यकृत के कार्य देखे

इस पोस्ट में मैंने यकृत के बारे में जानकारी दी है और इसके क्या कार्य होते है

यकृत या जिगर या कलेजा ( Liver)

यकृत(liver)क्या है । इसके कार्य और रोग के लक्षण क्या
यकृत(liver)क्या है । इसके कार्य और रोग के लक्षण

शरीर का एक अंग है जो केवल कशेरुकी प्राणियों में पाया जाता है। इसका कार्य विभिन्न चयापचयों को detoxify करना, प्रोटीन को संश्लेषित करना, और पाचन के लिए आवश्यक जैव रासायनिक बनाना है मनुष्यों में, यह पेट के दाहिने-ऊपरी हिस्से में डायाफ्राम के नीचे स्थित होता है और मानव शरीर की शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त का निर्माण करती है। पित्त, यकृती वाहिनी उपतंत्र तथा पित्तवाहिनी द्वारा ग्रहणी तथा पित्ताशय में चला जाता है। पाचन क्षेत्र में अवशोषित आंत्ररस के उपापचय का यह मुख्य स्थान है। इसके निचले भाग में नाशपाती के आकार की थैली होती है जिसे पित्ताशय कहते है। यकृत द्वारा स्त्रावित पित्त रस पित्ताशय में ही संचित होता है। चयापचय में इसकी अन्य भूमिकाओं में ग्लाइकोजन भंडारण का विनियमन, लाल रक्त कोशिकाओं का अपघटन और हार्मोन का उत्पादन शामिल है।यकृत शरीर की सबसे बड़ी एवं व्यस्त ग्रंथि हैं जो कि हल्के पीले रंग पित्त रस का निर्माण करती हैं यह भोजन में ली गई वसा के अपघटन में पाचन क्रिया को उत्प्रेरक एवं तेज करने का कार्य करता हैं।
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इसका एकत्रीकरण पित्ताशय में होता हैं यकृत अतिरिक्त वसा को प्रोटीन में परिवर्तित करता हैं एवं अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में परिवर्तित करने का भी कार्य करता हैं। जो कि आवश्यकता पढ़ने पर शरीर को प्रदान किए जाते है।

वसा के पाचन के समय उतपन्न अमोनिया (विषैला तरल पदार्थ) को यकृत यूरिया में परिवर्तित कर देता हैं। यकृत पुरानी एवं क्षति ग्रस्त लाल रक्त कणिकाओं को मार देता हैं।
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यकृत(liver)क्या है, इसके कार्य और रोग के लक्षण
यकृत(liver)क्या है । इसके कार्य और रोग के लक्षण

स्वाभावित लक्षण

यह लालपन लिए भूरे रंग का बड़ा मृदु, सुचूर्ण एवं रक्त से भरा अंग है। मृदु होने से अन्य अंगों के दाब चिन्ह इस पर पड़ते हैं, फिर भी यह अपना आकार बनाए रखता है। यह श्वासोछवास के साथ हिलता रहता है। यकृत के दो खंड होते है, इनमें दक्षिण खंड बड़ा होता है। यकृत पेरिटोनियम गुहा के बाहर रहता है। यकृत उदरगुहा में सबसे ऊपर डायाफ्राम के ठीक नीचे, विशेष रूप से दाहिनी ओर रहते हुए, बाईं ओर चला जाता है। स्वाभाविक अवस्था में पर्शकाओं के नीचे इसे स्पर्श नहीं किया जा सकता।

यकृत का स्वरूप

यह पाँच तलवाले नुकीला भाग वाम ओर रहता है। अन्य चार तल ऊर्ध्व, अध:, पूर्व तथा पश्च कहलाते हैं। इसका अध: तल चारों ओर पतले किनारे से घिरा रहता है तथा उदर गुहा के अन्य अंग इस तल से संबद्ध रहते हैं।

माप एवं भार

इसकी दक्षिण-बाम लंबाई 17.5 सेंमी0, अध: ऊँचाई 16 सेंमी तथा पूर्व-पश्च चौड़ाई 15 सेंमी होती है। इसका भार शरीर के भार का 1/50 भाग के लगभग, प्राय: 1,500 ग्राम से 2,000 ग्राम तक होता हैं। शरीर के भार से इसके भार का अनुपात स्त्री पुरूषों में एक ही होता है, परंतु वय के अनुसार बदलता है। बालकों में इसका भार शरीर के भार का 1/20 भाग होता है।

पृष्ठ भाग


दक्षिण पृष्ठ उत्तल और चौकोर होता है। यह डायाफ्रॉम से संबद्ध रहता है, जो इसे दक्षिण फुप्फुसावरण और छह निचली पर्शुकाओं से विलग करता है।


उर्ध्व पृष्ठ


यह दोनों ओर उत्तल तथा मध्य में अवतल होता है। यह डायाफ्रॉम द्वारा दोनों फुफ्फस, फुप्फुसावरण तथा ह्रदयावरण से विलग हो जाता है।

अग्र पृष्ठ

यह त्रिभुजाकार होता है। त्रिभुज का आधार दाहिने होता है। इसके सामने उदरीय ऋजु पपेशियाँ उनका आवरण उदर सीवनी तथा हँसियाकार स्नायु रहते हैं।

अधपृष्ठ

यह उत्तलावतल होता है। यह दक्षिण वृक्क, दक्षिण उपवृक्क,वृहदांत्र दक्षिण बंक (Right flexure),पक्वाशय का द्वितीय भाग, पित्ताशय तथा आमाशय से संबद्ध रहता है। ये अंग प्राय: इस पर अपना खाता सा बना लेते हैं।

निर्वाहिका यकृत

यह अनुप्रस्थ दिशा में 5 सेंमी लंबा खाता है। यह यकृत के अध: तल पर रहता है। इसके दोनों ओष्ठ पर लघुता संलग्न रहता है। इसमें ये यकृत् धमनी, निर्वाहिका शिरा एवं नाड़ियाँ यकृत् में प्रवेश करती हैं संयुक्त यकृत् वाहिनी और लसिका वाहिनियाँ बाहर निकलती हैं।

पश्च पृष्ठ

यह सामने वक्र बनाते हुए रहता है। दाहिने डायाफ्राम द्वारा दक्षिण पर्शुकाआं, दक्षिण फुप्फुस और उसके फुप्फुसावरण से विलग किया जाता है तथा दक्षिण अधिवृक्क से संबद्ध रखता है। अध: महाशिरा इसमें लंबी खात बनाते हुए जाती है। इस खात के वाम भाग में दक्षिण यकृत खंड का एक और खंड है, जिसे पुच्छिल खंड कहते हैं, जो महाधमनी के वक्षीय भाग डायाफ्राम द्वारा विलग किया जाता है। पुच्छिल खंड वाम खंड से एक विदर द्वारा अलग किया जाता है, जिसमें शिंरा स्नायु रहता है। इस स्नायु विदर के वाम और वाम खंड के पश्चिम पृष्ठ पर ग्रसिका खाता रहता है।

पेरिटोनियम के द्विगुणित पर्त इसके स्नायु बनाते हैं। ये स्नायु हैं:

चक्रीय (coronary),हँसियाकार (falciform),गोल (teres),सिरा,

वाम एवं दक्षिण त्रिकोण (triangular) स्नायु तथालघुवपा (lesser omentum)।

पुच्छिल खंड

यह काम ओर शिरा स्नायु के विदार, दक्षिण और अध: महाशिरा विदार ओर निर्वाहिका यकृत के मध्य से होता हुआ दक्षिण खंड से जुडा रहता है, पुच्छिल प्रवर्ध (Caudatte process) कहते हैं। इसके वाम और पुच्छिल खंड का नुकीला भाग अंकुरक प्रवर्ध कहलाता (Papillary process) हैं।

चतुरस्त्र खंड

यकृत अध:पृष्ठ पर दिखाई देता है। इसके वाम और तंत्र स्नायु विदर तथा दक्षिण ओर पित्ताशय खुला रहता है।

यकृत स्नायुओं, उदरीय अन्त: दाब, रक्त वाहिनियों तथा वायुमंडलीय दाब के कारण अपने स्थान पर स्थित रहता है।


रक्तवाहिनियाँ एवं नाड़ियाँ


1. यकृत धमनी उदरगुहा (coeliac) धमनी की शाखा है।

निर्वाहिका शिरा- पाचन तंत्र से पाचित अन्नरसयुक्त रक्त लाती है।

यकृत शिराए- रक्त को अध: महाशिराएँ ले जाती है।

लसिकावाहिनियाँ- ये यकृत शिराओं और निर्वाहिका शिरा के साथ जाती हैं। यकृत की अनुंपी तथा परानुकंपी तंत्रिकाएँ सीलक जाती तथा वेगस तंत्रिका से आती हैं।

कार्य

ग्लूकोज से बनने वाले ग्लाइकोजन (शरीर क लिये इन्धन) को संग्रहित करना। आवश्यकता होने पर, ग्लाइकोजन ग्लूकोस में परिवर्तित होकर रक्तधारा में प्रवाहित हो जाता है।

पचे हुए भोजन से वसाओं और प्रोटीनों को संसिधत करने में मदद करना।

रक्त का थक्का बनाने के लिये आवशक प्रोटीन को बनाना।

विषहरण (डीटॉक्सीफिकेशन)

भ्रुणिय अवस्था में यह रक्त (खून) बनाने का काम भी करता है।

bile salt और bile pigment का स्रवण करता है!

रक्त से bilirubin को अलग करता है.

गैलेक्टोज को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है.

कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन को वसा में परिवर्तित करता है .

antibody और antigen का निर्माण करता है.


यकृत और पित्ताशय के

यकृत शरीर में स्थित, सबसे बड़ी ग्रंथि है। इसका अधिकांश उदरीय कोटर के ऊपरी दाएँ भाग में स्थित है। इसका भार 1.2 से 1.4 किलोग्राम के लगभग होता है। यकृत दो प्रमुख पालियों (lobes), दाहिने और बाएँ, में विभक्त है। ये पालियाँ अनेक पालियों में बँटी हुई हैं। योजी ऊतक (connective tissue) से समूचा यकृत घिरा हुआ है।

पित्ताशय नाशापाती के आकार की, 3-4 इंच लंबी और एक इंच, या इससे कुछ चोडी, थैली होती है। यह यकृत की सतह के नीचे होती है और उससे ऐरियोला (areola) ऊतकों द्वारा जुड़ी होती है।

शरीररचना विज्ञान
यकृत-पालिकाएँ (lobules), जो यकृत की शारीरीय (anatomical) इकाइयाँ हैं, यकृत-कोशिकाओं के बाहृा विकिरणकारी स्तंभों से बनी होती हैं। इसमें छोटी नलिकाओं (यकृती वाहिकाओं, निर्वाहिका शिरा और यकृतधमनी) के तीन पृथक् समूह होते हैं, जो केंद्रीय शिरा के चारों ओर व्यवस्थित होते हैं।

कार्य

यकृत शरीर के अत्यंत महत्वपूर्ण अंगों में से है। यकृत की कोशिकाएँ आकार में सूक्ष्मदर्शी से ही देखी जा सकने योग्य हैं, परंतु ये बहुत कार्य करती हैं। एक कोशिका इतना कार्य करती हैं कि इसकी तुलना एक कारखाने से (क्योंकि यह अनेक रासायनिक यौगिक बनाती है), एक गोदाम से (ग्लाइकोजन, लोहा और बिटैमिन को संचित रखने के कारण), अपशिष्ट निपटान संयंत्र से (पिपततवर्णक, यूरिया और विविध विषहरण उत्पादों को उत्सर्जित करने के कारण) और शक्ति संयंत्र से (क्योंकि इसके अपचय से पर्याप्त ऊष्मा उत्पन्न होती है) की जा सकती है।

पित्ताशय उस पित्त को सांद्र और संचित करता है, जो उसमें यकृतवाहिनी और पित्ताशय वाहिनी द्वारा प्रविष्ट होता है। जब उदर और आँतों में पाचन होता रहता है, तब पिताशय संकुचित होता है, जिससे सांद्रित पित्तग्रहणी (duodenum) में निष्कासित हो जाता है।

पीलिया

रक्त में पित्तारूण (bilirubin) के आधिक्य से यह रोग होता है, जो नेत्र श्लेष्मला (conjuncttiva) और त्वचा के पीलेपन से प्रकट होता है। पीलिया सर्वप्रथम नेत्रश्लेष्मला में और फिर क्रमश: चेहरे, गर्दन, शरीर और अंगों में प्रकट होता है। मोटे तौर पर तीन शीर्षकों में इसका वर्गीकरण किया जा सकता है:

(1) अवरोधक (obstructive),

(2) विषाक्त (toxic) और संक्रामक (जिसे अब यकृत-कोशिकीय (hepato-cellular) कहते हैं) तथा

(3) हीमोलिटिक (haemolytic)।

खुजली बहुधा होती है, जो त्वचा की संवेदी तंत्रिकाओं (sesitive nerves) में पित्त के घटकों से होनेवाली उत्तेजना (irritation) से होती है। पित्त लवण धारण (retention) के कारण रोग की प्रारंभिक अवस्था में नाड़ी मंद पड़ जाती है। भोजन में अनिच्छा, भार में कमी, पेशियों में दुर्बलता की शिकायत हाती है। पित्त के कारण बृहदांत्र की पीड़ा के आक्रमण अनेक अनेक रूप में होते हैं। उदाहरणार्थ, ऊपरी चतुर्तांश में दाईं ओर दबाव या, भराव का विकीर्ण (diffuse) संवेदन, या, लाक्षणिक (typical) उदर पीड़ा हो सकती है, या पेट में मरोड़ और उदरीय भिक्ति में स्पर्शासहायता (tenderness) हो सकती है। हल्का, या तेज ज्वर हो सकता है, जिसका कारण होता है यकृत कोशिकाओं को परिगलन (necrosis), या स्वत:लयन (autolysis) और सारणियों में आनुषंगिक संक्रमण। यकृत में संश्लिष्ट होनेवाले विटामिन 'के' (k) की कमी से कभी से कभी श्लेष्मझिल्लियों (mucusmembreanes) से, खासतौर से नाक और मसूड़ों से, रक्तस्राव (haemorrhage) हो सकता thenहै और उनमें परप्यूरा की दशा उत्पन्न हो सकती है।

यकृत परिगलन

इस रोग के प्रधान लक्षण, यकृत कोशिकाओं का तीव्र परिगलन और यकृत की कोशिकाओं के स्वत:लयन, के कारण यकृत की आकृति का सिकुडना तथा पीलिया, ज्वर और संमूर्च्छा से प्राय: जीवन का अंत होता है। तीव्र और उपतीव्र यकृतपरिगलन यकृत की कोशिकाओं के तीव्र विषाक्तन से होते हैं। यकृत की कोशिकाओं के कोशिकांतर किण्व (intercellular ferments) मुक्त होते हैं और स्वत:लयन उत्पन्न करते हैं। पीलिया की पहली अवस्था में ज्वर की बेचैनी, वमन, कब्जियत और पेशियों में पीड़ा होती है। दूसरी अवस्था में यकृत की खराबी के कारण आकस्मिक तंद्रालुता, शिरोवेदना, दीप्तिभीति (photophobia), बेचैनी, संज्ञाहीनता (delirium) और उन्मादजन्य लाक्षणिक रोना चीखना प्रारंभ होता है। पेशियों के स्फुरण (twitching) और ऐंठन से रोगी उग्र हो उठता है। अंतत: सम्मुर्छा और उद्दीप्त श्वसन होता है तथा मलमूत्र का संयम छूट जाता है।

यकृत का सूत्रण रोग
यकृत का सूत्रण रोग यकृत की वह अवस्था है जिसमें नये रेशेदार ऊतकों के विकास से यकृत कठोर होने लगता है। इसके दो प्रधान कारण हो सकते हैं, जिनसे अधिकांश, या सभी यकृत सूत्रणरोग की व्याख्या हो जाती है:

(1) वाइरस, रोगाणु संक्रमण या विषाक्त पदार्थों से यकृत कोशिकाओं का सीधे क्षतिग्रस्त (direct damage) होना तथा

(2) आहार दोष, जैसे प्रोटीन की कमी और ऐल्कोहॉल के आधिक्य से अपभ्रष्ट (degenerate) होकर मर जाती हैं। बढ़े हुए कठोर यकृत, प्लीहा की अपवृद्धि, या अल्प पीलिया से रोग का निदान करना संभव हो जाता है।

यकृत का केंसर

इसकी वृद्धि निम्नलिखित क्रम से होती है:

प्राथमिक वृद्धि

यकृत के कैंसर की प्राथमिक वृद्धि यकृत कोशिकाओं, ओर कभी कभी पित्तवाहिनी कोशिकाओं, में होती है। यकृत् कोशिकाओं में होनेवाले कैंसर को हेपैटोमा ओर पित्तवाहिनी कोशिका में होनेवाले कैंसन को कोलैंगिऔम कहते हैं। ये दोनों प्राय: सूत्रणरोगग्रस्त यकृत में होते हैं। सूत्रण रोग से ग्रस्त रोगियों के लगभग 7 प्रतिशत में प्राथमिक केंसर पाया जाता है।

द्वितीयक वृद्धि

कैंसर के कारण यकृत कोशिकाएँ यकृत से दूर अंत:संचरित (infiltrated) हो जाती हैं। और इनसे वक्ष, उदर, बृहदांत्र और गर्भाशय का कैंसर हो सकता है। यकृत् असामान्य रूप से बढ़कर कठोर हो जाता है। 50 प्रतिशत रोगियों में पीड़ा, प्रगामी तथा स्थायी पीलिया और जलोदर (ascites) विद्यमान रहता है। शरीर क्षीणता और भार की कमी होने लगती है। रोगी की मृत्यु अवश्य होती है।

यकृत का प्रदाह

यकृतशोथ लागू हो सकता है, जो यकृत क कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने से होते हों। क्षतिग्रस्त होने के कारण रासायनिक, भौतिक, तथा जैवाणुक और प्रोटोजाआ, या विषाणु हो सकते हैं। यकृत शोथ में केवल यकृत के अपकर्षी परिवर्तन ही नहीं आते, जो उपर्युक्त कारकों के कारण होते हैं, अपितु उसमें अभिक्रियात्कत (reaction) और क्षतिपूर्ति वाले प्रतिकार्य भी आते हैं। सब रोगियों में ज्वर और पीलिया सामान्य रूप से पाया जाता है।

आजकल यह मान लिया जाता है कि यकृत शोथ का परिवर्तित लक्षण पीलिया है। यकृत शोथ के अंतर्गत जो अनेक विक्षोभ (upsets) आते हैं, उनमें संक्रामी यकृत शोथ का उल्लेख करना आवश्यक है। यकृत् शोथ के अधिकांश रोगियों को पीलिया (icterus) नहीं होता। लाक्षणिक रूपरेखा प्राय: तीन शीर्षकों में प्रस्तुत की जाती है: (1) प्राथमिक अवस्था, (2) स्पष्ट अवस्था, या पीलिया का काल तथा (3) उपशमन (convalescence) काल। यह रोग ज्वर और अन्य लक्षणों के साथ अचानक आक्रांत कर देता हे।

पिताशय का प्रदाह

यह स्ट्रेप्टोकॉकस ई. कोली (E. coli), या बी. टाइफोसस (B. Typhhosus) जीवों की संक्रमण क्रिया के फलस्वरूप होता है। लगभग 40 वर्ष की अवस्थावाली मोटी स्त्रियाँ ही अधिकांश इस रोग का शिकार होती हैं। पर सभी उम्र के पुरूषों में यह रोग हो सकता है। साधारणत: रोगी नाभिप्रदेश (umblicus) में पीड़ा की शिकायत करता है, जो फैलकर दक्षिण अधेपास्मिक प्रदेश (ypochondriac region) तक चली जाती है। मतली, वमन और ज्वर की अनुभूति होती है। नाड़ीस्पंद सामान्यत: बढ़ जाता है। यदि उपर्युक्त प्रदेश में हल्का दबाब डाला जाय और रोगी से लंबी साँस खिंचवाई जाय, तो पित्ताशय स्पर्शपरीक्षक उँगलियों तक उतर आएगा और प्रदाह होने पर रोगी को इतना दर्द होगा कि वह साँस तोड़ देगा।

अश्मरी या पथरी

अधेड़ स्त्रियों के पित्ताशय और पित्तीय मार्ग में अश्मरी हो जाती है। यह उनेक प्रकार की हाती है। रोग क्रमश: अग्निमांद्य (dyspepsia) और उदरवायु (flatulence) की शिकायत करने लगता है। वह कुछ विशेष खाद्य, खासकर विशेष खाद्य, खासकर वसीय पदार्थों, को खाने में असमर्थता प्रकट करता है, इसे खाने पर उसे मतली, भारीपन और अधिजठर (epigastrium) में पीड़ा होती है। प्राय: अधापर्शुक वेदना (subcostal pain) का नियतकालिक आक्रमण होता है, जो कंधें तक फैल सकता है। पित्तीय बृहदांत्र में पत्थर को बाहर निकालने के प्रयास में होनेवाली पीड़ा सबसे कष्टप्रद होती है। यह अतिशय यंत्रणादायक पीड़ा प्राय: आधी रात को अकस्मात् प्रारंभ होती है ओर कुछ समय रहकर एकाएक बंद भी हो जाती है।

पित्ताशय और पित्तवाहिनी का कैंसर- यह रोग बहुत विरल होता है। पुरूषों की अपेक्षा 50 वर्ष की अधेड़ स्त्रियों में इसकी संभावना तिगुनी रहती है। 75 प्रतिशत रोगियों में कमी पर रक्तक्षीणता के अभाव के साथ पित्ताशय के रोग की बारंबारता के उदाहरण मिलते हैं। उदर के ऊपरी, दाएँ, अर्धभाग में स्थायी पीड़ा, जो दहिने अंसफलक क्षेत्र (scapular regtion) की ओर बहुधा फैलती जाती है, बनी रहती है। उदरवायु, मतली, वमन, आदि वामान्य लक्षण हैं। रोगी की मृत्यु प्राय: हो जाती है।

रोकथाम एवं उपचार

यकृत और पित्ताशय के रोगों की रोकथाम और उपचार निम्नलिखित है:

रोकथाम

रोकथाम का प्रधान साधन वैयक्तिक वृत (personol hygiene) पर ध्यान और सामान्य सफाई है। जठरांत्र शोथतथा अनिदानित ज्वर रोगियों के संपर्क में आनेवालों, तथा महामारी काल में सभी के लिये, आहार और सफाई के सावधानियों का पालन परमावश्यक है। गामाग्लोबिन का उपयोग कुछ सुरक्षा प्रदान करता है। पहने से ही प्रोटीन और पोषाहारों का पर्याप्त मात्रा में ग्रहण रोग की भयंकरता को कम करने में महत्वपूर्ण सिद्ध होता है।

रूग्णावस्था में रोगी को सदा लिटाए रखना चाहिए। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीनयुक्त आहार रोगी को आरंभ से ही स्वच्छंदता से खिलाना चाहिए। आहार में वसा कम रहनी चाहिए। यकृत रोगों के उपचार में ऐमिनो अम्ल तथा विटामिनों का मौखिक, या पेशी आभ्यंतर द्वारा, सेवन रोग को कम करता है।

उपचार

चिकित्सा

यकृत रोगों में रक्तस्राव प्रवृति के लिये विटामिन सी और के, पित्तीय प्रतिरोधि (antiseptic) के रूप में हेक्सामिन, तथा पित्तीय पथ के संप्रवाह के लिये मैग सल्फ और सोडा सल्फ प्रयुक्त करते हैं। प्रतिश्रोध शक्ति के कम हो जाने के कारण यकृत को सुधारने के लिये ऐंटिवायोटिक औषधियों का व्यवहार करते हैं।

शल्यचिकित्सा

यकृत के रोगों में उपर्युक्त चिकित्सा का महत्व नगण्य है। पित्ताशय के रोगों में उपर्युक्त चिकित्सा के असफल रहने पर, या औषधि के प्रभावहीन सिद्ध होने पर, शल्य चिकित्सा का उपयोग करते हैं जैसे पथरी में होता है।

यकृत अधिकांश जीव जंतुओं के शरीर का आवश्यक अंग हैं। इस लेख में मानव शरीर से संबंधित उल्लेख है। यकृत मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाली सबसे बड़ी तथा महत्त्वपूर्ण पाचक ग्रन्थि होती है। यह उदरगुहा के दाहिने ऊपरी भाग में डायाफ्राम के ठीक नीचे स्थित होता है तथा आन्त्रयोजनीयों द्वारा सधा रहता है। यह लाल–भूरे रंग का बड़ा, कोमल, ठोस तथा द्विपालित अंग होता है। दोनों पालियाँ बहुभुजीय पिण्डकों से बनी होती हैं। इनके चारों ओर संयोजी ऊतकों का आवरण होता है जिसे ग्लीसन कैप्सूल कहते हैं।

यकृत पिण्डक यकृत कोशिकाओं से बने होते हैं, इनसे पित्त का स्रावण होता है। पित्त पित्ताशय में संग्रहित होता रहता है। पित्त में पाचक एन्जाइम नहीं पाए जाते हैं, लेकिन यह फिर भी पाचन में सहायता करता है।

यकृत के कार्य

यकृत के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कार्य हैं-

पित्त रस का स्रावण- यकृत पित्त रस का स्रावण करता है। इसकी प्रकृति क्षारीय होती है। इसमें पित्त लवण, कोलेस्ट्राल, वर्णक कोशिकाएँ पाई जाती हैं।

भोजन के माध्यम को क्षीरीय बनाता है।

वसा का इमल्सीकरण करता है।

हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके भोजन को सड़ने से बचाता है।

पित्त वर्णक, लवण आदि पदार्थों को उत्सर्जित करता है।

ग्लाइकोजिनेसिस- आवश्यकता से अधिक ग्लुकोज का संचय ग्लाइकोजन के रूप में करता है। यह प्रक्रिया ग्लाइकोजिनेसिस कहलाती है।

ग्लूकोजीनोलाइसिस- रुधिर में ग्लूकोज़ की मात्रा कम होने पर यकृत कोशिकाएँ ग्लाइकोजन को पुनः ग्लूकोज़ में बदल देती हैं। यह प्रक्रिया ग्लूकोनियोजिनेसिस कहलाती है।

ग्लाइकोनियोजिनेसिस- आवश्यकता पड़ने पर यकृत कोशिकाओं के द्वारा अमीनों अम्लों तथा वसीय अम्लों से ग्लूकोज़ का निर्माण किया जाता है। इस क्रिया को ग्लाइकोनियोजिनेसिस कहते हैं।

वसा एवं विटामिन्स का संश्लेषण- यकृत कोशिकाएँ वसा तथा विटामिन्स का संश्लेषण एवं संचय का कार्य करती है।

  • एन्जाइम का स्राव करना
  • विटामिन्स का संचय
  • डीएमीनेशन
  • यूरिया का संश्लेषण
  • उत्सर्जी पदार्थो का निष्कासन
  • विषाक्त पदार्थों का विषहरण
  • रुधिराणुओं का निर्माण एक विखण्डन
  • अकार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण
  • रुधिर प्रोटीन का संश्लेषण
  • हिपैरिन का स्रावण
  • जीवाणुओं का भक्षण
  • लसीका उत्पादन, संचय


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यकृत क्या है इससे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

यकृत से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु


  1. यकृत का वजन 1.5 से 2 किलोग्राम का होता हैं।
  2. इसका  PH मान 7.5 होता हैं।
  3. यकृत आंशिक रूप से ताँबा, और लोहा को संचित रखता हैं।
  4. जहर/विष देकर मारे गए व्यक्ति की पहचान यकृत के द्वारा ही की जाती हैं।
  5. यकृत द्वारा ही पित्त स्त्रावित होता हैं यह पित्त आँत में उपस्थित एंजाइम की क्रिया को तीव्र कर देता हैं।
  6. यकृत प्रोटीन की अधिकतम मात्रा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर देता हैं।
  7. फाइब्रिनोजेन नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत से ही होता हैं जो रक्त के थक्का बनने में मदद करता हैं।
  8. हिपैरिन नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत के द्वारा ही होता हैं जो शरीर के अंदर रक्त को जमने से रोकता हैं।
  9. मृत RBC को नष्ट यकृत के द्वारा ही किया जाता हैं।
  10. यकृत शरीर के ताप को बनाए रखने में मदद करता हैं।
  11. भोजन में जहर देकर मारे गए व्यक्ति की मृत्यु के कारणों की जाँच में यकृत एक महत्वपूर्ण सुराग होता हैं।


यकृत से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर


प्रश्न1. यकृत का वजन कितना होता हैं?
उत्तर:- 1.5 से 2 किलोग्राम

प्रश्न2. यकृत का PH मान कितना होता हैं?
उत्तर:- 7.5

प्रश्न3. मृत RBC को नष्ट किसके द्वारा किया जाता हैं
उत्तर:- यकृत

प्रश्न4. यकृत का एकत्रीकरण कहाँ होता हैं?
उत्तर:- पित्ताशय

प्रश्न5. यकृत अतिरिक्त वसा को किस में परिवर्तित करता हैं?
उत्तर:- प्रोटीन
प्रश्न6. मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि कौन सी हैं?
उत्तर:- यकृत

प्रश्न7. जहर/विष देकर मारे गए व्यक्ति की पहचान किसके द्वारा की जाती हैं?
उत्तर:- यकृत

प्रश्न8. मानव शरीर की सबसे व्यस्त ग्रंथि कौन सी हैं?
उत्तर:- यकृत


प्रश्न9. फाइब्रिनोजेन नामक प्रोटीन का उत्पादन कहाँ से होता हैं?
उत्तर:- यकृत


प्रश्न10. यकृत आंशिक रूप से किस से संचित रहता हैं?
उत्तर:- ताँबा और लोहा
👇👇👇👇👇 इस पोस्ट में मैने अपने सभी दोस्तो के लिए लिवर यकृत के बारे में पूरी जानकारी दी है यदि अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट करे

60. भारत का राष्ट्रगीत कौनसा है

भारत का राष्ट्रगीत कौनसा है

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59. भारत का राष्ट्रगान किसने लिखा

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        1. रवीन्द्रनाथ टैगोर✔️
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        3. दयाराम साहनी
        4. जवाहर लाल नेहरू

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विटामिन क्या होते है? विटामिन के प्रकार /What Is Vitamin. Type Of in hindi

विटामिन किसे कहते है। विटामिन क्या है। विटामिन के प्रकार What Is Vitamin . Type Of Vitamin.Full details of vitamin


विटामिन(Vitamin)

विटामिन किसे कहते हैं इसके प्रमुख प्रकार



विटामिन किसे कहते हैं

विटामिन भोजन के अवयव हैं जिनकी सभी जीवधारियों को अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। रासायनिक रूप से ये कार्बनिक यौगिक हैं। उस यौगिक को विटामिन कहा जाता है जो शरीर द्वारा पर्याप्त मात्रा में स्वयं उत्पन्न नहीं किया जा सकता बल्कि भोजन के रूप में लेना आवश्यक होता है विटामिन कहलाता हैं।

Vitamin kise kahte hai. Prakar aur a b c d e f g k vitamin in hindi
विटामिनस ऐसे कार्बनिक यौगिक है जो की चाहे कम मात्रा में ही सही परन्तु हमारे शरीर के उचित कार्यों के लिए बहुत ही आवश्यक है। यह हमें भोजन से मिलते है। हमारा शरीर में खुद से विटामिन नहीं बनता या बहुत ही कम मात्रा में बनता है तो इनकी कमी हम भोजन से पूरी करते है। हर जीव-जंतु को अलग-अलग तरह के विटामिन्स चाहिए। जैसे की मनुष्य का शरीर विटामिन C नहीं बना सकता तो हमे यह भोजन से लेना पड़ता है परन्तु कुछ ऐसे जानवर है जैसे की कुत्ता,जिनका शरीर खुद से विटामिन C बना सकता है।

विटामिन्स क्या होते हैं?

विटामिन सी किसे कहते हैं

विटामिन्स को जीवन रक्षक यूँ ही नहीं कहा जाता। ये न केवल शरीर को रोगों से बचाते हैं, बल्कि शरीर को सही रूप में काम करने लायक भी बना कर रखते हैं। विटामिन वो छोटे-छोटे कार्बोनिक यौगिक हैं जो हमारे शरीर को सही ढंग से काम करने की शक्ति देते हैं। हमारे शरीर को इन विटामिन की बहुत कम मात्रा में जरूरत होती है और यह मात्रा हमें उस भोजन से मिलती है जो हम खाते हैं, क्योंकि विटामिन का निर्माण शरीर में अपने आप नहीं होता है। vitamin kya hote hain. prakar in hindi


विटामिन का महत्व

हम जानते हैं की विभिन्न पोषक तत्व हमारे भोजन को संपूर्णता प्रदान करते हैं और विटामिन का इसमें खास महत्व है। आहार में किसी भी विटामिन की कमी, किसी भी बीमारी का न्यौता होती है। दरअसल विटामिन्स का मुख्य कार्य हमारे भोजन को ईंधन में बदलना है जिससे शरीर में खाया हुआ खाना ठीक से पच सके, शरीर को सही रूप में एनर्जी मिल सके और साथ ही शरीर को निरोग रख सके। हमारे खाने में उपलब्ध सभी पौष्टिक तत्वों का लाभ भी शरीर को सही ढंग से मिल सके, यह काम भी विटामिन्स का ही है।


विभिन्न प्रकार के विटामिन के नाम और उनके बारे में पूरी जानकारी नीचे बताया गया है


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विटामिन ए (Vitamin A)

What Is Vitamin . Type Of Vitamin.Full details of vitamin

विटामिन ए का रासायनिक नाम रेटिनॉल है। इसे antixerophthalmic विटामिन भी कहते है अर्थात यह जीरॉफ्थैलमिया नामक रोग को दूर करने में सहायता करता है।विटामिन आँखों से देखने के लिये अत्यंत आवश्यक होता है। साथ ही यह संक्रामक रोगों से बचाता है। यह विटामिन शरीर में अनेक अंगों को सामान्य रूप में बनाये रखने में मदद करता है। जैसे कि त्वचा, बाल, नाखून,ग्रंथि,दाँत,मसूड़ा और हड्डी।

 सबसे महत्वपूर्ण स्थिती जो कि सिर्फ विटामिन ए के अभाव में होती है, वह है अंधेरे में कम दिखाई देना, जिसे रतौंधि कहते हैं। विटामिन ए की कमी से रतोंधी रोग होता है ।इसके साथ आँखों में आँसूओं के कमी से आँखें सूख जाती हैंऔर उनमें घाव भी हो सकते हैं। बच्चों में विटामिन ए के अभाव में विकास भी धीरे हो जाता है,जिससे कि उनके कद पर असर कर सकता है। त्वचा और बालों में भी सूखापन हो जाता है और उनमें से चमक चली जाती है। संक्रमित बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है ताजे फल दूध माॅस अण्डा मछली का तेल गाजर मक्खन हरी सब्जियों में होता है विटामिन  A का संश्लेषण पौधे के पीले या नारंगी वर्णक से प्राप्त केरोटिन से यकृत में होता हैै विटामिन A दृष्टिवर्णक रोडोप्सिन के संश्लेषण में सहायक होता है रंतौधी, मोतियाबिंद ,जीरोफ्थेल्मिया ,त्वचा शुष्क,शल्की, संक्रमण का खतरा ,आंख का लैंस दूधिया आवरण से अपारदर्शक होने से मोतियाबिंद होता है.
Vitamin kise kahte hai. Prakar aur a b c d e f g k vitamin


विटामिन बी (Vitamin B)

विटामिन बी शरीर को जीवन शक्ति देने के लिए अति आवश्यक होता है। इस विटामिन की कमी से शरीर अनेक रोगो का घर बन जाता है। विटामिन बी के कई विभागों की खोज की जा चुकी है। ये सभी विभाग मिलकर ही विटामिन ‘बी’ कहलाते हैं। हालाँकि सभी विभाग एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं, लेकिन फिर भी सभी आपस में भिन्नता रखते हैं। विटामिन ‘बी’ कॉम्पलेक्स 120 सेंटीग्रेड तक की गर्मी सहन करने की क्षमता रखता है।उससे अधिक ताप यह सहन नहीं कर पाता और नष्ट हो जाता है। यह विटामिन पानी में घुलनशील होता है। इसके प्रमुख कार्य स्वस्थ रखना तथा भोजन के पाचन में सक्रिय योगदान देना होता है। भूख को बढ़ाकर यह शरीर को जीवन शक्ति देता है। खाया-पिया अंग लगाने में सहायता प्रदान करता है। क्षार पदार्थो के संयोग से यह बिना किसी ताप के नष्ट हो जाता है, पर अम्ल के साथ उबाले जाने पर भी नष्ट नहीं होता।

 विटामिन बी कॉम्प्लेक्स के स्रोतों में टमाटर, भूसी दार गेहूँ का आटा, अण्डे की जर्दी, हरी पत्तियों का साग, बादाम, अखरोट, बिना पॉलिश किया चावल, पौधों के बीज, सुपारी, नारंगी, अंगूर, दूध, ताजे सेम, ताजे मटर, दाल, जिगर, वनस्पति साग-सब्जी, आलू, मेवा, खमीर, मक्की, चना, नारियल, पिस्ता, ताजे फल, कमरकल्ला, दही, पालक, बन्दगोभी, मछली, अण्डे की सफेदी, माल्टा, चावल की भूसी, फलदार सब्जी आदि आते हैं।
विटामिन क्या है | विटामिन के प्रकार | Different Types of Vitamins (Hindi)


विटामिन ‘बी’ कॉम्पलेक्स की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग


1 -- बी1 -- थियामिन या आन्युरिन -- बेरीबेरी (Beri-beri)
विटामिन बी – 1

रासायनिक नाम: थाइमिन (Thaimine)

यह वाटर-सॉल्युबल विटामिन है।

स्रोत: सूरजमुखी के बीज, अनाज, आलू, संतरे और अंडे।

फायदे: मस्तिष्क को विकसित रखने के लिए बहुत ही उपयोगी है। इसकी कमी से हमे बेरीबेरी रोग हो सकता है

2-- बी2 -- रिबोफ्लैविन (Riboflavin) -- आँख लाल रहना, होठ पर झुर्री, मुँह आना, जीभ फूल जाना, चमड़े की विकृति
विटामिन बी – 2

रासायनिक नाम: राइबोफ्लेविन (Riboflavin)

यह वाटर-सॉल्युबल विटामिन है।

स्रोत: केला, दूध, दही, मास, अंडे, हरी बीन्स और मछली।

फायदे: त्वचा को अच्छी रखने के लिए बहुत ही उपयोगी है।



3-- बी -- पेलाग्रा-रक्षक (Pellagra preventing) -- पेलाग्रा होना (विशेष चर्म-रोग)

विटामिन बी – 3

रासायनिक नाम: नियासिन (Niacin)

यह वाटर-सॉल्युबल विटामिन है।

स्रोत: खजूर, दूध, अंडे, टमाटर, गाजर, एवोकाडो।

फायदे: रक्तचाप को नियंत्रण में रखने और सिरदर्द, दस्त को कम करती है।

विटामिन बी – 5

रासायनिक नाम: पैंटोथेनिक एसिड (Pantothenic acid),

यह वाटर-सॉल्युबल विटामिन है।

स्रोत: एवोकैडो, अनाज, मांस।

फायदे: बालो को स्वस्थ और सफेद होने से बचाता है। इससे तनाव भी कम होता है।


4-- बी6 -- पाइरिडॉक्सिन (Pyridoxin) -- वमन, मस्तिष्क रोग तथा दस्त आना
विटामिन बी – 6

रासायनिक नाम: प्यरीडॉक्सीने (Pyridoxine)

यह वाटर-सॉल्युबल विटामिन है।

स्रोत: अनाज, मांस, केले, सब्जियां।

फायदे: यह सुबह की थकान कम करता है। तनाव और अनिद्रा से भी मुख्ती देता है।

विटामिन बी – 7

रासायनिक नाम: बायोटिन (Biotin)

यह वाटर-सॉल्युबल विटामिन है।

स्रोत: अंडे की जर्दी (Egg yolk), सब्जियां।

फायदे: यह त्वचा और बालो के लिए बहुत ही अच्छा है। इसकी कमी से हमे जिल्द की सूजन (dermatitis) हो सकती है।



5 विटामिन बी – 9

रासायनिक नाम: फोलिक एसिड (Folic acid)

यह वाटर-सॉल्युबल विटामिन है।

स्रोत: पत्तीदार शाक भाजी, सूरजमुखी के बीज, कुछ फलो में भी यह होता है।

फायदे: यह त्वचा के लोग और गठिया के उपचार हेतु बहुत ही शक्तिशाली है। गर्भवती महिलाओं को यह लेने ही सलाह दी जाती है।


6-- बी12—स्यानोकोबैलै ऐमाइन
 (Cyanocobalamin) -- विशेष रक्तहीनता और संग्रहणी

विटामिन बी – 12

रासायनिक नाम: कयनोसोबलमीन (Cyanocobalamin)

यह वाटर-सॉल्युबल विटामिन है।

स्रोत: मछी, मास, दूध, अंडे और दूध दे बनाये उत्पादों में यह होता है।

फायदे: यह एनीमिया (खून की कमी), मुँह में अलसर जैसी बिमारियों को कम करता है।

कुछ अन्य रोग जो विटामिन बी कॉम्प्लेक्स की कमी से होते है :-

हाथ पैरों की उँगलियों में सनसनाहट होना, मस्तिष्क की स्नायु में सूजन व दोष होना, पैर ठंडे व गीले होना, सिर के पिछले भाग में स्नायु दोष हो जाना, मांसपेशियों का कमजोर होना, हाथ पैरों के जोड़ अकड़ना, शरीर का वजन घट जाना, नींद कम आना, मूत्राशय मसाने में दोष आना, महामारी की खराबी होना, शरीर पर लाल चक्कत्ती निकलना, दिल कमजोर होना, शरीर में सूजन आना, सिर चकराना, नजर कम हो जाना, पाचन क्रिया की खराबी होना।
विटामिन के प्रकार


विटामिन सी (Vitamin C)

रासायनिक नाम: एस्कॉर्बिक एसिड (Ascorbic acid)

यह वाटर-सॉल्युबल विटामिन है।

यह हमारी त्वचा और हड्डियों के लिए बहुत ही आवश्यक है। यह किसी घाव को ठीक करने में बहुत ही ज्यादा मदद करता है। विटामिन सी की कमी हम फल और सब्ज़ियां खा कर पूरी कर सकते है। टमाटर, ब्रोकोली में अच्छी मात्रा में विटामिन सी होता है। यह गर्भवती महिलाओ, धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों को ज्यादा मात्रा में खाना चाहिए।
नारंगी, विटामिन सी का उत्तम स्रोत है।

विटामिन सी को एस्कोरबिक ऐसिड के नाम से भी जाना जाता है। इसे सर्वप्रथम गायोर्जी ने प्रथक किया था। यह शरीर की कोशिकाओं को बांध के रखता है। इससे शरीर के विभिन्न अंगों को आकार बनाने में मदद मिलता है। यह शरीर के खून की नसों (रक्त वाहिकाओं, blood vessels) को मजबूत बनाता है। इसके एंटीहिस्टामीन गुणवत्ता के कारण, यह सामान्य सर्दी-जुकाम में दवा का काम कर सकता है। इसके अभाव में मसूड़ों से खून बहता है, दाँत दर्द हो सकता है, दाँत ढीले हो सकते हैं या निकल सकते हैं। त्वचा या चर्म में भी चोट लगने पर अधिक खून बह सकता है, रुखरा हो सकता है। आपको भूख कम लगेगी। बहुत अधिक विटामिन के अभाव से स्कर्वी (scurvy) रोग हो सकता है। विटामिन सी की कमी से शरीर का वजन कम हो जाता है

इससे शरीर के विभिन्न अंगों में, जैसे कि गुर्दे में, दिल में और अन्य जगह में, एक प्रकार का पथरी हो सकता है। यह ओक्ज़लेट क्रिस्टल का बना होता है। इससे पेशाब में जलन या दर्द हो सकता है, या फिर पेट खराब होने से दस्त हो सकते हैं। खून में कमी या एनिमीया (anemia) हो सकता है। विटामिन सी के अच्छे स्रोत नारंगी जैसे फल या सिट्रस फ्रूट्स, खरबूजा

विटामिन डी  (Vitamin D)

रासायनिक नाम: एरगोसेल्सिफेरोल (Ergocalciferol)

यह फैट-सॉल्युबल विटामिन है।

विटामिन डी हमारे शरीर में कैल्शियम अब्सॉर्ब करने में बहुत ही मदद करता है। यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने में भी मदद करता है, दांतो की सड़न को कम करता है। इसकी कमी से हमे सूखा रोग (Rickets) हो सकता है।
तीन चीज़ो के ज़रिये हमे विटामिन डी मिल सकता है – त्वचा के माध्यम से, अपने आहार से, और पूरक से। हमारा शरीर खुद विटामिन डी बना लेता है जब उसे सूरज की रौशनी मिलती है। आहार की बात करे तो दूध और अंडे की जर्दी से भी हमे विटामिन डी मिल जाता है।यह शरीर की हड्डीयों को बनाने और संभाल कर रखने में मदद करता है। साथ ही यह शरीर में केल्शियम (calcium) के स्तर को नियंत्रित रखता है। इसके अभाव में हड्डीयाँ कमजोर हो जाता हैे और टूट भी सकती हैं (फ्रेकचर या Fracture)। बच्चों में इस स्थिती को रिकेट्स (Rickets)कहते हैं और व्यस्क लोगों में हड्डी के मुलायम होने को ओस्टीयोमलेशिया (osteomalacia) कहते हैं। इसके अलावा, हड्डी के पतला और कमजोर होने को ओस्टीयोपोरोसिस कहते हैं।

इससे शरीर के विभिन्न अंगों में,जैसे कि गुर्दे में, दिल में, खून के नसों में और अन्य जगह में, एक प्रकार का पथरी हो सकती है। यह केल्सियम (calcium) का बना होता है। इससे ब्लड प्रेशर या रक्तचाप बढ सकता है, खून में कोलेस्ट्रोल अधिक हो सकता है और दिल पर असर पर सकता है। साथ ही चक्कर आना, कमजोरी लगना और सिरदर्द हो सकता है। पेट खराब होने से दस्त भी हो सकते है। अंडे का पीला भाग, मछली के तेल, विटामिन डी युक्त दूध और बटर इसके अच्छे स्रोत हैं, इसके आलावा धूप सेकने से भी शरीर में शरीर में इसका निर्माण होता है।


विटामिन E 

रासायनिक नाम: तोसोफेरोल्स (Tocopherols)

यह फैट-सॉल्युबल विटामिन है।

विटामिन ई हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली मज़बूत बनाता है। वनस्पति तेल, अनाज, बादाम, एवोकैडो, अंडे और दूध से हमे विटामिन ई मिल जाता है। जिन लोगो को किसी प्रकार के यकृत रोग होते है उनको यह ज्यादा लेने के लिए कहा जाता है। विटामिन ई के लिए कोई पूरक लेने से पहले डॉक्टर से जरूर परामर्श लें।

विटामिन ई, खून में रेड बल्ड सेल या लाल रक्त कोशिका को बनाने के काम आता है। इसे टोकोफ़ेरल भी कहते हैं। यह विटामिन शरीर में अनेक अंगों को सामान्य रूप में बनाये रखने में मदद करता है जैसे कि मांसपेशियां एवं अन्य टिशू या ऊत्तक। यह शरीर को ऑक्सिजन के एक नुकसानदायक रूप से बचाता है, जिसे ऑक्सिजन रेडिकल्स कहते हैं। इस गुण को एंटीओक्सिडेंट कहा जाता है। विटामिन ई, कोशिका के अस्तित्व बनाये रखने के लिये, उनके बाहरी कवच या सेल मेमब्रेन को बनाये रखता है। विटामिन ई, शरीर के फैटी एसिड को भी संतुलन में रखता है।

समय से पहले हुये या प्रीमेच्योर नवजात शिशु (Premature infants) में, विटामिन ई की कमी से खून में कमी हो जाती है। इससे उनमें एनिमीया (anemia) हो सकता है।


विटामिन के (Vitamin k )

रासायनिक नाम: फीलोक्विनोने (Phylloquinone)

यह फैट-सॉल्युबल विटामिन है।

विटामिन के स्वस्थ हड्डियों और ऊतकों के लिए प्रोटीन बनाकर हमारे शरीर की मदद करता है।

विटामिन्स हमारी सेहत के लिए बहुत ही जरुरी है। इसलिए अपनी डाइट को इस प्रकार रखें के उसमे विटामिन्स जरूर हो। और स्वास्थ्य टिप्स हिंदी में पाने के लिए हमारी वेबसाइट पर ब्लॉग पढ़ते रहे। आप अपने सुझाव हमे यहां क्लिक करके भेज सकते है।

विटामिन

आहार में विटामिन का रहना पोषण के लिये आवश्यक है।

भिन्न-भिन्न देशों और समाजों में आहार भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। आहार स्वादिष्ठ, देखने में आकर्षक और अच्छी तरह पकाया हुआ होना चाहिए, ताकि उससे मन ऊब न जाय और रुचि बनी रहे।

देश और काल के अनुसार कार्बोहाइड्रेट की मात्रा विभिन्न रह सकती है। गरम देश में वनस्पति की उपज बहुत अच्छी होती है। अत: यहाँ के भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा विशेष रहती है। शीत देशों में लोग विशेष रूप से मांस और मछली खाते हैं। बर्फीले अति शीत देश में एस्किमा जाति के भोजन में जानवरों की वसा (fat) की बहुतायत होती है। इन सब खाद्य पदार्थों में उचित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट मिल सकता है। आजकल परिवहन की सुगमता होने से दुनिया के एक स्थान से दूसरे स्थान तक आहार सामग्री अल्प अवधि में आ जा सकती है। उन्नत देशों में पोषण का प्रबंध वैज्ञानिकों की और राज्यचालकों की राय के समन्वय से होता रहता है। प्रत्येक देश में धनीमानी लोग मँहगी पोषण की चीजों को खरीदते और खाते हैं। समस्या साधारण जनता और गरीब कामगार लोगों के पोषण की है और इस समस्या का हल राज्यचालकों पर निर्भर करता है। Vitamin kise kahte hai. Prakar aur a b c d e f g k vitamin


विभिन्न विटामिनों की कमी से उत्पन्न



1 -- ए -- कैरोटिन (Carotin) -- रतौधी, आँख की सफेदी पर झुर्री (Xerophţĥalmia)

7 -- फोलिक अम्ल (Folic acid) -- विशेष रक्तहीनता

8 -- सी -- ऐसकौर्बिक अम्ल -- स्कर्वी (scurvy)

9 -- डी -- कैल्सिफेरोल (Calciferol) -- सुखंडी, रिकेट (Rickets)

10—इ -- टोकोफेरोल (Tocopherol) -- पुरुषत्व और स्त्रीत्व में कमी

11—पी -- रुटीन (Rutin) -- कोशिकाओं से रक्तपात

12—के -- ऐंफेंटामिन (Amphentamin) -- रक्त में जमने की शक्ति का ह्रास

भारत के अतीत काल में जनता के पोषण का नक्शा बड़ा ही उत्साहजनक है। दूध, दही और मक्खन की कमी नहीं थी। जंगलों में शिकार होता था। खेती की उपज भी जनसमूह के हिसाब से अच्छी थी। सभी को आहार समाग्री उचित मात्रा में मिलती थी और पोषण भी उत्तम था। जनसंख्या की वृद्धि और आहार सामग्रियों की कमी से पोषण में गड़बड़ी हो गई।

आवश्यक पोषण का भार समाज और राज्य पर अनिवार्य है और इन्हीं के द्वारा जनता का पोषण उत्तम हो सकता है। जैसे गर्भवती स्त्री का पोषण मातृ-सेवा-सदन पर निर्भर है; शिशु का पोषण शिशु-सेवा-सदन पर आधारित है; इसी प्रकार पाठशाला जानेवाली बालक बालिकाओं का पोषण उद्योग-संचालकों पर बहुत निर्भर करता है। इन सबों की देखभाल और निरीक्षण का भार देश की राज्य व्यवस्था पर है।

गरम देशों में प्रोटीन की कमी से एक प्रकार की रक्तहीनता पाई जाती है। इसका भी ध्यान रखना जरूरी है। विटामिनों को कमी हो और यदि इसकी पूर्ति आहार पदार्थो से न होती हो, तो कृत्रिम विटामिन के सेवन से इसे पूरा किया जा सकता है। गर्भवती स्त्रियों की 100 मिलीग्राम ऐसकौर्बिक अम्ल (विटामिन सी) की आवश्यकता है, जो एक गिलास नारंगी के रस से मिल सकता हे, या 100 मिलीग्राम ऐकौर्बिक अम्ल के खाने से प्राप्त हो सकता है। गर्भावस्था में सब विटामिनों की आवश्यकता विशेष मात्रा में होती है। और यह आहार या कृत्रिम विटामिनों से पूरी की जा सकती है। अवस्था का लिहाज करते हुए सर्वांग पूर्ण और संतुलित भोजन उन्हें प्रतिदिन मिलना चाहिए।
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मानव नेत्र का नामांकित चित्र । नेत्र आंतरिक संरचना/ about eye in hindi

मानव नेत्र का नामांकित चित्र । नेत्र आंतरिक संरचना


मानव नेत्र का नामांकित चित्र । नेत्र आंतरिक संरचना



हमारा आधे से ज्यादा दिमाग आंखों को संभालने में लगा रहता है लगभग 65 parcent  आंखों को control करने वाली मशल्स शरीर में सबसे ज्यादा एक्टिव रहती है। फोकस करने वाली मसल्स दिन में 1000000 बार हिलती है।

 आपकी टांगो की मसाज को इतना ही काम करने के लिए एक दिन में करीब 80 किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा। हमारी आंखों में बहुत ज्यादा मेडिकल शक्ति होती है। इसमें धूल मिट्टी को छानने की क्षमता होती है और बाई chance आंख में शीशे के थोड़ी बहुत भी लग जाती है तो उसे 48 घंटे के अंदर ठीक कर लेता है 

आदमी का आंख  576  megapixels की है एक जगह फोकस करने केवल 2 मिली सेकंड का समय लगता है । about eye in hindi

और साफ करें हमारी आंखों का करता है नीली आंखों वाले से ज्यादा पाया जाता है कुछ लोगों की दोनों आंखों का रंग अलग होता है इससे कहा जाता है यदि आपको नजदीक का दिखाई नहीं देता है तो आपकी आंखों के गोले बड़े होते हैं और यदि आपको दुर का नहीं दिखाई देता है तो यह गोली छोटे होते हैं।

नीली आंखों वाले लोग सूर्य की चमक दूसरे के मुकाबले कम आते हैं और आज से 10000 साल पहले धरती पर एक भी नीली आंखों वाला इंसान नहीं था। मतलब आज धरती पर मौजूद सभी नीली आंखों वाले लोग का पूर्वज एक ही था जो 10 हजार साल पहले पैदा हुआ था और जब तक अपनी आंखों की बढ़ती है।
मानव नेत्र के बारे में रोचक तथ्य
नवजात बच्चे 15इंच की दूरी तक देख पाता है और जन्म से लेकर मौत तक अपनी आंखों की एक्साइज रहता है घटती बढ़ती नहीं है।

लगभग आंखें 1 मिनट में 17 बार 1 दिन में 14280 बार और 1 साल में 520000 बार झपकती है एक आंख झपकमे में सौ से डेढ़ सौ मिलिसैंकड़ लगते हैं लेकिन 1 सेकंड में 5 से ज्यादा बार झपकना असंभव है। जिंदगी का जोड़ा जाए तो 1 से 1 साल से ज्यादा होगा आप अपने के दो कारण है ।

 आंखों में नमी बनाए रखना और बाहरी करो आंखों को बचाना अंधेरे और रोशनी के हिसाब से हमारी आंखें खुद एडजस्ट कर लेती है देखने के लिए प्रयोग करें बंद करके और थोड़ी देर बाद सामने देखोगे कि हमारी आंखों की पुतलियां उड़ती है।
वाज की नजर हमसे  से 5 गुना तेज होती है।

इंसान की आंखों के लिए दृष्टि की शुद्धता 20_22 तय की गई है बल्कि बाज के लिए यही 20bay4 तय की गई है मतलब इंसान की आंखें 20 फीट की दूरी से देख पाती है उसी चीज को बार फिर से देख लेता है। इंसान की आंखें कितनी दूरी तक देख सकती है यदि धरती पर पूरा अंधेरा हो तो 48 किलोमीटर दूर से देखी जा सकती है।

आंखों का दिखना दूरी पर निर्भर नहीं करता बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि लाइट और फोटो के कितने उस वस्तु से निकल रहे हैं फोटो में चार पांच से 14 आंखों की 5 से 14 रोड सेल एक्टिवेशन की काफी दिमाग से बताने के लिए कुछ देख रहे हैं। केवल तीन ही रंग देख पाते नीला लाल और बाती सारे रांची ही तीनों को मिलाकर बनती है इसकी मदद से हम इसको रंग सांचा हमारा आधे से ज्यादा दिमाग आंखों को संभाल कर।


  • इंसान उसका दस परसेंट समय जीवन व्यतीत करता है केवल आंख की पलकें झपकाईं में ।

  • शुतुरमुर्ग की आंखें उसके दिमाग से बड़ी होती है।

  • सूरज की धूप में आपकी आंखें जल सकती हैं ।

  • मधुमक्खी की 5 आंखें होती हैं ।

  • इंसान और कुत्ता तो ऐसी प्रजातियां है जो किसी की आंखें देखकर उसका हाव-भाव जान लेते हैं ।

  • डॉल्फिन एक आंख बंद करके सोती है

  • आप बिना आंख बंद किए नहीं छिक सकते हैं।

  • हर 14 दिन बाद आपकी बदलकर नहीं आ जाती हैं ।

  • विद्युत जनित्र का चित्र
  • विद्युत मोटर का नामांकित चित्र
यदि आपको आंख नेत्र के बारेरोचक जानकारी यदि आपको अच्छी लगी हो तो कृपया नीचे कमेंट अवश्य करके जाएं। और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर अवश्य करें जिससे उन्हें भी यह जानकारी प्राप्त हो सके।

ब्रांड अम्बेसडर 2019/brand ambassador 2019

ब्रांड अम्बेसडर 
Brand ambassador
Brand ambassador

Q.  स्वच्छ रेलवे मिशन के लिए ब्रांड अम्बेसडर 
Ans:-  बिंदेस्वर पाठक Q.  सिक्किम राज्य के लिए ब्रांड अम्बेसडर 
Ans:- ए आर रहमान

Q.  रिलायन्स जिओ कम्पनी का ब्रांड अम्बेसडर 
Ans:-  शाहरुख खान

Q.  इंडिगो पेंट कम्पनी का ब्रांड अम्बेसडर 
Ans:- महेंद्र सिंह धोनी

Q.  अतुल्य भारत के ब्रांड अम्बेसडर 
 नरेंद्र मोदी

Q.   असम राज्य का ब्रांड अम्बेसडर 
Ans :- हिमा दास

Q.  स्वच्छ साथी कार्यक्रम का ब्रांड अम्बेसडर 
Ans'- दिया मिर्जा

Q.  पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड का ब्रांड अम्बेसडर 
 शोहेब अख्तर

Q.  पूर्वोत्तर क्षेत्र का ब्रांड अम्बेसडर 
 मेरीकॉम

Q. वीवो कम्पनी का ब्रांड अम्बेसडर
 Ans:- आमिर खान

Q.  विस्तारा एयरलाइन्स का ब्रांड अम्बेसडर 
 Ans :- दीपिका पादुकोण

Q.  Axis बैंक की ब्रांड अम्बेसडर 
Ans :- दीपिका पादुकोण

Q.  पंजाब नेशनल बैंक का ब्रांड अम्बेसडर 
 Ans :- विराट कोहली

Q.  उबर इंडिया (टेक्सी) का ब्रांड अम्बेसडर 
Ans:- विराट कोहली

Q.  GST के लिए ब्रांड अम्बेसडर 
Ans:-  अमिताभ बच्चन

Q.  यूनिसेफ का ब्रांड अम्बेसडर 
Ans:-  प्रियंका चोपड़ा

Q.   बाटा फुटवियर का ब्रांड अम्बेसडर 
Ans:-  कीर्ति सेनन

Q.  बाटा स्पोर्ट्स वियर के लिए ब्रांड अम्बेसडर  
Ans :- स्मृति मंधाना

Q.  भारतीय वन्य जीव ट्रस्ट का ब्रांड अम्बेसडर 
Ans:-  दिया मिर्जा

Q.  नेट मेड्स का ब्रांड अम्बेसडर 
 धोनी

Q.  फ्लिपकार्ट के लिए पुरुष ब्रांड अम्बेसडर 
*Ans:- रणबीर कपूर

Q.  फ्लिपकार्ट के लिए महिला ब्रांड अम्बेस्डर
 *Ans:- श्रद्धा कपूर

Q.  हेपेटाइटिस बी के उन्मूलन के लिए ब्रांड एम्बेसडर 
* Ans:- अमिताभ बच्चन

Q.  माँ अभियान के लिए ब्रांड अम्बेसडर 
*Ans:-  माधुरी दीक्षित

Q.  Remite 2 india के लिए ब्रांड एम्बेसडर 
*Ans:-  विराट कोहली

Q.  स्वच्छ आदत स्वच्छ भारत पहल के लिए ब्रांड अम्बेसडर 
*Ans:-  काजोल देवगन

Q.  तेलुगु टाइगर्स के लिए ब्रांड अम्बेसडर 
*Ans:- राणा दग्गुबती

Q.  सड़क सुरक्षा अभियान के लिए ब्रांड अम्बेसडर 
*Ans:- अक्षय कुमार

Q.  दरवाजा बंद अभियान के लिए
 *Ans:- अमिताभ बच्चन

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57. भारत के राष्ट्रीय झंडे की लम्बाई और चौड़ाई में अनुपात कितना होता है

57. भारत के राष्ट्रीय झंडे की लम्बाई और चौड़ाई में अनुपात कितना होता है ?

 1. 3:2✔️
  2. 4:3
  3. 5:6
  4. 2:3

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56. भारत का राष्ट्रीय पेड़ कौनसा है

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      2.आम
      3.बरगद✔️
      4.शीशम

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55. भारत का राष्ट्रीय फूल कौनसा है

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       1.लिली
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