[**रस**] रस क्या है । रस के भेद । प्रकार । स्थायी भाव । परिभाषा

रस क्या है । रस के भेद, प्रकार, स्थायी भाव, परिभाषा, अंग, उदाहरण सभी

इस लेख में में आपको रस से संबंधित बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने जा रहा हूं। इसमें मैंने रस किस कहते है ।रस के भेद और प्रकार के साथ साथ इसमें इनके स्थाई भाव को भी अच्छी तरह से बताया है।हिंदी में । इस लेख को पूरा ध्यान से पड़े ।

रस क्या है । रस के भेद । प्रकार । स्थायी भाव । परिभाषा । अंग । उदाहरण

रस किस कहते है यह क्या हैं

रस, छंद और अलंकार काव्य रचना के आवश्यक अव्यय हैं।
रस का शाब्दिक अर्थ - निचोड़ है। 
"रस वह है जो काव्य में आनन्द आता है वह ही काव्य का र-स है काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है रस काव्य की आत्मा है। "


संस्कृत में कहा गया है कि "रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्" जिसका मतलब " रसयुक्त वाक्य ही काव्य है"।
रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। 
रस आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है। 
यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है। 
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हिंदी व्याकरण (hindi Grammar) 
रस का सम्बन्ध 'सृ' धातु से माना गया है। जिसका अर्थ है - जो बहता है, अथवा जो भाव रूप में हृदय में बहता है उसी को रस कहते है।

रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण तत्व' कहां जाता है।
रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय " भरत मुनि " को जाता है। उन्होंने अपने नाट्यशास्त्र में 8 प्रकार के रसों का वर्णन किया है। भरतमुनि ने लिखा है- विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। 
वात्सल्य रस को दसवाँ एवं भक्ति को ग्यारहवाँ रस भी माना गया है। वत्सल तथा भक्ति इनके स्थायी भाव हैं।भक्ति रस को 11वां रस माना गया है . विवेक साहनी द्वारा लिखित ग्रंथ "भक्ति रस- पहला रस या ग्यारहवाँ रस" में इस रस को स्थापित किया गया है।

रस के भाग 

रस को दो भागों में बांटा गया है

  1. अंग
  2. प्रकार
अंग- रस के अंगों में वे माध्यम आते हैं, जिन्होने रस का निर्माण किया हो या जिनमें रस का संग्रहण किया जा रहा हो। 

प्रकार :- रस के प्रकार में वे सभी भाव आते हैं, जो इस को सुनने के बाद उत्पन्न होते हैं। 

रस के अंग 

रस को प्रायः चार प्रकार के अंगों में बांटा गया है-
  1. विभाव 
  2. अनुभाव 
  3. संचारी भाव 
  4. स्थायीभाव 
रस के प्रकार और उनके स्थायी भाव

रस के प्रकार और उनके स्थायी भाव

रस के ग्यारह भेद प्रकार होते है- 
  1. शृंगार रस             - रति
  2. हास्य रस             - हास
  3. करूण रस           - शोक
  4. रौद्र रस               - क्रोध
  5. वीर रस               - उत्साह
  6. भयानक रस        - भय
  7. बीभत्स रस         - जुगुस्ता या घृणा
  8. अदभुत रस         - विशम्या या आश्चर्य
  9. शान्त रस             - निर्वेद
  10. वत्सल रस           - वात्सल्य
  11. भक्ति रस            - अनुराग/देव रति

सभी रस के वर्णन उदाहरण सहित

1) श्रृंगार रस  

नायक और नायिका के सौंदर्य तथा प्रेम संबंधी वर्णन जिस रस में किया जाता है वह श्रंगार रस हैं। श्रृंगार रस को रसराज या रसपति कहा गया है। इस रस का स्थाई भाव रति होता है। इसके अंतर्गत सौन्दर्य,सुन्दर वन, वसंत ऋतु, प्रकृति, पक्षियों का चहचहाना आदि के बारे में वर्णन किया जाता है।

उदाहरण :-
कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात,
भरे भौन में करत है, नैननु ही सौ बात,


श्रंगार के दो भेद होते हैं

संयोग श्रृंगार
जिस रस में नायक और नायिका के परस्पर मिलन, वार्तालाप, स्पर्श, आलिगंन आदि का वर्णन होता है, उस रस को संयोग शृंगार रस कहते है।
उदाहरण :-
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नहि जाय।।

वियोग श्रृंगार 
जिस रस में नायक व नायिका का परस्पर प्रबल प्रेम हो लेकिन मिलन न हो अर्थात् नायक और नायिका के वियोग का वर्णन हो रहा हो उस जगह पर वियोग रस होता है। वियोग का स्थायी भाव भी "रति" होता है।
इसका उदारहरण :-
निसिदिन बरसत नयन हमारे,
सदा रहति पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे॥


2) हास्य रस

हास्य रस एक प्रकार से होता मनोरंजक है।  हास्य रस का स्थायी भाव हास है। हास्य रस नव रसों में स्वभावत: सबसे अधिक सुखात्मक रस प्रतीत होता है। इसके अंतर्गत वेशभूषा, वाणी आदि कि विकृति को देखकर मन में जो प्रसन्नता या आनंद का भाव उत्पन्न होता है, उससे हास की उत्पत्ति होती है इसे ही हास्य रस कहते हैं।


हास्य रस दो प्रकार का होता है -: 

1) आत्मस्थ और 2) परस्त
आत्मस्थ हास्य केवल हास्य के विषय को देखने मात्र से उत्पन्न होता है , जबकि दूसरों को हँसते हुए देखने के लिए परस्त हास्य रस प्रकट होता है।  

इसका उदाहरण :-
बुरे समय को देख कर गंजे तू क्यों रोय। 
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय।

3) करुण रस

इस रस का  स्थायी भाव शोक है। करुण रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है उसे करुण रस कहते हैं ।
अर्थात् 
किसी प्रिय व्यक्ति के चिर विरह या मरण से जो शोक उत्पन्न होता है उसे करुण रस कहते है।
या फिर
जिस रस में पुनः मिलने कि आशा समाप्त हो जाती है करुण रस कहलाता है। 

इसमें निःश्वास, छाती पीटना, रोना, भूमि पर गिरना आदि का भाव व्यक्त होता है।
उदाहरण के लिए :-

रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के।
ग्लानि, त्रास, वेदना - विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके।।

4) वीर रस

वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है। जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है, तो उसे वीर रस कहा जाता है। 
इस रस के अंतर्गत जब युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना विकसित होती है। उसे वीर रस कहते हैं। इसमें शत्रु पर विजय प्राप्त करने, यश प्राप्त करने आदि प्रकट होती है। 

उदाहरण -

बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।।


भरतमुनि ने वीर रस के तीन प्रकार बताये हैं

1)दानवीर, 
2)धर्मवीर, 
3)युद्धवीर

5) रौद्र रस

रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। 
जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है। उस समय वहां पर रौद्र रस होता हैं।इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शास्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं।

उदाहरण के लिए :-
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे।
सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे॥

संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खड़े॥ 


6) अद्भुत रस

इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है।
जब किसी व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव पैदा हो जाता है, उसे ही अदभुत रस कहा जाता है। इस रस में रोमांच, औंसू आना, काँपना, गद्गद होना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होते हैं।

उदाहरण के लिए :-
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया।
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया॥ 

7) भयानक रस

भयानक रस का स्थायी भाव भय होता है।
जब किसी भयानक या बुरे व्यक्ति या वस्तु को देखने या किसी दुःख की घटना का स्मरण करने से मन में जो विचार उत्पन्न होता है, उसे भय कहते हैं। उस भय के पैदा होने से जिस रस कि उत्पत्ति होती है, उसे ही भयानक रस कहते हैं। इस रस अंतर्गत कम्पन, पसीना छूटना, मुँह सूखना, चिन्ता जैसे भाव उत्पन्न होते हैं।

इसका उदाहरण 
अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल।
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार ॥ 

भयानक रस के दो भेद हैं 
स्वनिष्ठ
परनिष्ठ

8)बीभत्स रस

इसका स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा होता है ।घृणित वस्तुओं या घृणित व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में मन में विचार करने या उनके सम्बन्ध में सुनकर मन में पैदा होने वाली घृणा ही वीभत्स रस है। 

साधारण शब्दों में वीभत्स रस के लिए घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक होता है।

उदाहरण के लिए -
आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते,
शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते,
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे,
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सैम बहते बहते बेटे,

9) शान्त रस

जिस रस में मोक्ष और आध्यात्म की भावना उत्पत्ति होती है, उस को शान्त रस नाम देना सम्भाव्य है। इसका स्थायी भाव निर्वेद होता है।

शान्त रस साहित्य में प्रसिद्ध नौ रसों में अन्तिम रस माना जाता है - "शान्तोऽपि नवमो रस:।" इसका कारण यह है कि भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में,  जो रस विवेचन का आदि स्रोत है,  नाट्य रसों के रूप में केवल आठ रसों का ही वर्णन मिलता है।

उदाहरण -
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं,
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।

10) वत्सल रस

माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है। यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है।इसका स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है।

उदाहरण -
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति

11) भक्ति रस

भक्ति रस में ईश्वर कि अनुरक्ति तथा अनुराग का वर्णन होता है। अर्थात इस रस में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन किया जाता है। इसका स्थायी भाव देव रति है।
उदाहरण -
अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई
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व्याकरण
रस हिंदी
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