समास किसे कहते हैं ट्रिक से समझे के भेद प्रकार व परिभाषा in हिंदी

समास किसे कहते हैं । समास के भेद । प्रकार । उदाहरण 

हेलो दोस्तों आज के इस लेख में मैं समास के बारे में संपूर्ण जानकारी आपको प्रदान करने जा रहा हूं। इसमें में समास किसे कहते हैं यह क्या है इसकी परिभाषा और इसके भेद भी इस लेख में शामेल है। इसके मुख्य उदाहरण को हिंदी में के साथ पूरी तरह से वर्णित किया है इस को। samas kise kahate hain
समास किसे कहते हैं । समास के भेद । samas kise kahate hain
समास

समास किसे कहते हैं । की परिभाषा

समास का शाब्दिक मतलब है संक्षिप्तीकरण। दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नया एवं सार्थक शब्द की रचना की  जाती हैं, यह नया शब्द समास कहलाता है।
अर्थात कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जा सके वही समा-स होता है।
समास के नियमों से बने हुए शब्दों को सामासिक शब्द कहते हैं। सामासिक शब्द को समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न लुप्त हो जाते हैं। samas kise kahate hain
समास के उदाहरण-
चरणकमल  - कमल के सामान चरण -
रसोईघर  - रसोई के लिए घर -
दुरात्मा - बुरी है  जो आत्मा
घुड़सवार - घोड़े पर सवार
तुलसीदासकृत - तुलसीदास द्वारा कृत
देशभक्त - देश का भक्त
राजपुत्र - राजा का पुत्र
पूर्वपद और उत्तरपद
समास में दो पद या शब्द होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं।

इसके बारे में एक उदाहरण से समझते है
जैसे -राजा-रंक । राजा+रंक, इसमें राजा  पूर्व पद है,और रंक उत्तर पद है।

संस्कृत में समासों का बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। अन्य भारतीय भाषाओं में भी समा-स उपयोग है। 

 समास के भेद / प्रकार जानते है

समास के छः भेद / प्रकार होते है
  1. तत्पुरुष समास
  2. कर्मधारय समास
  3. अव्ययीभाव समास
  4. द्वंद्व समास
  5. द्विगु समास
  6. बहुव्रीहि समास
samas kise kahate hain. Bhed
सभी प्रकार के समास की विस्तार में चर्चा
तत्पुरुष समास किसे कहते हैं । उदाहरण
तत्पुरुष समास में उत्तरपद प्रधान होता है एवं पूर्वपद गौण होता है। वह समास, तत्पुरुष समास कहलाता है। 
या जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे
  1. धर्मग्रन्थ - धर्म का ग्रन्थ 
  2. राजकुमार - राजा का कुमार 
  3. तुलसीदासकृत - तुलसीदास द्वारा कृत

तत्पुरुष समास के प्रकार भी होते हैं

कर्म तत्पुरुष -इस समास में ‘को’ के लोप से कर्म समास बनता है। जैसे 
  1. ग्रंथकार -ग्रन्थ को लिखने वाला
  2. गिरहकट - गिरह को काटने वाला
करण तत्पुरुष - समास में ‘से’ और ‘के द्वारा’ के लोप से करण तत्पुरुष बनता है। जैसे-
  1. वाल्मिकिरचित - वाल्मीकि के द्वारा रचित
  2. मनचाहा - मन से चाहा
सम्प्रदान तत्पुरुष - इस समास में ‘के लिए’ का लोप होने से सम्प्रदान समास बनता है। जैसे- samas kise kahate hain
  1. सत्याग्रह - सत्य के लिए आग्रह
  2. रसोईघर - रसोई के लिए घर
सम्बन्ध तत्पुरुष - इस समास में ‘का’, ‘के’, ‘की’ आदि का लोप होने से सम्बन्ध तत्पुरुष समास बनता है। जैसे- 
  1. राजसभा -राजा की सभा
  2. गंगाजल - गंगा का जल
अपादान तत्पुरुष - इस समास में ‘से’ का लोप होने से अपादान तत्पुरुष समास बनता है। जैसे- 
  1. पथभ्रष्ट- पथ से भ्रष्ट
  2. देशनिकाला - देश से निकाला
अधिकरण तत्पुरुष - इस समास में ‘में’ और ‘पर’ का लोप होने से अधिकरण तत्पुरुष समास बनता है। जैसे- 
  1. जलसमाधि - जल में समाधि
  2. नगरवास - नगर में वास
कर्मधारय समास किसे कहते हैं। उदाहरण
वह समास जिसका पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य होता है, अथवा एक पद उपमान एवं दूसरा उपमेय का संबंध होता है, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

कर्मधारय समास का विग्रह करने पर दोनों पदों के बीच में ‘है जो’ या ‘के सामान’ आते हैं। जैसे:
  1. महादेव - महान है जो देव
  2. दुरात्मा - बुरी है  जो आत्मा
  3. नीलकमल - नीला कमल
  4. पीतांबर - पीला अंबर 
  5. सज्जन - सत्  जन
  6. नरसिंह - नरों में सिंह के समान
  7. करकमल - कमल के सामान कर
  8. चंद्रमुख - चंद्र जैसा मुख
  9. कमलनयन - कमल के समान नयन 
  10. देहलता - देह रूपी लता 
  11. दहीबड़ा - दही में डूबा बड़ा

अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं। उदाहरण
वह समास जिसका पहला पद अव्यय हो एवं उसके संयोग से समस्तपद भी अव्यय बन जाए, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। अव्ययीभाव समास में पूर्वपद प्रधान होता है।

अव्यय - जिन शब्दों पर लिंग, कारक, काल आदि शब्दों से भी कोई प्रभाव न हो जो अपरिवर्तित रहें वे शब्द अव्यय कहलाते हैं। 

अव्ययीभाव समास के पहले पद में अनु, आ, प्रति, यथा, भर, हर जैसे शब्द आते हैं। 
जैसे
  1. आजन्म - जन्म से लेकर
  2. यथामति - मति के अनुसार
  3. प्रतिदिन - दिन-दिन
  4. यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार आदि।
  5. आजीवन - जीवन-भर
  6. यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
  7. यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
  8. यथाविधि- विधि के अनुसार
  9. यथाक्रम - क्रम के अनुसार
  10. भरपेट- पेट भरकर
  11. हररोज़ - रोज़-रोज़
  12. हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
  13. रातोंरात - रात ही रात में
  14. प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
  15. बेशक - शक के बिना
  16. प्रतिवर्ष - हर वर्ष
  17. आमरण - मरण तक
  18. खूबसूरत - अच्छी सूरत वाली


द्वंद्व समास किसे कहते हैं। उदाहरण
जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान हों एवं दोनों पदों को मिलाते समय ‘और’, ‘अथवा’, या ‘एवं ‘ आदि योजक लुप्त हो जाएँ, वह समास द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे
  1. अन्न-जल - अन्न और जल
  2. अपना-पराया - अपना और पराया
  3. राजा-रंक - राजा और रंक
  4. देश-विदेश - देश और विदेश
  5. माता पिता - माता और पिता

द्विगु समास किसे कहते हैं। उदाहरण
वह समास जिसका पूर्व पद संख्यावाचक (संख्या) विशेषण होता है तथा समस्तपद समाहार या समूह का बोध कराए, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे-
  1. दोपहर - दो पहरों का समाहार
  2. शताब्दी -सौ सालों का समूह
  3. चौमासा -चार मासों का समूह
  4. नवरात्र -नौ रात्रियों का समूह
  5. शताब्दी -सौ अब्दो (वर्षों) का समूह
  6. अठन्नी -आठ आनों का समूह
  7. त्रयम्बकेश्वर -तीन लोकों का ईश्वर
  8. पंचतंत्र -पांच तंत्रों का समाहार
  9. सप्ताह - सात दिनों का समूह
  10. नवग्रह -नौ ग्रहों का समूह 
  11. दोपहर -दो पहरों का समाहार
  12. त्रिलोक -तीन लोकों का समाहार

बहुव्रीहि समास किसे कहते हैं। उदाहरण
जिस समास के समस्तपदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं हो एवं दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की और संकेत करते हैं। वह समास बहुव्रीहि समास कहलाता है। जैसे-
  1. गजानन - गज से आनन वाला
  2. त्रिलोचन -तीन आँखों वाला
  3. दशानन -दस हैं आनन जिसके
  4. नीलकंठ - नीला है कंठ जिसका / शिव
  5. सुलोचना - सुंदर है लोचन जिसके 
  6. पीतांबर - पीला है अम्बर जिसका/ श्रीकृष्ण
  7. लंबोदर - लंबा है उदर (पेट) जिसका/ गणेशजी
  8. दुरात्मा - बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)
  9. श्वेतांबर - श्वेत है जिसके अंबर / सरस्वती जी
  10. चतुर्भुज -चार हैं भुजाएं जिसकी
  11. मुरलीधर -मुरली धारण करने वाला आदि।
  12. दशानन - दश है आनन जिसके / रावण
इस समास के अन्य उदाहरण यहां से देखे



समास samas kise kahate hain से सम्बंधित किसी भी प्रकार के सवाल या सुझाव को यदि आप हम तक पहुंचना चाहते हैं तो आप नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।


तत्सम तद्भव शब्द किसे कहते हैं ट्रिक से समझे के भेद व परिभाषा

तत्सम और तद्भव शब्द किसे कहते हैं । की परिभाषा, तत्सम और तद्भव शब्द के उदाहरण

दोस्तो आज मैं इस पोस्ट में आपके लिए तत्सम और तद्भव शब्दों के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी लाया हूं। यहाँ हम, तत्सम शब्द किसे कहते हैं। तद्भव शब्द किसे कहते हैं।  इन शब्दों की पहचान के नियम हैं के साथ साथ इन शब्दों के कुछ प्रमुख उदाहरण हिंदी को भी नीचे देखेंगे। इससे संबंधित बहुत सारे प्रश्न आपसे कई बार पूछ लिए जाते हैं। और आपको इसके बारे में जानना जरूरी है।
तत्सम । तद्भव शब्द । किसे कहते हैं । की परिभाषा । तत्सम और तद्भव शब्द । के उदाहरण
तत्सम । तद्भव शब्द । किसे कहते हैं।

दोस्तो हिंदी भाषा में आप निम्नलिखित प्रकार के शब्द संग्रह को देख सकते हैं।
  1. तत्सम शब्द
  2. तद्भव शब्द 
  3. देशी शब्द 
  4. विदेशी शब्द 
  5. अन्य शब्द
इस पोस्ट में हम केवल 1) तत्सम और 2) तद्भव शब्दों को ही विस्तार में जानेंगे

तत्सम शब्द किसे कहते हैं । की परिभाषा

यह शब्द संस्कृत भाषा के प्रमुख दो शब्दों 1) तत् + 2)सम् से मिलकर बनाया गया है। जिसमे तत् का अर्थ है - उसके , और सम् का अर्थ है – समान। मतलब - ज्यों का त्यों। 
अर्थात 
"जिन शब्दों को संस्कृत भाषा में से बिना किसी परिवर्तन के ले लिया जाता है, उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं।" 

इन शब्दों का ध्वनि परिवर्तन नहीं होता है। हिन्दी, बांग्ला,पंजाबी, तेलुगू, कन्नड, कोंकणी, मराठी, गुजराती, मलयालम, सिंहल भाषा में बहुत से शब्द संस्कृत के कुछ शब्दों को सीधे ले लिए गये हैं, क्योंकि इनमें से कई भाषाएँ संस्कृत से जन्मी हैं।

उदाहरण के लिए:-
आम्र, क्षेत्र, अज्ञान,अग्नि, अन्धकार, अमूल्य, चंद्र आदि।

तद्भव शब्द किसे कहते हैं । की परिभाषा

"तत्सम शब्दों में समय और परिस्थितियों के कारण कुछ परिवर्तन करके बनाए गए शब्द को ही, तद्भव कहते हैं।

दो शब्दों से मिलकर बना है।1)तत् + 2)भव । तद्भव का शाब्दिक अर्थ है – उससे बने (तत् + भव = उससे उत्पन्न), 
अर्थात जो शब्द संस्कृत से ही उत्पन्न हुए हैं। यहाँ पर तत् शब्द भी संस्कृत भाषा की ओर इंगित करता है। अर्थात जो संस्कृत से ही बने हैं। इन शब्दों की यात्रा संस्कृत से आरंभ होकर पालि, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं के पड़ाव से होकर गुजरी है। और आज तक चल रही है।

इसके कुछ उदाहरण:
मुख से मुँह
दुग्ध से दूध
अज्ञान से अजान
कर्म से काम
ग्राम से गाँव
भ्रातृ से भाई


तत्सम और तद्भव शब्द की पहचान के नियम
  1. यदि तत्सम वाले शब्दों के पीछे ‘क्ष' वर्ण का प्रयोग होता है और तद्भव वाले शब्दों के पीछे ‘ख' या ‘छ' शब्द का प्रयोग हो जाता है। जैसे - पक्षी = पंछी
  2. यदि तत्सम शब्दों में ‘श्र' का प्रयोग है  तो तद्भव वाले शब्दों में ‘स' का प्रयोग हो जाता है।जैसे - धन्नश्रेष्ठी = धन्नासेठी
  3. यदि तत्सम वाले शब्दों में ‘श' का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘स' का प्रयोग हो जाता है। जैसे - दिपशलाका = दिया सलाई
  4. यदि तत्सम वाले शब्दों में ‘ष' वर्ण का प्रयोग होता है।तो स होता है। जैसे - कृषक = किसान
  5. तत्सम शब्दों में ‘ऋ' की मात्रा का प्रयोग होता है। जैसे - कृतगृह = कचहरी
  6. तत्सम शब्दों में ‘र' की मात्रा का प्रयोग होता है। जैसे - आम्र = आम
  7. तत्सम शब्दों में ‘व' का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ब' का प्रयोग होता है। जैसे - वन = बन


तत्सम और तद्भव शब्द के उदाहरण नीचे दिए गए है 
अ और आ से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
तत्सम शब्द - तद्भव शब्द
अकस्मात   अचानक
आलस्य     आलस
अशीति     अस्सी
ओष्ठ        ओंठ
आम्र            आम
आश्चर्य         अचरज
अक्षि           आँख
अमूल्य        अमोल
अग्नि          आग
अंधकार      अँधेरा
अगम्य        अगम
अमृत       अमिय
अंध         अँधा
अर्द्ध         आधा
अश्रु          आँसू
अक्षर        अच्छर
अंगरखा    अंगरक्षक
आश्रय      आसरा
आशीष     असीस
अन्न          अनाज
अक्षवाट    अखाडा
अंगुष्ठ        अंगूठा




अक्षोट       अखरोट
आदित्यवार - इतवार
आम्रचूर्ण - आमचूर
आमलक - आँवला
आर्य - आरज
आश्रय - आसरा
आश्विन - आसोज
अट्टालिका  अटारी
अष्टादश - अठारह
अगणित - अनगिनत
अध् - आज
अम्लिका - इमली
अमावस्या - अमावस
अर्पण - अरपन
अन्यत्र - अनत
अनार्य - अनाड़ी
अज्ञान - अजान
अंतःकथा - अंतर्कथा
अग्र - आगे
अस्थि - हड्डी
आर्द्रक - अदरक
इ से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
इक्षु - ईंख
ईर्ष्या - ईर्षा
इष्टिका - ईंट
उ से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
उलूक - उल्लू
उत्साह - उछाह
ऊपालम्भ -उलाहना
उद्वर्तन - उबटन
उलूखल - ओखली
उच्च - ऊँचा
उज्ज्वल - उजला
उष्ट्र - ऊँट
उपर्युक्त - उपरोक्त
ए से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
एकादश - ग्यारह
एला -इलायची
एकत्र - इकट्ठा
ऋ से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
ऋक्ष - रीछ


क और ख से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
कुपुत्र - कपूत
कर्म - काम
कुमारी - कुँवारी
कृपा- किरपा
कपर्दिका - कौड़ी
कुब्ज - कुबड़ा
कोटि - करोड़
कर्तव्य - करतब
कंकण - कंगन
किंचित - कुछ
केवर्त - केवट
किरण - किरन
कुंभकार - कुम्हार
कटु - कडवा
कुक्षी - कोख
क्लेश -कलेश
काष्ठ - काठ
कृष्ण - किसन
कुष्ठ - कोढ़
कृतगृह - कचहरी
कर्पूर - कपूर
काक - कौआ
कपोत - कबूतर
कदली - केला
कपाट - किवाड़
कीट - कीड़ा
कूप - कुआँ
कोकिल - कोयल
कर्ण -कान
कृषक - किसान
कार्य - काज, काम
कार्तिक - कातिक
कुक्कुर - कुत्ता
कन्दुक - गेंद
कच्छप - कछुआ
कंटक - काँटा
कज्जल - काजल
कातर - कायर
कुठार - कुल्हाड़ा
कटु -कड़ुवा
किंचित - कुछ
कुक्षि -कोख
कर्पट - कपड़ा
खटवा - खाट
ग से शुरु होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द
गृह - घर
ग्राम - गाँव
गर्दभ - गधा
ग्रीष्म - गर्मी
ग्राहक - गाहक
गौ - गाय
गर्जर - गाजर
ग्रन्थि - गाँठ
गोधूम - गेंहूँ
गौरा - गोरा
गृध - गीध
गायक - गवैया
ग्रामीण - गँवार
गोमय - गोबर
गृहिणी - घरनी
गोस्वामी- गुसाई
गोपालक - ग्वाला
गणना - गिनती
घ से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
घोटक - घोडा
घटिका - घड़ी
घृणा - घिन
घट - घडा
घृत - घी
च से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
चन्द्र - चाँद
चक - चाक
चर्म - चमडा
चूर्ण - चूरन
चतुर्विंश - चौबीस
चतुष्कोण - चौकोर
चतुष्पद - चौपाया
चक्रवाक - चकवा
चवर्ण - चबाना
चर्मकार - चमार
चंचु - चोंच
चतुर्थ - चौथा
चैत्र - चैत
चंद्रिका - चाँदनी
चित्रकार - चितेरा
चिक्कण - चिकना
छ से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
छत्र - छतरी
छिद्र - छेद
छाँह - छाया
छत्र - छाता
ज से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
जिह्वा - जीभ
ज्येष्ठ - जेठ
जमाता - जवाई
ज्योति - जोत
जन्म - जनम
जंधा - जाँध
जीर्ण - झीना
त, थ से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
तैल - तेल
तृण - तिनका
ताम्र - ताँबा
तिथिवार - त्यौहार
ताम्बूलिक - तमोली
तड़ाग - तालाब
त्वरित - तुरंत
तपस्वी - तपसी
तुंद - तोंद
तीर्थ - तीरथ
तीक्ष्ण - तीखा
द से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
दूर्वा - दूब
दीपावली - दीवाली
दधि - दही
देव - दई
दिशांतर - दिशावर
दौहित्र - दोहिता
दंतधावन - दतून
दंड - डंडा
द्विपट - दुपट्टा
दुर्बल - दुर्बला
दुःख - दुख
दुग्ध - दूध
दंत - दांत
द्वादश - बारह
द्विगुणा - दुगुना
दंष्ट्रा - दाढ
दिपशलाका- दिया सलाई
द्विप्रहरी - दुपहरी
दक्षिण - दाहिना
दंष - डंका
दीप - दीया
द्वितीय - इजा
ध से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
धरित्री - धरती
धैर्य - धीरज
धूम्र - धुआँ
धर्म - धरम
धूलि - धुरि
धन्नश्रेष्ठी - धन्नासेठी
धृष्ठ - ढीठ
न से शुरू होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द
नारिकेल - नारियल
नयन - नैन
निर्वाह - निवाह
निम्ब - नीम
निंद्रा - नींद
नव्य - नया
नृत्य - नाच
निष्ठुर - निठुर
नासिका - नाक
नवीन - नया
नग्न - नंगा
नकुल - नेवला
नव - नौ
प से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
पुत्र - पूत
प्रहर - पहर
पितृश्वसा - बुआ
प्रतिवासी - पड़ोसी
पितृ - पिता
पीत - पीला
नापित - नाई
पर्यंक - पलंग
पक्वान्न - पकवान
पाषाण - पाहन
प्रतिच्छाया - परछाई
पिपासा - प्यास
पक्ष - पंख
प्रतिवेश्मिक - पड़ोसी
प्रत्यभिज्ञान - पहचान
प्रहेलिका - पहेली
पुष्प - फूल
पृष्ठ - पीठ
पौष - पूस
पुत्रवधू - पतोहू
पंच - पाँच
पत्र - पत्ता
पद - पैर
पश्चाताप - पछतावा
प्रकट - प्रगट
प्रस्वेदा - पसीना
प्रस्तर - पत्थर
परीक्षा - परख
पुष्कर - पोखर
पर्ण - परा
पूर्व - पूरब
पंचदश - पन्द्रह
पक्क - पका
पट्टिका - पाटी
पवन - पौन
प्रिय - पिय
पुच्छ -पूंछ
पर्पट - पापड़
पक्षी - पंछी
पद्म - पदम
पंचदष - पंद्रह
पक्षी - पंछी
पक्क - पका
पट्टिका - पाटी
प्रकट - प्रगट
वाणिक - बनिया
परख - परसों
पाष - फंदा
पक्ष - पख
पथ - पंथ
परीक्षा - परख
पार्ष्व - पड़ोसी
पृष्ठ - पीठ
पुष्कर - पोखर
पूर्ण - पूरा
पंचम - पाँच
पौष - पूस
पूर्व - पूरब
पवन - पौन
प्रिय- पिय
पुच्छ - पूंछ
पर्पट - पापड़
फ, ब से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
फाल्गुन - फागुन
बिंदु - बूंद
बालुका - बालू
बधिर - बहरा
बलिवर्द - बैल
बली वर्द - बींट
बंध्या - बाँझ
बुभुक्षित - भूखा
भ से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
भिक्षा - भीख
भ्राता - भाई
भुजा - बाँह
भगिनी - बहिन
भक्त - भगत
भल्लुक - भालू
भाद्रपद - भादौं
भद्र - भला
भ्रत्जा - भतीजा
भ्रमर - भौरां
भ्रू - भौं
भिक्षुक - भिखारी
म से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
मृग - हिरण
मनुष्य - मानुष
मृत्यु - मौत
मुख - मुँह
मार्ग - पग
मित्र - मीत
मुष्टि - मुट्ठी
मूल्य - मोल
मूषक - मूस
मेघ - मेह
मातुल - मामा
मौक्तिक - मोती
मर्कटी - मकड़ी
मश्रु - मूंछ
मक्षिका - मक्खी
मिष्ट - मीठा
मृत्तिका - मिट्टी
मस्तक - माथा
मुषल - मूसल
महिषी - भैंस
मरीच - मिर्च
मयूर - मोर
य से शुरू होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द
यमुना - जमुना
युवा - जवान
यश - जस
यज्ञोपवीत - जनेऊ
यव - जौ
योगी - जोगी
यति - जति
यूथ - जत्था
युक्ति - जुगति
यषोदा - जसोदा
यशोगान - यशगान
यज्ञ - जज्ञ
र से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
रोदन - रोना
राजपुत्र - राजपूत
राजा - राय
रक्षा - राखी
रज्जु - रस्सी
रिक्त - रीता
रात्रि - रात
राशि - रास
ल से शुरू होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द
लक्ष - लाख
लौह - लोहा
लक्ष्मण - लखन
लज्जा - लाज
लवंग - लौंग
लोक - लोग
लोमशा - लोमड़ी
लवणता - लुनाई
लेपन - लीपना
लौहकार - लुहार
व से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
वत्स - बच्चा
व्याघ्र - बाघ
वणिक - बनिया
वाणी - आवाज
वरयात्रा - बारात
वर्ष - बरस
वैर - बैर
विवाह - ब्याह
वधू - बहू
वाष्प - भाप
वट - बड
वज्रांग - बजरंग
वल्स - बछड़ा
विद्युत्- बिजली
वक - बगुला
वंष - बांस
वृश्चिका - बिच्छु
वार्ता - बात
वानर - बन्दर
व्यथा - विथा
वर्षा - बरसात
विकार - बिगाड़ा
वचन - बचन
वृद्ध - बुड्ढ़ा
स से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
सूर्य - सूरज
स्वर्ण - सोना
स्तन - थन
सूचिका - सुई
सुभाग - सुहाग
स्वर्णकार - सुनार
स्वसुर - ससुर
सत्य - सच
सर्प - साँप
सप्त - सात
सूत्र - सूत
स्थिर - अटल
स्थल - थल, जमीन
स्नेह - नेह, प्यार
स्कन्ध - कंधा
ससर्प - सरसों
सपत्नी - सौत
स्फोटक - फोड़ा


श, ष, श्र से प्रारंभ  होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
शलाका - सलाई
श्यामल - साँवला
शून्य - सूना
शप्तशती - सतसई
शाक - साग
श्मषान - समसान
शिर - सिर
श्यालस - साला
शय्या - सेज
शुष्क - सूखा
श्याली - साली
शूकर - सूअर
शिला - सिल, पत्थर
शत - सौ
शीर्ष - सीस
शर्कर - शक्कर
शुक - तोता
शिक्षा - सीख
श्रावण - सावन
श्रेष्ठी - सेठ
श्राप - शाप
श्रृंगाल - सियार
श्रंखला - साँकल
श्रृंग - सींग

ह, क्ष से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द उदाहरण
हास्य - हँसी
हस्त - हाथ
हिरन - हरिण
हस्ती - हाथी
हरिद्रा - हल्दी
हट्ट - हाट
होलिका - होली
ह्रदय - हिय
हंडी - हांड़ी
क्षीर - खीर
क्षति - छति
क्षीण - छीन
क्षत्रिय - खत्री
क्षेत्र - खेत
क्षत्रिय - खत्री
क्षार - खार
क्षमा - छमा

त्र से प्रारंभ होने वाले तत्सम - तद्भव शब्द के उदाहरण
त्रिणी - तीन
त्रयोदश - तेरह
तत्सम और तद्भव शब्द हिन्दी

दोस्तो इस तत्सम और तद्भव शब्द किसे कहते हैं। 350+ उदाहरण के साथ इसकी परिभाषा तत्सम और तद्भव शब्द यह आपको कैसा लगा यह लेख समय समय पर इसमें और भी शब्द जोड़े जायेगे। इसे शेयर करे। 

[**रस**] रस क्या है । रस के भेद । प्रकार । स्थायी भाव । परिभाषा

रस क्या है । रस के भेद, प्रकार, स्थायी भाव, परिभाषा, अंग, उदाहरण सभी

इस लेख में में आपको रस से संबंधित बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने जा रहा हूं। इसमें मैंने रस किस कहते है ।रस के भेद और प्रकार के साथ साथ इसमें इनके स्थाई भाव को भी अच्छी तरह से बताया है।हिंदी में । इस लेख को पूरा ध्यान से पड़े ।

रस क्या है । रस के भेद । प्रकार । स्थायी भाव । परिभाषा । अंग । उदाहरण

रस किस कहते है यह क्या हैं

रस, छंद और अलंकार काव्य रचना के आवश्यक अव्यय हैं।
रस का शाब्दिक अर्थ - निचोड़ है। 
"रस वह है जो काव्य में आनन्द आता है वह ही काव्य का र-स है काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है रस काव्य की आत्मा है। "


संस्कृत में कहा गया है कि "रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्" जिसका मतलब " रसयुक्त वाक्य ही काव्य है"।
रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। 
रस आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है। 
यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है। 
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रस का सम्बन्ध 'सृ' धातु से माना गया है। जिसका अर्थ है - जो बहता है, अथवा जो भाव रूप में हृदय में बहता है उसी को रस कहते है।

रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण तत्व' कहां जाता है।
रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय " भरत मुनि " को जाता है। उन्होंने अपने नाट्यशास्त्र में 8 प्रकार के रसों का वर्णन किया है। भरतमुनि ने लिखा है- विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। 
वात्सल्य रस को दसवाँ एवं भक्ति को ग्यारहवाँ रस भी माना गया है। वत्सल तथा भक्ति इनके स्थायी भाव हैं।भक्ति रस को 11वां रस माना गया है . विवेक साहनी द्वारा लिखित ग्रंथ "भक्ति रस- पहला रस या ग्यारहवाँ रस" में इस रस को स्थापित किया गया है।

रस के भाग 

रस को दो भागों में बांटा गया है

  1. अंग
  2. प्रकार
अंग- रस के अंगों में वे माध्यम आते हैं, जिन्होने रस का निर्माण किया हो या जिनमें रस का संग्रहण किया जा रहा हो। 

प्रकार :- रस के प्रकार में वे सभी भाव आते हैं, जो इस को सुनने के बाद उत्पन्न होते हैं। 

रस के अंग 

रस को प्रायः चार प्रकार के अंगों में बांटा गया है-
  1. विभाव 
  2. अनुभाव 
  3. संचारी भाव 
  4. स्थायीभाव 
रस के प्रकार और उनके स्थायी भाव

रस के प्रकार और उनके स्थायी भाव

रस के ग्यारह भेद प्रकार होते है- 
  1. शृंगार रस             - रति
  2. हास्य रस             - हास
  3. करूण रस           - शोक
  4. रौद्र रस               - क्रोध
  5. वीर रस               - उत्साह
  6. भयानक रस        - भय
  7. बीभत्स रस         - जुगुस्ता या घृणा
  8. अदभुत रस         - विशम्या या आश्चर्य
  9. शान्त रस             - निर्वेद
  10. वत्सल रस           - वात्सल्य
  11. भक्ति रस            - अनुराग/देव रति

सभी रस के वर्णन उदाहरण सहित

1) श्रृंगार रस  

नायक और नायिका के सौंदर्य तथा प्रेम संबंधी वर्णन जिस रस में किया जाता है वह श्रंगार रस हैं। श्रृंगार रस को रसराज या रसपति कहा गया है। इस रस का स्थाई भाव रति होता है। इसके अंतर्गत सौन्दर्य,सुन्दर वन, वसंत ऋतु, प्रकृति, पक्षियों का चहचहाना आदि के बारे में वर्णन किया जाता है।

उदाहरण :-
कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात,
भरे भौन में करत है, नैननु ही सौ बात,


श्रंगार के दो भेद होते हैं

संयोग श्रृंगार
जिस रस में नायक और नायिका के परस्पर मिलन, वार्तालाप, स्पर्श, आलिगंन आदि का वर्णन होता है, उस रस को संयोग शृंगार रस कहते है।
उदाहरण :-
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नहि जाय।।

वियोग श्रृंगार 
जिस रस में नायक व नायिका का परस्पर प्रबल प्रेम हो लेकिन मिलन न हो अर्थात् नायक और नायिका के वियोग का वर्णन हो रहा हो उस जगह पर वियोग रस होता है। वियोग का स्थायी भाव भी "रति" होता है।
इसका उदारहरण :-
निसिदिन बरसत नयन हमारे,
सदा रहति पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे॥


2) हास्य रस

हास्य रस एक प्रकार से होता मनोरंजक है।  हास्य रस का स्थायी भाव हास है। हास्य रस नव रसों में स्वभावत: सबसे अधिक सुखात्मक रस प्रतीत होता है। इसके अंतर्गत वेशभूषा, वाणी आदि कि विकृति को देखकर मन में जो प्रसन्नता या आनंद का भाव उत्पन्न होता है, उससे हास की उत्पत्ति होती है इसे ही हास्य रस कहते हैं।


हास्य रस दो प्रकार का होता है -: 

1) आत्मस्थ और 2) परस्त
आत्मस्थ हास्य केवल हास्य के विषय को देखने मात्र से उत्पन्न होता है , जबकि दूसरों को हँसते हुए देखने के लिए परस्त हास्य रस प्रकट होता है।  

इसका उदाहरण :-
बुरे समय को देख कर गंजे तू क्यों रोय। 
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय।

3) करुण रस

इस रस का  स्थायी भाव शोक है। करुण रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है उसे करुण रस कहते हैं ।
अर्थात् 
किसी प्रिय व्यक्ति के चिर विरह या मरण से जो शोक उत्पन्न होता है उसे करुण रस कहते है।
या फिर
जिस रस में पुनः मिलने कि आशा समाप्त हो जाती है करुण रस कहलाता है। 

इसमें निःश्वास, छाती पीटना, रोना, भूमि पर गिरना आदि का भाव व्यक्त होता है।
उदाहरण के लिए :-

रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के।
ग्लानि, त्रास, वेदना - विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके।।

4) वीर रस

वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है। जब किसी रचना या वाक्य आदि से वीरता जैसे स्थायी भाव की उत्पत्ति होती है, तो उसे वीर रस कहा जाता है। 
इस रस के अंतर्गत जब युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना विकसित होती है। उसे वीर रस कहते हैं। इसमें शत्रु पर विजय प्राप्त करने, यश प्राप्त करने आदि प्रकट होती है। 

उदाहरण -

बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।।


भरतमुनि ने वीर रस के तीन प्रकार बताये हैं

1)दानवीर, 
2)धर्मवीर, 
3)युद्धवीर

5) रौद्र रस

रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। 
जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दुसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है। उस समय वहां पर रौद्र रस होता हैं।इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शास्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं।

उदाहरण के लिए :-
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे।
सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे॥

संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खड़े॥ 


6) अद्भुत रस

इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है।
जब किसी व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर जो विस्मय आदि के भाव पैदा हो जाता है, उसे ही अदभुत रस कहा जाता है। इस रस में रोमांच, औंसू आना, काँपना, गद्गद होना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होते हैं।

उदाहरण के लिए :-
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया।
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया॥ 

7) भयानक रस

भयानक रस का स्थायी भाव भय होता है।
जब किसी भयानक या बुरे व्यक्ति या वस्तु को देखने या किसी दुःख की घटना का स्मरण करने से मन में जो विचार उत्पन्न होता है, उसे भय कहते हैं। उस भय के पैदा होने से जिस रस कि उत्पत्ति होती है, उसे ही भयानक रस कहते हैं। इस रस अंतर्गत कम्पन, पसीना छूटना, मुँह सूखना, चिन्ता जैसे भाव उत्पन्न होते हैं।

इसका उदाहरण 
अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल।
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार ॥ 

भयानक रस के दो भेद हैं 
स्वनिष्ठ
परनिष्ठ

8)बीभत्स रस

इसका स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा होता है ।घृणित वस्तुओं या घृणित व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में मन में विचार करने या उनके सम्बन्ध में सुनकर मन में पैदा होने वाली घृणा ही वीभत्स रस है। 

साधारण शब्दों में वीभत्स रस के लिए घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक होता है।

उदाहरण के लिए -
आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते,
शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते,
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे,
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सैम बहते बहते बेटे,

9) शान्त रस

जिस रस में मोक्ष और आध्यात्म की भावना उत्पत्ति होती है, उस को शान्त रस नाम देना सम्भाव्य है। इसका स्थायी भाव निर्वेद होता है।

शान्त रस साहित्य में प्रसिद्ध नौ रसों में अन्तिम रस माना जाता है - "शान्तोऽपि नवमो रस:।" इसका कारण यह है कि भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में,  जो रस विवेचन का आदि स्रोत है,  नाट्य रसों के रूप में केवल आठ रसों का ही वर्णन मिलता है।

उदाहरण -
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं,
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।

10) वत्सल रस

माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है। यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है।इसका स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है।

उदाहरण -
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति

11) भक्ति रस

भक्ति रस में ईश्वर कि अनुरक्ति तथा अनुराग का वर्णन होता है। अर्थात इस रस में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन किया जाता है। इसका स्थायी भाव देव रति है।
उदाहरण -
अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई
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व्याकरण
रस हिंदी
इस पोस्ट में रस किसे कहते हैं, रस के भेद प्रकार, स्थायी भाव और परिभाषा के साथ साथ उदाहरण भी इसमें शामिल किया ही है। यदि आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट करें और अपने दोस्तों को शेयर करें।

क्रिया किसे कहते हैं ट्रिक से समझे के भेद परिभाषा प्रकार in Hindi

क्रिया किसे कहते हैं । क्रिया के भेद । इसकी परिभाषा । प्रकार । क्रिया in Hindi

आज इस लेख में क्रिया के संबंधित सभी प्रकार के प्रॉब्लम इस लेख में में बता दूंगा। इसमें क्रिया की परिभाषा भेद सभी को विस्तार से बताया हूं मैंने ।हिंदी में। इसलिए ध्यान से पूरा अवश्य पड़े ।
क्रिया किसे कहते हैं । इस की परिभाषा, भेद
क्रिया


क्रिया किसे कहते हैं । इस की परिभाषा

"क्रिया वह शब्द होते है, जो कि हमें किसी काम के करने या होने का बोध कराते हैं, ये शब्द क्रिया कहलाते हैं
अर्थात्
जिन शब्दों से किसी कार्य का करना या होना व्यक्त हो उन्हें क्रिया कहते हैं। जैसे- रोया, खा रहा, जायेगा आदि।"
उदाहरण के लिए अगर एक वाक्य 'उसने खाना खाया'  इसमें क्रिया 'खाया' शब्द है। 'इसका नाम मोहन है' में क्रिया 'है' शब्द है। 'मुझे वहाँ जाना था' में दो क्रिया शब्द हैं - 'जाना' और 'था'।

जैसे कुछ उदाहरण:- पढ़ना, लिखना,खेलना, सोना, खाना, पीना आदि।
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क्रिया के उदाहरण

  1. राम गाना गाता है।
  2. श्याम पुस्तक पढता है।
  3. माया नाचती है।
  4. मनुष्य धीरे धीरे चलता है।
  5. चिता बहुत तेज़ दौड़ता है।
  6. हाथी जाता है।
  7. पेन मेज पर पड़ा है।
  8. सुनील खाना खाता है।
  9. राम स्कूल जाता है।
ऊपर दिए गए सभी वाक्यों में - गाता है, पढता है, नाचती है, दौड़ता है, चलता है, जाता है, पड़ी है और खाता है आदि शब्द किसी काम के होने का बोध करा रहे हैं। ये सभी क्रिया  कहलाते हैं।

क्रिया के सामान्य रूपों के अंत में "ना" लगा रहता है जैसे-आना, जाना, पाना, खोना, खेलना, कूदना आदि। सामान्य रूपों के अंत का "ना" निकाल देने से जो बाकी बचे उसे क्रिया की धातु कहते हैं। आना, जाना, पाना, खोना, खेलना, कूदना क्रियाओं में आ, जा, पा, खो, खेल, कूद धातुएँ हैं। शब्दकोश में क्रिया का जो रूप मिलता है, उसमें धातु के साथ ना जुड़ा रहता है। ना हटा देने से धातु शेष रह जाती है।

क्रिया के भेद

कर्म, जाति तथा रचना के आधार पर क्रिया के मुख्यतः दो भेद होते है
  • अकर्मक क्रिया,
  • सकर्मक क्रिया

1) अकर्मक क्रिया

वह क्रिया जिस का फल कर्ता पर ही पड़ता है उस क्रिया को अकर्मक क्रिया कहते हैं। इस क्रिया में कर्म का अभाव होता है। जैसे राहुल पढ़ता है।
इस वाक्य में पढ़ने का फल राहुल पर ही पड़ रहा है। इसलिए पढ़ता है, अकर्मक क्रिया है।जिन क्रियाओं को कर्म की जरूरत नहीं पडती या जो क्रिया प्रश्न पूछने पर कोई उत्तर नहीं देती, उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं।
या जिन क्रियाओं का फल और व्यापर कर्ता को मिलता है, उन क्रिया को अकर्मक क्रिया कहते हैं।

अकर्मक क्रिया के कुछ उदाहरण वाक्य
राम बचाता है।
राम दौड़ता है।
सांप रेंगता है।
छाया हंसती है।
मेघनाथ चिल्लाता है।
जैसा कि आपने ऊपर दिए गए वाक्यों में देख सकते हैं कि दौड़ता हैं, रेंगता है, हंसती है, चिल्लाता है आदि  वाक्यों में कर्म का अभाव है एवं क्रिया का फल करता पर ही पड़ रहा है। इसलिए ये सभी उदाहरण अकर्मक क्रिया के अंतर्गत ही आयेंगे।
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2) सकर्मक क्रिया

जिस क्रिया में कर्म का होना ज़रूरी होता है, उस क्रिया को सकर्मक क्रिया कहते हैं। इस प्रकार की क्रियाओं का असर कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है। सकर्मक अर्थात कर्म के साथ।
उदाहरण:- राज पानी पीता है। इसमें पीता है (क्रिया) का फल कर्ता पर ना पड़के कर्म पानी पर पड़ रहा है। अतः यह सकर्मक क्रिया है।

सकर्मक क्रिया के उदाहरण देखते हैं
राम फल खाता है।
श्याम गाड़ी चलाता है।
मैं कार चलाता हूँ।
जया सब्जी बनाती है।
रामू सामान लाता है।

अपने ऊपर दिए गये वाक्यों में देखा कि क्रिया का फल कर्ता पर ना पडके कर्म पर पड़ रहा है। इसलिए ये सभी वाक्य सकर्मक क्रिया के उदाहरण के अंतर्गत ही आयेगे।
सकर्मक क्रिया के भी भेद होते है
  • एककर्मक क्रिया
  • द्विकर्मक क्रिया
एककर्मक क्रिया :- जिस क्रिया में एक ही कर्म होता है उस क्रिया को एककर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे- दुर्गेश कार चलाता है। इसमें चलाता(क्रिया) का कार(कर्म) एक ही है। इसलिए यह एककर्मक क्रिया के अंतर्गत आएगा।

द्विकर्मक क्रिया :- जिस क्रिया में दो कर्म होते हैं उस क्रिया को द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। पहला कर्म सजीव होता है एवं दूसरा कर्म निर्जीव होता है।
जैसे: राम ने सीता को फूल दिए। इस उदाहरण में देना क्रिया के दो कर्म है सीता एवं फूल। अतः यह द्विकर्मक क्रिया का उदाहरण है।
संरचना के आधार पर क्रिया के चार भेद होता है
  • प्रेरणार्थक क्रिया
  • सयुंक्त क्रिया
  • कृदंत क्रिया
  • नामधातु क्रिया
प्रेरणार्थक क्रिया - जिस क्रिया से यह ज्ञात होता है कि कर्ता स्वयं काम ना करके किसी दूसरे से काम करा रहा है। जैसे- पढवाना, लिखवाना, बोलवाना आदि।

सयुंक्त क्रिया - इस क्रिया में जो किन्ही दो क्रियाओं के मिलने से बनती है तो वह सयुंक्त क्रिया कहलाती है। जैसे - ले लिया, खा लिया, चल दिया, पी लिया, दे दिया आदि।

कृदंत क्रिया - जब किसी क्रिया में प्रत्यय जोड़कर उसका नया क्रिया रूप बनाया जाए तो वह क्रिया कृदंत किया है। जैसे कि दौड़ना, भागता आदि।

नामधातु क्रिया -  ऐसी धातु जो क्रिया को छोड़कर किन्हीं अन्य शब्दों जैसे संज्ञा,विशेषण, सर्वनाम आदि से बनती है वह नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे कि - अपनाना, गर्माना आदि।

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प्रयोग की दृष्टि से क्रिया के भेद
प्रयोग की दृष्टि से क्रिया दो प्रकार की होती है-

1. रूढ़, और
2. यौगिक।
संरचना के आधार पर क्रिया के भेद
संरचना के आधार पर क्रिया के चार भेद होता है :
प्रेरणार्थक क्रिया :  जिस क्रिया से यह ज्ञात हो कि कर्ता स्वयं काम ना करके किसी और से काम करा रहा है। जैसे: बोलवाना, पढवाना, लिखवाना आदि।

नामधातु क्रिया :  ऐसी धातु जो क्रिया को छोड़कर किन्ही अन्य शब्दों जैसे संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि से बनती है वह नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे: अपनाना, गर्माना आदि।

सयुंक्त क्रिया : ऐसी क्रिया जो किन्ही दो क्रियाओं के मिलने से बनती है वह सयुंक्त क्रिया कहलाती है। जैसे: खा लिया, चल दिया, पी लिया आदि।

कृदंत क्रिया : जब किसी क्रिया में प्रत्यय जोड़कर उसका नया क्रिया रूप बनाया जाए तब वह क्रिया कृदंत किया कहलाती है। जैसे दौड़ना, भागता आदि।



व्याकरण
क्रिया हिंदी
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