमें मैंने छंद और छंद को अच्छी तरह से बताया है। इसमें छंद किसे कहते हैं और छंद कि परिभाषा कहते हैं। को भी अच्छी तरीके से बताया गया है।
छंद किसे कहते हैं
दोस्तों यदि आप किसी कंपटीशन एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं तो कंपटीशन एग्जाम की में आपको छंद वाले प्रश्न एग्जाम में देखने को अवश्य मिल जाते हैं। और आप उनका जवाब नहीं दे पाते हैं तो आप के नंबरों में कमी हो जाती है इसलिए मेरा यह आपसे कहना है। कि यदि आप छंद को ध्यान पूर्वक पढ़ लेते हैं। तो आप एग्जाम में कम से कम इन प्रकार के प्रश्नों को हल अवश्य कर पाएंगे।

छंद किसे कहते हैं
छंद शब्द " चद " धातु से बना हैं  जिसका अर्थ होता हैं :- खुश करना। हिंदी साहित्य के अनुसार अक्षर ,  अक्षरों की संख्या ,  मात्रा  ,  गणना ,  यति ,  गति से संबंधित किसी विषय पर रचना को छंद कहा जाता हैं । अथार्त निश्चित चरण ,  लय , यति ,  तुक ,  गण ,  गति ,  वर्ण ,  मात्रा ,   से नियोजित पद्य रचना को छंद कहते हैं ।

छंद के निम्नलिखित अंग होते हैं 
  • गति
  • यति
  • तुक
  • मात्रा
  • गण

गति
पद्य के पाठ में जो बहाव होता हैं  ,  उसे गति कहते हैं ं।

यति
पद्य के पाठ करते समय गति को तोड़कर जो विश्राम लिया जाता हैं  ,  उसे यति कहते हैं ं।

तुक
समान उच्चारण वाले शब्दों के प्रयोग को तुक कहा जाता हैं । पद्य सामान्यतः तुकान्त होते हैं ं।

मात्रा
वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता हैं  उसे मात्रा कहते हैं ं।
मात्रा दो प्रकार की होती हैं  1)लघु और 2) गुरु।

ह्रस्व उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा लघु होती हैं  तथा दीर्घ उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा गुरु होती हैं । लघु मात्रा का मान 1 होता हैं  और उसे। चिह्न से प्रदर्शित किया जाता हैं । इसी प्रकार गुरु मात्रा का मान मान 2 होता हैं  ,  और उसे ऽ चिह्न से प्रदर्शित किया जाता हैं ।

गण
मात्राओं और वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिये इसमें तीन वर्णों के समूह को एक गण मान लिया जाता हैं ।

गणों की संख्या 8  हैं :-
यगण (।ऽऽ) ,
मगण (ऽऽऽ) ,
तगण (ऽऽ।) ,
रगण (ऽ।ऽ) ,
जगण (।ऽ।) ,
भगण (ऽ।।) ,  नगण (।।।),
सगण (।।ऽ)

गणों को आसानी से याद करने के लिए एक सूत्र बनाया गया हैं  - यमाताराजभानसलगा।

 सूत्र के पहले आठ वर्णों में आठ गणों के नाम हैं ं। अन्तिम दो वर्ण "ल" और "ग’ लघु और गुरू मात्राओं के सूचक हैं ं। जिस गण की मात्राओं का स्वरूप जानना हो उसके आगे के दो अक्षरों को इस सूत्र से ले लें ,  जैसे "मगण’ का स्वरूप जानने के लिए "मा’ तथा उसके आगे के दो अक्षर- "ता रा’ = मातारा (ऽऽऽ)।

"गण’ का विचार केवल वर्ण वृत्त में होता हैं  मात्रिक छन्द इस बंधन से मुक्त होते हैं ं।

य मा ता रा ज भा न स ल गा
छंद किसे कहते हैं

छंद के प्रकार 

मात्रिक छंद किसे कहते हैं
जिस छंद में मात्राओं की संख्या निश्चित होती हैं  उन्हें मात्रिक छंद कहा जाता हैं । इसके अन्तर्गत  अहीर ,  तोमर ,  मानव ,  अरिल्ल ,  पद्धरि/ पद्धटिका ,  चौपाई ,  हरिगीतिका ,  तांटक ,  वीर या आल्हा ,  पीयूषवर्ष ,  सुमेरु ,  राधिका ,  रोला ,  दिक्पाल ,  रूपमाला ,  गीतिका ,  सरसी ,  सार ,   आते हैं ं।

वर्णिक छंद किसे कहते हैं
वर्णों की गणना पर आधारित छंद वर्णिक छंद कहलाते हैं ं। इस के अन्तर्गत -  प्रमाणिका ,  स्वागता ,  भुजंगी ,  शालिनी ,  इन्द्रवज्रा ,  दोधक; वंशस्थ ,  भुजंगप्रयाग ,  द्रुतविलम्बित ,  तोटक ,  वसंततिलका ,  मालिनी ,  पंचचामर ,  चंचला ,  मन्दाक्रान्ता ,  शिखरिणी ,  शार्दूल विक्रीडित ,  स्त्रग्धरा ,  सवैया ,  घनाक्षरी ,  रूपघनाक्षरी ,  देवघनाक्षरी ,  कवित्त / मनहरण

वर्णवृत
सम छंद को वृत कहते हैं । इसमें चारों चरण समान होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु गुरु मात्राओं का क्रम निश्चित रहता हैं । जैसे - द्रुतविलंबित ,  मालिनी वर्णिक मुक्तक : इसमें चारों चरण समान होते हैं ं और प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या निश्चित होती हैं  किन्तु वर्णों का मात्राभार निश्चित नहीं रहता हैं  जैसे मनहर ,  रूप ,  कृपाण ,  विजया ,  देव घनाक्षरी आदि।

मुक्त छंद
भक्तिकाल तक मुक्त छंद का अस्तित्व नहीं था ,  यह आधुनिक युग की देन हैं । इसके प्रणेता सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' माने जाते हैं ं। मुक्त छंद नियमबद्ध नहीं होते ,  केवल स्वछंद गति और भावपूर्ण यति ही मुक्त छंद की विशेषता हैं ं।
मुक्त छंद का उदाहरण -
वह आतादो टूक कलेजे के करता ,  पछताता पथ पर आता।पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं। एक , चल रहा लकुटिया टेक , मुट्ठी-भर दाने को ,  भूख मिटाने को , मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलाता , दो टूक कलेजे के करता ,  पछताता पथ पर आता।

छंदों के विभिन्न प्रकार 

  1. दोहा 
  2. दोही
  3. सोरठा
  4. रोला
  5. चौपाई
  6. कुण्डलिया
  7. गीतिका (छंद)
  8. हरिगीतिका
  9. कवित्त
  10. सवैया
  11. उल्लाला
  12. बरवै
  13. छप्पय
  14. पीयूष वर्ष
  15. शक्ति (छंद)
  16. मनोरम
  17. विजात
  18. मधुमालती (छंद)
  19. सुमेरु
  20. सगुण (छंद)
  21. शास्त्र
  22. सिन्धु (छंद)
  23. बिहारी (छंद)
  24. दिगपाल (छंद)
  25. सारस (छंद)
  26. गीता
  27. मुक्तामणि
  28. गगनांगना छंद
  29. विष्णुपद
  30. शंकर (छंद)
  31. सरसी
  32. रास (छंद)
  33. निश्चल (छंद)
  34. सार (छंद)
  35. लावणी
  36. वीर (छंद)
  37. त्रिभंगी
  38. कुण्डलिनी
  39. वियोगिनी
  40. प्रमाणिका
  41. वंशस्थ
  42. शिखरिणी
  43. उपजाति
  44. वसंततिलका
  45. इन्द्रवज्रा
  46. उपेन्द्रवज्रा
  47. शार्दूल विक्रीडित

काव्य के अंदर छंद का महत्त्व

छंद में स्थायित्व होता हैं ।
छंद सरस होने के कारण मन को भाते हैं।
छंद से हृदय को सौंदर्यबोध होता हैं ।
छंद मानवीय भावनाओं को झंकृत करते हैं।
छंद के निश्चित लय पर आधारित होने के कारण वे सुगमतापूर्वक कण्ठस्थ हो जाते हैं।


व्याकरण
इस लेख में मैंने जो हिंदी व्याकरण के छंद के बारे में और छंद की परिभाषा पूरी तरह बताई हैं  जो कि छंद के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । और हिंदी व्याकरण छंद के रिलेटेड महत्वपूर्ण बहुत सारे टॉपिक को जो कि मैंने इसमें सभी को कवर किया हैं । उस और उनको आप उनके ऊपर क्लिक करके भी देख सकते हैं ं। यदि आलेख आपको अच्छा लगा हो तो कृपया नीचे कमेंट अवश्य करके जाए। और साथ ही साथ अपने दोस्तों को शेयर भी करें और राइट साइड के बैल आइकन को अवश्य दबाएं। ताकि हमारी नहीं पोस्ट की जानकारी आपको तुरंत मिल सके।

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