विषाणु क्या होते है । खोज किसने की । प्रकार । की संरचना Virus in Hindi

विषाणु क्या है इसकी खोज किसने की, इसके प्रकार/Vishanu kya hai uski khoj kisane ki,iske prakar

हमने इसमें विषाणु के बारे में बताया है उसकी खोज,संरचना,लक्षण और प्रकार बताया है
विषाणु क्या होते है । खोज किसने की । प्रकार । की संरचना Virus in Hindi
विषाणु क्या है
विषाणु(Virus) एक प्रकार के संक्रमक फैलने वाला घटक (infectious agent) होते हैं हमेशा दूसरे जीवों के जीवित कोशिकाओं में पनपते हैं।और उन्हें नुकसान पहुंचते है। [विषाणु क्या होते है । खोज किसने की । प्रकार । की संरचना Virus in Hindi]

ये हर प्रकार के प्राणियों प्रभावित करने में सक्षम हैं।यह बैक्टीरिया को भी प्रभावित कर सकते है। यह सुक्ष्म परजीवी (parasites)  होते हैं जिनका आकार अत्यधिक छोटा(बैक्टीरिया से भी छोटा) होता है। यह खुद से पनपने(reproduce) में अक्षम हैं और  मेजबान शरीर के बाहर पनपते(पलते) रहते हैं।

विषाणुओं के कारण बहुत सारे भयानक रोगों का संचारण हुआ है। 2009 में भारत में स्वाइन फ्लू हुआ एवं 2014 में अफ़्रीकी देशों में इबोला नामक बीमारी फैला था, इन्ही के कारण हुआ था। जिससे कई बहुमूल्य जानें गयीं थी।
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विषाणु की खोज

विषाणु(virus) की खोज रूसी वनस्पति वैज्ञानिक इवानोवस्की (Ivanovsky) ने 1892 ई. में की थी ।उन्होंने तम्बाकू की पत्ती में मोजैक रोग (Mosaic disease) के कारण की खोज करते समय विषाणु के बारे में बताया  था। लुई पाश्चर तथा बीजरिक ने इन्हें जीवित तरल संक्रामक का नाम दिया। एड्स (AIDS) के विषाणु को 1986 ई. में मानव प्रतिरक्षा अपूर्णता वाइरस (HIV) नाम दिया गया।

विषाणु बहुत छोटे, परजीवी, अकोशिकीय (Noncellular) और विशेष न्यूक्लियो प्रोटीन कण है, जो जीवित परपोषी के अन्दर रहकर जनन(Reproduction) करते हैं।इन्हे केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ही देखा जा सकता है।विषाणुओं के अध्ययन करने वाली विज्ञान को विषाणु विज्ञान (Virology) कहा जाता है
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विषाणु की संरचना (Structure of virus in Hindi

विषाणु संरचना में प्रोटीन के आवरण से घिरा न्यूक्लिक अम्ल होता है। बाहरी आवरण या capsid में बहुत सी प्रोटीन इकाइयाँ होती हैं जिनेcapsomere कहते हैं। सम्पूर्ण कण को विरियन (Virion) कहते हैं।
विषाणु को हम किसी भी तरह से जीवित प्राणी नहीं मान सकते हैं।उनके अंदर वो सभी चीजें होती है जो एक जीवित प्राणी में होती हैं जैसे कि न्यूक्लेइक एसिड, डीएनए, आरएनए आदि।लेकिन वे नुक्लेइक एसिड में पाए जाने वाले जानकारियों के अनुसार स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकते हैं।

विषाणु उन परजीवी प्राणियों की श्रेणी में आते हैं जो मेजबान कोशिकाओं के अंदर अपनी पनपते बनाते रहते हैं। मेजबान कोशिकाओं के बाहर विषाणु स्वयं का प्रजनन नहीं कर सकते क्योंकि उनके अंदर वह जटिल तंत्र नहीं पाया जाता जोकि कोशिकाओं के अंदर होता है।

मेजबान के कोशिका तंत्रो में पाए जाने वाले DNA कि मदद से विषाणु अपना RNA बना लेते हैं, इस पूरी प्रक्रिया को प्रतिलेखन (transcription) कहा जाता है एवं RNA में दिए गए संकेतों के हिसाब से प्रोटीन बना लेते हैं जिसे अनुवादन (translation) प्रक्रिया कहा जाता है।

विषाणु अच्छी तरह से एकत्रित हो जाते है तब से संक्रमण फैलाने योग्य हो जाते हैं, उनको वायरन कहा जाता है। इसके संरचना में नुक्लेइक एसिड पाया जाता है जो प्रोटीन से घिरा होता है।इसको कैप्सिड कहा जाता है जोकि एसिड को न्यूक्लिअसिस नाम के एंजाइम से नष्ट होने में बचाते हैं। कुछ विषाणुओं के पास सुरक्षा के लिए दूसरी परत भी होती है जो मेजबान के कोशिका झिल्ली का भाग होता है।


विषाणु के प्रकार (Types of virus in Hindi : 

परपोषी प्रकृति के अनुसार विषाणु मुख्यत तीन
प्रकार के होते हैं-
1. पादप विषाणु (Plant virus) :
 इन के अंदर न्यूक्लिक अम्ल आर.एन. ए. (RNA) होता है।
जैसे-टी.एम.वी.(T.M.V)


2. जन्तु विषाणु (Animal virus): 

इनमें न्यूक्लिक अम्ल सामान्यतः DNA होता है और कभी-कभी RNA भी होता है। जैसे-इनफ्लूएन्जा वायरस, मम्पस वायरस आदि।

3. बैकिद्रियीफेज (Bacteriophage) या जीवाणुभोजी :
 यह केवल जीवाणुओं (Bactena) के ऊपर आवित रहते हैं। इनमें न्यूक्लिक अम्ल के रूप में DNA पाया जाता है। जैसे- टी-2
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विषाणु के निर्जीव होने के लक्षण

1. ये कोशा रूप में नहीं होते हैं।
2. इनको क्रिस्टल (Crystal) बनाकर निर्जीव पदार्थ की भांति बोतल में भरकर कई वर्षों
तक रखा जा सकता है।

विषाणु के सजीव होने के लक्षण
1. इनके न्यूक्लिक अम्ल का द्विगुणन होता है।
2. ये किसी जीवित कोशिका में पहुँचते ही सक्रिय हो जाते हैं और एन्जाइमों का संश्लेषण
करने लगते हैं।

विषाणुओं में प्रजनन (Reproduction in virus): विषाणु गुणन (Multiplication) की
विधि के द्वारा प्रजनन करते हैं।

विषाणुओं से लाभ:
विषाणुओं से निम्नलिखित लाभ हैं-

1.विषाणओं में सजीव एवं निर्जीव दोनों के गुण पाए जाने के कारण इसका उपयोग जैव विकास के अध्ययन में किया जाता है।
2. विषाणुओं की सहायता से जल को खराब होने से बचाया जाता है। जीवाणुभोजी
जल को सड़ने से रोकता है।
3, ये नीले-हरे शैवालों की सफाई करने में सहायक होते हैं।

विषाणु से हानि :
विषाणुओं से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं-
1. विषाणुओं से पौधों में अनेक प्रकार के रोग होते हैं। टोबैको मोजैक वायरस (TMV) से
तम्बाकू की पत्तियों में मौजेक रोग होता है। बेनाना वायरस-1 के द्वारा केले में बंकी टॉप ऑफ बनाना (Bunchy top of banana) नामक पादप रोग होता है, जिससे केले की फसल को भारी नुकसान होता है। भारत में यह रोग इसके पड़ोसी देश श्रीलंका से आया है। आलू की फसल में पोटैटो मोजैक वायरस (Potato mosaic virus) द्वारा मोजैक रोग होता है जिसमें आलू की पत्तियाँ चितकबरापन (Mosaic) प्रदर्शित करती है।

2. वायरस द्वारा मनुष्यों में खसरा (Measles), पीत ज्वर , चेचक, हर्पींज (Herpes), इन्फ्लूएन्जा (Influenza), पोलियो , रेवीज, गलसुआ, ट्रेकोमा , एड्स (AIDS), मस्तिष्क शोथ (Encephalitis)
आदि खतरनाक रोग होते हैं।

खसरा रोग पैरामिक्सौ वायरस से बच्चों में होता है जिससे सम्पूर्ण शरीर प्रभावित होता है।
पीत ज्वर अरबो वायरस (Arbo virus) द्वारा मच्छड़ों के काटने से होता है। चेचक में तीव्र ज्वर में शरीर में काफी दर्द होता है तथा चेहरे एवं छाती पर धब्बे पड़ जाते हैं। हर्षीज रोग हर्पीज वायरस द्वारा वच्चों में होता है। इन्फ्लूएन्जा श्यसन तंत्र का गम्भीर रोग है जो ऑर्थोमिक्सो वायरस के द्वारा होता है। वच्चों में पोलियो का सक्रमण स्पाइनल कॉर्ड तथा अस्थिमज्जा में होता है।

रेबीज(Rabies) रोग को हाइड्रोफोविया के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के लिए उत्तरदायी वायरस का संक्रमण मस्तिष्क में होता है। गलसुआ, एक ऐसा सग है जो मनुष्य के जीवनकाल में केवल एक बार होता है। यह रोग मनुष्यों में लार ग्रन्थि को प्रभावित करता है जिससे ग्रन्थियों में सूजन आ जाती है। ट्रेकोमा एक प्रकार का नेत्र रोग है जो विषाणुओं द्वारा होता है। इस रोग में मनुष्य के नेत्र में सूजन और जलन आ जाती है।एड्स (AIDS) नामक रोग का पूरा नाम एक्वायई इम्यूनो डिफिसिएन्सी सिन्द्रोम  है। यह रोग HIV नामक वायरस से होता है । इस रोग के कारण मनुष्य के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नष्ट हो जाती है जिसकी वजह से शरीर अनेक गम्भीर रोगों की चपेट में आ जाते है।
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एड्स होने के कारण : 
एड्स निम्नलिखित पाँच कारणों से होता है-
1. संक्रमित रक्ताधान (Blood transfusion) करने पर
2. असुरक्षित यौन सम्बन्धों से
3. संक्रमित सूइयों के प्रयोग से
4. संक्रमित माता के गर्भ में पल रहे बच्चे को
के ।
5. संक्रमित व्यक्ति के रेजर (Razor), टूथब्रश आदि से भी एडू्स हो सकता है।

एड्स से बचने के उपाय :

1, एक ही सहभागी जिसे संक्रमण न हो से यौन सम्बन्ध रखना चाहिए।
2. सम्भोग (Matting) के समय कण्डोम का प्रयोग करना चाहिए।
3. स्टरलाइज्ड (Sterlized) सूइयों का प्रयोग करना चाहिए।

नोट : एड्स साथ भोजन करने, बातचीत करने, चुम्बन तथा साथ रहने से नही फैलता है।

एड्स निवाकर औषधियाँ : एड्स निवारक प्रमुख औषधियाँ निम्नलिखित हैं-HIV-III,
कम्बीनेशन थिरेपी, AZT-3, सुरामीन, साइक्लोस्पोटीन, रिवाबाइरीन, एल्फा
इन्टरफेरॉन, HPA-23, 2-3 डाइडीऑक्सीसाइटीडीन आदि ।

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