भौतिकी विज्ञान(Physics questions) Part 4 टॉप 5000+ gk प्रश्न In Hindi
Physics questions Top gk 5000 part 4 In Hindi भौतिकी विज्ञान प्रश्न टॉप भौतिक शास्त्र प्रश्न के सभी प्रकार से इस लेख में सामिल किया है। जो आपको अवश्य ही पसंद आयेंगे। भौतिक विज्ञान से संबन्धित सामान्य ज्ञान Physics questions Top gk In Hindi में जो कि भौतिकी विज्ञान प्रश्न के सभी जानकारी। भौतिक शास्त्र के प्रमुख प्रश्न इसमें लिए गए है।
यदि आप किसी भी COMPITION एग्जाम की तैयारी जैसे PSC, MPPSC, SSC, MP POLICE, VYAPAM, RAILWAY, PATWARI, UPSC का अध्ययन कर रहे हैं तो ये सभी प्रश्न आपके लिए बहुत मददगार साबित होंगे ।
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भौतिक विज्ञान संबंधित प्रश्न । Physics questions Top gk In Hindi
301) विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल भिन्न-2 होती है। ध्वनि की चाल प्रत्यास्था तथा घनत्व (केवल माध्यम के गुणों) पर निर्भर करती है ।
302) ध्वनि की चाल सबसे अधिक ठोस में, उसके बाद द्रव में, और सबसे कम वायु (गैस) में होती है ।
303) वायु मे ध्वनि की चाल 332 मी./से. , जल में 1483 मी./से., और लोहे में ध्वनि की चाल 5130 मी./से. होती है ।
304) जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है, तो ध्वनि की चाल एवं तरंग दैर्ध्य बदल जाती है, जबकि आवृत्ति नहीं बदलती है
305) ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।
306) तरंग दैर्ध्य का एस. आइ. मात्रक मीटर होता है ।
307) जिन यांत्रिक तरंगो की आवृति 20Hz से 20000Hz के बीच होती है, उनकी अनुभूति हमारे कानों द्वारा होती है, इन्हे हम ध्वनि के नाम से पुकारते हैं ।
308) ध्वनि तीव्रता का मात्रक डेसीबल होता है । ध्वनि की चाल 760 मील/घण्टा या 332 मी./से.होती है ।
309) जब किसी स्रोत एवं स्रोता के मध्य आपेक्षिक गति होती है तो स्रोता को ध्वनि की आवृत्ति , वास्तविक आवृत्ति से अलग सुनाई पड़ती है, इसे डाप्लर का प्रभाव कहते हैं
310) माध्यम का ताप बढाने पर उसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है । वायु में प्रति 1’C ताप पर ध्वनि की चाल 0.61 मी./से. बढ़ जाती है ।
311) नमी युक्त वायु का घनत्व, शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है, अत - शुष्क वायु की अपेक्षा नमीं युक्त वायु में ध्वनि की चाल अधिक होती है ।
312) ध्वनि की तीव्रता स्रोत से दूरी के वर्ग के व्यूत्क्रमानुपाती होता है ।
313) अवश्रव्य तरंगें - 20Hz से नीचे की आवृति वाली ध्वनि तरंगों को अवश्रव्य तरंगें कहते हैं । इसे हमारा कान सुन नहीं सकता है ।इस प्रकार की तरंगों को बहुत बडे आकार के स्रोतों द्वारा उत्पन्न किया जाता है ।
314) श्रव्य तरंगें - 20Hz से 20000Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंग कहते हैं । इन तरंगों को हमारा कान सुन सकता है ।
315) पराश्रव्य तरंगें - 20000Hz से ऊपर की तरंगों को पराश्रव्य तरंगें कहा जाता है । मनुष्य का कान इसे नहीं सुन सकता परंतु कुछ जानवर जैसे- कुत्ता, बिल्ली, चमगादड आदि इसे सुन सकते हैं । इन तरंगों को गाल्टन की सीटी द्वारा तथा दाब विद्युत प्रभाव विधि द्वारा, एवं क्वार्टज के क्रिस्टल के कम्पनों द्वारा उत्पन्न करते हैं । इन तरंगों की आवृत्ति बहुत ऊंची होने के कारण इसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है । इनका तरंग दैर्ध्य छोटा होने के कारण इन्हे एक पतले किरण-पुंज के रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है ।
316) पराश्रव्य तरंगों का उपयोग - 1. संकेत भेजने में, 2. समुद्र की गहराई का पता लगाने में, 3. किमती कपडों, वायुयानों तथा घडियों के कल पुर्जे साफ करने में, 4. कल कारखानों की चिमनियों से कालिख साफ करने में, 5. दूध के अंदर से हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में, 6. गठिया रोग के उपचार एवं मस्तिष्क ट्यूमर का पता लगाने में ।
317) तारतत्व - तारतत्व ध्वनि का वह लक्षण है, जिससे ध्वनि को मोटी या पतली कहा जाता है । तारतत्व आवृत्ति पर निर्भर करता है । ध्वनि की आवृत्ति अधिक होने पर तारतत्व अधिक होता है, एवं ध्वनि पतली होती है । वहीं आवृत्ति कम होने पर तारतत्व कम होता है एवं ध्वनि मोटी होती है ।
318) प्रति-ध्वनि सुनने के लिए स्रोत एवं परावर्तक के बीच न्यूनतम दूरी 16.6 मी. होनी चाहिए । प्रति ध्वनि का कारण ध्वनि का परावर्तन होता है ।
319) कान पर ध्वनि का प्रभाव 1/10 से. तक रहता है ।
320) ध्वनि तरंग एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है, तो उनका अपवर्तन हो जाता है, अर्थात् वह अपने पथ से विचलित हो जाती है ।
321) ध्वनि के अपवर्तन के कारण ध्वनि दिन की अपेक्षा रात को अधिक दूरी तक सुनाई पड़ती है ।
322) पराश्रव्य तरंगों का उपयोग अल्ट्रासाउण्ड के नाम से चिकित्सा विज्ञान में शरीर के भीतरी अंगों के चित्रण के लिए किया जाता है। इसे अल्ट्रासोनीग्राफी कहते हैं।
323) विद्युत चुम्बकीय तरंगों के संचरण के लिए पदार्थ माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है । विद्युत चुम्बकीय तरंगों की चाल, निर्वात में 3.0x108 मी.से.-1 होती है ।
324) आवृत्ति का मात्रक हर्ट्ज होताहै ।
325) किसी गैस में केवल अनुदैर्ध्य तरंगें उत्पन्न हो सकती हैं ।
326) दो उत्तरोत्तर श्रृंग अथवा दो उत्तरोत्तर गर्त्त के बीच की दूरी हो तरंगदैर्ध्य कहते हैं ।
327) ध्वनि का वेग सूखी हवा से नम हवा में अधिक होता है ।
328) सर्वाधिक ऊर्जा दृश्य-प्रकाश तरंगों मे होता है ।
329) जब सेना पुल को पार करती है, तो सैनिकों को कदम से कदम मिलाकर न चलने का निर्देश दिया जाता है, क्योंकि पैरों से उत्पन्न ध्वनि के अनुनाद से पुल टूटने का खतरा रहता है ।
330) उष्मा वह ऊर्जा है, जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में केवल तापांतर के कारण स्थानांतरित होती है । किसी वस्तु में निहीत उष्मा उस वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करती है। उष्मा का स्थानांतरण उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है ।
331) पानी में पत्थर डालने पर पानी की सतह पर केवल अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न होती हैं ।
332) वायु में ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ एवं अनुदैर्ध्य दोनों प्रकार की होती हैं
333) साधारण बातचीत की ध्वनि की तीव्रता 30 - 40 डेसीबल, जोर से बातचीत की तीव्रता 50 - 60 डेसीबल तथा जेट विमान के तरंग की तीव्रता 140 - 150 डेसीबल होती है।
334) ध्वनि के व्यतिकरण के कारण रेडियो में कभी तीव्र एवं कभी मंद आवाज सुनाई देती है
335) 1939 में सं.रा.अमेरिका का टैकोमा पुल यांत्रिक अनुनाद के कारण क्षतिग्रस्त हो गया ।
336) मैक संख्या का उपयोग विमान की चाल निर्धारण मे किया जाता है ।
337) रडार का प्रयोग रेडियो तरंग से पदार्थों की उपस्थिति और स्थान निर्धारण मे किया जाता है ।
338) ध्वनि निर्वात् में गमन नहीं कर सकती है
339) मनुष्यों के लिए शोर की सह-सीमा लगभग 85 डेसीबल होती है ।
340) रेडियो तरंगें आयन मण्डल से परावर्तित होकर पृथ्वी पर वापस आती हैं ।
341) सोनोग्राफी में पराश्रव्य तरंगों का उपयोग किया जाता है ।
342) 1 ग्राम शुद्ध जल का ताप 14.5 C से 15.5 C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक उष्मा की मात्रा को 1 कैलोरी कहते हैं ।
302) ध्वनि की चाल सबसे अधिक ठोस में, उसके बाद द्रव में, और सबसे कम वायु (गैस) में होती है ।
303) वायु मे ध्वनि की चाल 332 मी./से. , जल में 1483 मी./से., और लोहे में ध्वनि की चाल 5130 मी./से. होती है ।
304) जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है, तो ध्वनि की चाल एवं तरंग दैर्ध्य बदल जाती है, जबकि आवृत्ति नहीं बदलती है
305) ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।
306) तरंग दैर्ध्य का एस. आइ. मात्रक मीटर होता है ।
307) जिन यांत्रिक तरंगो की आवृति 20Hz से 20000Hz के बीच होती है, उनकी अनुभूति हमारे कानों द्वारा होती है, इन्हे हम ध्वनि के नाम से पुकारते हैं ।
308) ध्वनि तीव्रता का मात्रक डेसीबल होता है । ध्वनि की चाल 760 मील/घण्टा या 332 मी./से.होती है ।
309) जब किसी स्रोत एवं स्रोता के मध्य आपेक्षिक गति होती है तो स्रोता को ध्वनि की आवृत्ति , वास्तविक आवृत्ति से अलग सुनाई पड़ती है, इसे डाप्लर का प्रभाव कहते हैं
310) माध्यम का ताप बढाने पर उसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है । वायु में प्रति 1’C ताप पर ध्वनि की चाल 0.61 मी./से. बढ़ जाती है ।
311) नमी युक्त वायु का घनत्व, शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है, अत - शुष्क वायु की अपेक्षा नमीं युक्त वायु में ध्वनि की चाल अधिक होती है ।
312) ध्वनि की तीव्रता स्रोत से दूरी के वर्ग के व्यूत्क्रमानुपाती होता है ।
313) अवश्रव्य तरंगें - 20Hz से नीचे की आवृति वाली ध्वनि तरंगों को अवश्रव्य तरंगें कहते हैं । इसे हमारा कान सुन नहीं सकता है ।इस प्रकार की तरंगों को बहुत बडे आकार के स्रोतों द्वारा उत्पन्न किया जाता है ।
314) श्रव्य तरंगें - 20Hz से 20000Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंग कहते हैं । इन तरंगों को हमारा कान सुन सकता है ।
315) पराश्रव्य तरंगें - 20000Hz से ऊपर की तरंगों को पराश्रव्य तरंगें कहा जाता है । मनुष्य का कान इसे नहीं सुन सकता परंतु कुछ जानवर जैसे- कुत्ता, बिल्ली, चमगादड आदि इसे सुन सकते हैं । इन तरंगों को गाल्टन की सीटी द्वारा तथा दाब विद्युत प्रभाव विधि द्वारा, एवं क्वार्टज के क्रिस्टल के कम्पनों द्वारा उत्पन्न करते हैं । इन तरंगों की आवृत्ति बहुत ऊंची होने के कारण इसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है । इनका तरंग दैर्ध्य छोटा होने के कारण इन्हे एक पतले किरण-पुंज के रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है ।
316) पराश्रव्य तरंगों का उपयोग - 1. संकेत भेजने में, 2. समुद्र की गहराई का पता लगाने में, 3. किमती कपडों, वायुयानों तथा घडियों के कल पुर्जे साफ करने में, 4. कल कारखानों की चिमनियों से कालिख साफ करने में, 5. दूध के अंदर से हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में, 6. गठिया रोग के उपचार एवं मस्तिष्क ट्यूमर का पता लगाने में ।
317) तारतत्व - तारतत्व ध्वनि का वह लक्षण है, जिससे ध्वनि को मोटी या पतली कहा जाता है । तारतत्व आवृत्ति पर निर्भर करता है । ध्वनि की आवृत्ति अधिक होने पर तारतत्व अधिक होता है, एवं ध्वनि पतली होती है । वहीं आवृत्ति कम होने पर तारतत्व कम होता है एवं ध्वनि मोटी होती है ।
318) प्रति-ध्वनि सुनने के लिए स्रोत एवं परावर्तक के बीच न्यूनतम दूरी 16.6 मी. होनी चाहिए । प्रति ध्वनि का कारण ध्वनि का परावर्तन होता है ।
319) कान पर ध्वनि का प्रभाव 1/10 से. तक रहता है ।
320) ध्वनि तरंग एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है, तो उनका अपवर्तन हो जाता है, अर्थात् वह अपने पथ से विचलित हो जाती है ।
321) ध्वनि के अपवर्तन के कारण ध्वनि दिन की अपेक्षा रात को अधिक दूरी तक सुनाई पड़ती है ।
322) पराश्रव्य तरंगों का उपयोग अल्ट्रासाउण्ड के नाम से चिकित्सा विज्ञान में शरीर के भीतरी अंगों के चित्रण के लिए किया जाता है। इसे अल्ट्रासोनीग्राफी कहते हैं।
323) विद्युत चुम्बकीय तरंगों के संचरण के लिए पदार्थ माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है । विद्युत चुम्बकीय तरंगों की चाल, निर्वात में 3.0x108 मी.से.-1 होती है ।
324) आवृत्ति का मात्रक हर्ट्ज होताहै ।
325) किसी गैस में केवल अनुदैर्ध्य तरंगें उत्पन्न हो सकती हैं ।
326) दो उत्तरोत्तर श्रृंग अथवा दो उत्तरोत्तर गर्त्त के बीच की दूरी हो तरंगदैर्ध्य कहते हैं ।
327) ध्वनि का वेग सूखी हवा से नम हवा में अधिक होता है ।
328) सर्वाधिक ऊर्जा दृश्य-प्रकाश तरंगों मे होता है ।
329) जब सेना पुल को पार करती है, तो सैनिकों को कदम से कदम मिलाकर न चलने का निर्देश दिया जाता है, क्योंकि पैरों से उत्पन्न ध्वनि के अनुनाद से पुल टूटने का खतरा रहता है ।
330) उष्मा वह ऊर्जा है, जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में केवल तापांतर के कारण स्थानांतरित होती है । किसी वस्तु में निहीत उष्मा उस वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करती है। उष्मा का स्थानांतरण उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है ।
331) पानी में पत्थर डालने पर पानी की सतह पर केवल अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न होती हैं ।
332) वायु में ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ एवं अनुदैर्ध्य दोनों प्रकार की होती हैं
333) साधारण बातचीत की ध्वनि की तीव्रता 30 - 40 डेसीबल, जोर से बातचीत की तीव्रता 50 - 60 डेसीबल तथा जेट विमान के तरंग की तीव्रता 140 - 150 डेसीबल होती है।
334) ध्वनि के व्यतिकरण के कारण रेडियो में कभी तीव्र एवं कभी मंद आवाज सुनाई देती है
335) 1939 में सं.रा.अमेरिका का टैकोमा पुल यांत्रिक अनुनाद के कारण क्षतिग्रस्त हो गया ।
336) मैक संख्या का उपयोग विमान की चाल निर्धारण मे किया जाता है ।
337) रडार का प्रयोग रेडियो तरंग से पदार्थों की उपस्थिति और स्थान निर्धारण मे किया जाता है ।
338) ध्वनि निर्वात् में गमन नहीं कर सकती है
339) मनुष्यों के लिए शोर की सह-सीमा लगभग 85 डेसीबल होती है ।
340) रेडियो तरंगें आयन मण्डल से परावर्तित होकर पृथ्वी पर वापस आती हैं ।
341) सोनोग्राफी में पराश्रव्य तरंगों का उपयोग किया जाता है ।
342) 1 ग्राम शुद्ध जल का ताप 14.5 C से 15.5 C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक उष्मा की मात्रा को 1 कैलोरी कहते हैं ।
यदि आपको ये भौतिक विज्ञान समान्य ज्ञान के प्रश्न Physics questions (भौतिक विज्ञान) संबंधित प्रश्न Top gk In Hindi आपको कैसा लगा रहा है नीचे कमेंट अवश्य करके जाना।
343) सेल्सियस पैमाना - इसका आविष्कार स्वीडन के वैज्ञानिक सेल्सियस ने किया था । इस पैमाने में 760 मिली.मी. पारा के स्तम्भ के दाब पर शुद्ध जल के हिमांक बिंदु को 0 C व भाप बिंदु को 100 C अंकित किया गया है । इसके बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाटा गया है ।
344) फारेनहाइट पैमाना - इसका आविष्कार जर्मन वैज्ञानिक फारेनहाइट ने किया, इसमें जल के हिमांक को 32 F एवं भाप बिंदु को 212 F मान कर बीच की दूरी को 180 बराबर भागों में बांटा गया है ।
345) केल्विन पैमाना - इसे केल्विन के द्वारा तैयार किया गया । इस पैमाने की विशेषता यह है कि इसका शून्य (0K) सिद्धांतत - प्रकृति में न्यूनतम सम्भव ताप होता है, जिस पर पदार्थ के अणुओं की गतिज ऊर्जा शून्य मानी जाती है । गतिज ऊर्जा शून्य से कम नहीं हो सकती है, पदार्थ का ताप भी इससे कम नहीं हो सकता । ताप का यह शून्य मान निरपेक्ष होने के कारण इसे परम शून्य भी कहते हैं तथा इस ताप-पैमाने को परम पैमाना कहते हैं । केल्विन पैमाने में हिमांक को 273K एवं भाप बिंदु को 373K मानकर बीच की दूरी को 100 भागों में बांटा गया है ।
346) सामान्य गणनाओं में -273 C को परम-शून्य माना जाता है ।
347) पारे का गलनांक -39 C तथा क्वथनांक 357 C होता है । अत - पारे द्वारा काफी उच्च ताप लगभग 245 C तथा काफी निम्न ताप -30 C तक माप सकते हैं ।
358) पारा उष्मा का अच्छा चालक होता है । यह अन्य द्रवों की अपेक्षा शुद्ध अवस्था में प्राप्त हो सकता है ।
359) धातु के रेखीय प्रसार गुणांक, क्षेत्रीय प्रसार गुणांक एवं आयतन प्रसार गुणांक में अनुपात 1 - 2 - 3 का होता है ।
360) द्रव का आभासी प्रसार गुणांक उसके वास्तविक प्रसार गुणांक की तुलना में कम होता है ।
361) गैस का आयतन प्रसार गुणांक ठोस के आयतन प्रसार गुणांक से 200 गुणा तथा द्रवों के आयतन प्रसार गुणांक से 20 गुणा अधिक होता है ।
362) कमरे में रखे रेफ्रिजरेटर का दरवाजा खोल दिया जाए तो कमरे का ताप बढ़ जायेगा
363) पहाडों पर खाना देर से पकता है, क्योंकि वायुमण्डलीय दाब कम होने से जल का क्वथनांक घट जाता है ।
364) निम्न ताप मापने के लिए एल्कोहल तापमापी का प्रयोग किया जाता है । एल्कोहल -115 C पर जमता है ।
365) सेल्सियस तथा केल्विन में सम्बंध - K=C+273
366) डाक्टरी थर्मामीटर - स्वस्थ मनुष्य के शरीर का सामान्य ताप 98.4 F होता है । इस तापमापी में 92 F से 110 F तक निशान बने होते हैं । सेल्सियस पैमाने पर स्वस्थ मनुष्य का ताप 37 C तथा केल्विन पर यह ताप 310K होता है ।
343) सेल्सियस पैमाना - इसका आविष्कार स्वीडन के वैज्ञानिक सेल्सियस ने किया था । इस पैमाने में 760 मिली.मी. पारा के स्तम्भ के दाब पर शुद्ध जल के हिमांक बिंदु को 0 C व भाप बिंदु को 100 C अंकित किया गया है । इसके बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाटा गया है ।
344) फारेनहाइट पैमाना - इसका आविष्कार जर्मन वैज्ञानिक फारेनहाइट ने किया, इसमें जल के हिमांक को 32 F एवं भाप बिंदु को 212 F मान कर बीच की दूरी को 180 बराबर भागों में बांटा गया है ।
345) केल्विन पैमाना - इसे केल्विन के द्वारा तैयार किया गया । इस पैमाने की विशेषता यह है कि इसका शून्य (0K) सिद्धांतत - प्रकृति में न्यूनतम सम्भव ताप होता है, जिस पर पदार्थ के अणुओं की गतिज ऊर्जा शून्य मानी जाती है । गतिज ऊर्जा शून्य से कम नहीं हो सकती है, पदार्थ का ताप भी इससे कम नहीं हो सकता । ताप का यह शून्य मान निरपेक्ष होने के कारण इसे परम शून्य भी कहते हैं तथा इस ताप-पैमाने को परम पैमाना कहते हैं । केल्विन पैमाने में हिमांक को 273K एवं भाप बिंदु को 373K मानकर बीच की दूरी को 100 भागों में बांटा गया है ।
346) सामान्य गणनाओं में -273 C को परम-शून्य माना जाता है ।
347) पारे का गलनांक -39 C तथा क्वथनांक 357 C होता है । अत - पारे द्वारा काफी उच्च ताप लगभग 245 C तथा काफी निम्न ताप -30 C तक माप सकते हैं ।
358) पारा उष्मा का अच्छा चालक होता है । यह अन्य द्रवों की अपेक्षा शुद्ध अवस्था में प्राप्त हो सकता है ।
359) धातु के रेखीय प्रसार गुणांक, क्षेत्रीय प्रसार गुणांक एवं आयतन प्रसार गुणांक में अनुपात 1 - 2 - 3 का होता है ।
360) द्रव का आभासी प्रसार गुणांक उसके वास्तविक प्रसार गुणांक की तुलना में कम होता है ।
361) गैस का आयतन प्रसार गुणांक ठोस के आयतन प्रसार गुणांक से 200 गुणा तथा द्रवों के आयतन प्रसार गुणांक से 20 गुणा अधिक होता है ।
362) कमरे में रखे रेफ्रिजरेटर का दरवाजा खोल दिया जाए तो कमरे का ताप बढ़ जायेगा
363) पहाडों पर खाना देर से पकता है, क्योंकि वायुमण्डलीय दाब कम होने से जल का क्वथनांक घट जाता है ।
364) निम्न ताप मापने के लिए एल्कोहल तापमापी का प्रयोग किया जाता है । एल्कोहल -115 C पर जमता है ।
365) सेल्सियस तथा केल्विन में सम्बंध - K=C+273
366) डाक्टरी थर्मामीटर - स्वस्थ मनुष्य के शरीर का सामान्य ताप 98.4 F होता है । इस तापमापी में 92 F से 110 F तक निशान बने होते हैं । सेल्सियस पैमाने पर स्वस्थ मनुष्य का ताप 37 C तथा केल्विन पर यह ताप 310K होता है ।
367) -40 C ताप पर फारेनहाइट तथा सेल्सियस ताप के संख्यात्मक मान समान होते हैं ।
368) परम शून्य ताप का मान फारेनहाइट पैमाने पर -459.4 F होता है ।
369) जल 0 C से 3.98 C (लगभग 4 C) तक गरम करने पर आयतन में बढ़ना शुरू कर देता है । अर्थात् 4 C पर जल का घनत्व अधिकतम होता है ।
370) पदार्थों में द्रव से ठोस अवस्था में जाने पर पदार्थ का आयतन घटता है तथा घनत्व बढ़ता है, किंतु जल के हिमायन पर द्रव जल से ठोस बर्फ का आयतन अधिक तथा घनत्व कम होता है । इसी कारण अन्य ठोस द्रव में डूब जाते हैं जबकि बर्फ जल पर तैरती है ।
371) कमरे का सामान्य तापमान 27 या 80.6 होता है ।
372) पायरोमीटर से सूर्य के ताप को मापा जाता है । पायरोमीटर विकिरण पर आधारित है
373) उष्मा का एक स्थान से दूसरे स्थान जाने को उष्मा का संचरण कहते हैं ।उष्मा संचरण की तीन विधियां चालन, संवहन एवं विकिरण हैं ।
374) चालन - चालन के द्वारा उष्मा, पदार्थ में एक स्थान से दूसरे स्थान तक, पदार्थ के कणों का अपने स्थान का परिवर्तन किये बिना पहुंचती है । ठोसों एवं पारे मे उष्मा का संचरण केवल चालन विधि द्वारा होता है ।
375) संवहन - इस विधि में उष्मा का संचरण पदार्थ के कणों के स्थानांतरण के द्वारा होता है । इस प्रकार पदार्थ कणों के स्थानांतरण से धाराएं बहती हैं जिन्हे संवहन कहते हैं । गैसों एवं द्रवों में उष्मा का संचरण संवहन द्वारा होता है ।
376) वायुमण्डल संवहन विधि द्वारा गर्म होता है ।
377) विकिरण - इस विधि में उष्मा गरम वस्तु से ठण्डी वस्तु की ओर बिना माध्यम को गरम किए प्रकाश की चाल से सीधी रेखा में संचरित होती है । सूर्य से ऊर्जा इसी विधि से पृथ्वी को प्राप्त होती है ।
378) विकिरण के कारण ही रेगिस्तान दिन मे बहुत गरम तथा रात मे बहुत ठण्डे होते हैं । बादलो वाली रात, स्वच्छ आकाश वाली रात से अधिक गरम होती है
379) चिकने एवं चमकदार पृष्ठों की तुलना में खुरदुरे पृष्ठों से उष्मा-उत्सर्जन की दर अधिक होती है ।
380) आदर्श कृष्णिका की अवशोषण क्षमता 1 होती है ।
381) उष्मा संचरण सर्वाधिक तीव्र वेग से विकिरण द्वारा होता है ।
382) स्वतंत्र गति करते हुए भू-उपग्रह में संवहन नहीं होता है ।
383) यदि किसी वस्तु को ठण्डा करते जाएं, तो -273 C ताप पर वस्तु से उष्मा का विकिरण रूक जायेगा ।
384) दो वस्तुओं के तापांतर के कारण उनके बीच स्थानांतरित ऊर्जा को उष्मीय ऊर्जा कहते हैं । इसका एस.आइ.मात्रक जूल होता है ।
385) किरचौफ का नियम - इस के अनुसार अच्छे अवशोषक ही अच्छे उत्सर्जक होते हैं । अंधेरे कमरे में यदि एक काली और एक सफेद वस्तु को समान ताप पर गरम करके रखा जार तो काली वस्तु अधिक विकिरण उत्सर्जित करेगी, अत - काली वस्तु अंधेरे में अधिक चमकेगी ।
386) बॉयल के नियमानुसार P1 V1 = P2 V2
387) चार्ल्स के नियमानुसार V1/T1 = V2/ T2
388) आदर्श गैस समीकरण के अनुसार PV = n RT जहाँ, n = मोलों की संख्या, R = सार्वत्रिक गैस नियतांक
389) समान ताप एवं दाब पर सभी गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है ।
390) समान ताप एवं दाब (S.T.P.) पर विभिन्न गैसों के एक ग्राम अणु का आयतन 22.4 लीटर होता है तथा इसमें अणुओं की संख्या 6.023 1023 होती है, इसे एवोगैड्रो नियतांक भी कहते हैं ।
391) 1 ग्राम जल का ताप, 14.5 C से 15.5 C तक बढाने में जितनी उष्मा की आवश्यकता होती है, उसे 1 कैलोरी कहते हैं ।
1कैलोरी= 4.18 जूल=4.2 जूल लगभग
1 किलो कैलोरी = 4.18 103 जूल ।
392) विशिष्ट उष्मा - किसी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा, उष्मा की वह मात्रा है, जो उस पदार्थ के एकांक द्रव्यमान में एकांक ताप वृद्धि उत्पन्न करती है । विशिष्ट उष्मा का एस.आई. मात्रक जूल/किग्रा./केल्विन होता है ।
393) जल की 1 ग्राम मात्रा का ताप 1 C बढाने के लिए 1 कैलोरी उष्मा की आवश्यकता होती है । अत - जल की विशिष्ट उष्मा धरिता एक कैलोरी/ग्राम C है । जल की विशिष्ट उष्मा धरिता अन्य पदार्थों की तुलना में सबसे अधिक है ।
394) कोई वस्तु जैसे-जैसे ठण्डी होती जाएगी उसके ठण्डा होने की दर कम होती जायेगी ।
395) अवस्था परिवर्तन में पदार्थ का ताप नहीं बदलता है ।
396) प्राय - गलनांक एवं हिमांक दोनों बराबर होता है ।
397) जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर सिकुड़ते हैं, जैसे-बर्फ,उनका गलनांक दाब बढ़ाने पर घटता है, तथा जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर फैलते हैं, उनका गलनांक दाब बढानें पर बढ़ता है ।
398) अशुद्धि मिलाने से जैसे बर्फ में नमक मिलाने से गलनांक घटता है ।
399) क्वथनांक - निश्चित ताप पर द्रव का वाष्प में बदलना वाष्पन कहलाता है, तथा इस निश्चित ताप को क्वथनांक कहते हैं ।
400) संघनन - निश्चित ताप पर वाष्प का द्रव में बदलना संघनन कहलाता है ।
368) परम शून्य ताप का मान फारेनहाइट पैमाने पर -459.4 F होता है ।
369) जल 0 C से 3.98 C (लगभग 4 C) तक गरम करने पर आयतन में बढ़ना शुरू कर देता है । अर्थात् 4 C पर जल का घनत्व अधिकतम होता है ।
370) पदार्थों में द्रव से ठोस अवस्था में जाने पर पदार्थ का आयतन घटता है तथा घनत्व बढ़ता है, किंतु जल के हिमायन पर द्रव जल से ठोस बर्फ का आयतन अधिक तथा घनत्व कम होता है । इसी कारण अन्य ठोस द्रव में डूब जाते हैं जबकि बर्फ जल पर तैरती है ।
371) कमरे का सामान्य तापमान 27 या 80.6 होता है ।
372) पायरोमीटर से सूर्य के ताप को मापा जाता है । पायरोमीटर विकिरण पर आधारित है
373) उष्मा का एक स्थान से दूसरे स्थान जाने को उष्मा का संचरण कहते हैं ।उष्मा संचरण की तीन विधियां चालन, संवहन एवं विकिरण हैं ।
374) चालन - चालन के द्वारा उष्मा, पदार्थ में एक स्थान से दूसरे स्थान तक, पदार्थ के कणों का अपने स्थान का परिवर्तन किये बिना पहुंचती है । ठोसों एवं पारे मे उष्मा का संचरण केवल चालन विधि द्वारा होता है ।
375) संवहन - इस विधि में उष्मा का संचरण पदार्थ के कणों के स्थानांतरण के द्वारा होता है । इस प्रकार पदार्थ कणों के स्थानांतरण से धाराएं बहती हैं जिन्हे संवहन कहते हैं । गैसों एवं द्रवों में उष्मा का संचरण संवहन द्वारा होता है ।
376) वायुमण्डल संवहन विधि द्वारा गर्म होता है ।
377) विकिरण - इस विधि में उष्मा गरम वस्तु से ठण्डी वस्तु की ओर बिना माध्यम को गरम किए प्रकाश की चाल से सीधी रेखा में संचरित होती है । सूर्य से ऊर्जा इसी विधि से पृथ्वी को प्राप्त होती है ।
378) विकिरण के कारण ही रेगिस्तान दिन मे बहुत गरम तथा रात मे बहुत ठण्डे होते हैं । बादलो वाली रात, स्वच्छ आकाश वाली रात से अधिक गरम होती है
379) चिकने एवं चमकदार पृष्ठों की तुलना में खुरदुरे पृष्ठों से उष्मा-उत्सर्जन की दर अधिक होती है ।
380) आदर्श कृष्णिका की अवशोषण क्षमता 1 होती है ।
381) उष्मा संचरण सर्वाधिक तीव्र वेग से विकिरण द्वारा होता है ।
382) स्वतंत्र गति करते हुए भू-उपग्रह में संवहन नहीं होता है ।
383) यदि किसी वस्तु को ठण्डा करते जाएं, तो -273 C ताप पर वस्तु से उष्मा का विकिरण रूक जायेगा ।
384) दो वस्तुओं के तापांतर के कारण उनके बीच स्थानांतरित ऊर्जा को उष्मीय ऊर्जा कहते हैं । इसका एस.आइ.मात्रक जूल होता है ।
385) किरचौफ का नियम - इस के अनुसार अच्छे अवशोषक ही अच्छे उत्सर्जक होते हैं । अंधेरे कमरे में यदि एक काली और एक सफेद वस्तु को समान ताप पर गरम करके रखा जार तो काली वस्तु अधिक विकिरण उत्सर्जित करेगी, अत - काली वस्तु अंधेरे में अधिक चमकेगी ।
386) बॉयल के नियमानुसार P1 V1 = P2 V2
387) चार्ल्स के नियमानुसार V1/T1 = V2/ T2
388) आदर्श गैस समीकरण के अनुसार PV = n RT जहाँ, n = मोलों की संख्या, R = सार्वत्रिक गैस नियतांक
389) समान ताप एवं दाब पर सभी गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है ।
390) समान ताप एवं दाब (S.T.P.) पर विभिन्न गैसों के एक ग्राम अणु का आयतन 22.4 लीटर होता है तथा इसमें अणुओं की संख्या 6.023 1023 होती है, इसे एवोगैड्रो नियतांक भी कहते हैं ।
391) 1 ग्राम जल का ताप, 14.5 C से 15.5 C तक बढाने में जितनी उष्मा की आवश्यकता होती है, उसे 1 कैलोरी कहते हैं ।
1कैलोरी= 4.18 जूल=4.2 जूल लगभग
1 किलो कैलोरी = 4.18 103 जूल ।
392) विशिष्ट उष्मा - किसी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा, उष्मा की वह मात्रा है, जो उस पदार्थ के एकांक द्रव्यमान में एकांक ताप वृद्धि उत्पन्न करती है । विशिष्ट उष्मा का एस.आई. मात्रक जूल/किग्रा./केल्विन होता है ।
393) जल की 1 ग्राम मात्रा का ताप 1 C बढाने के लिए 1 कैलोरी उष्मा की आवश्यकता होती है । अत - जल की विशिष्ट उष्मा धरिता एक कैलोरी/ग्राम C है । जल की विशिष्ट उष्मा धरिता अन्य पदार्थों की तुलना में सबसे अधिक है ।
394) कोई वस्तु जैसे-जैसे ठण्डी होती जाएगी उसके ठण्डा होने की दर कम होती जायेगी ।
395) अवस्था परिवर्तन में पदार्थ का ताप नहीं बदलता है ।
396) प्राय - गलनांक एवं हिमांक दोनों बराबर होता है ।
397) जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर सिकुड़ते हैं, जैसे-बर्फ,उनका गलनांक दाब बढ़ाने पर घटता है, तथा जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर फैलते हैं, उनका गलनांक दाब बढानें पर बढ़ता है ।
398) अशुद्धि मिलाने से जैसे बर्फ में नमक मिलाने से गलनांक घटता है ।
399) क्वथनांक - निश्चित ताप पर द्रव का वाष्प में बदलना वाष्पन कहलाता है, तथा इस निश्चित ताप को क्वथनांक कहते हैं ।
400) संघनन - निश्चित ताप पर वाष्प का द्रव में बदलना संघनन कहलाता है ।
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