इस पोस्ट में जीवाणु क्या है उसकी खोज किसने की ,लक्षण ,संरचना और पोषण की पूरी जानकारी के साथ-साथ जीवाणुओं का आर्थिक महत्व को बताया है।
हरितलवक रहित कोशिकाओं वाले , एककोशिकीय या बहकोशिकीय प्रोकैरियोटिक सूक्ष्मजीव जीवाणु(Bacteria) होते हैं। जीवाणु वास्तव में पौधे नहीं होते हैं। इनकी कोशिकाभित्ति का रासायनिक संगठन पौधों से बिल्कुल भिन्न होता है। यद्यपि कुछ जीवाणु प्रकाश-संश्लेषण क्रिया किया करते हैं लेकिन उनमें विद्यमान बैक्टीरियोक्लोरोफिल पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल से बिल्कुल भिन्न होता है।
ये एक एककोशिकीय जीव है।मिलिमीटर तक ही इनका आकार होता है। [जीवाणु क्या होते हैं । जीवाणु की खोज किसने की । उसकी संरचना । लक्षण । और जीवाणुओं का पोषण Bacteria in hindi]
उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से बताया कि पदार्थों का सड़ना तथा अनेक रोगों का कारण सूक्ष्मजीव होते हैं। पाश्चर ने अपने कार्य के आधार पर रोगों के जर्म मत को प्रतिपादित किया। रॉबर्ट कोच (Robert Koch) ने 1881 ई० में यह सिद्ध किया कि चौपायों में होने वाली एन्थ्रेक्स रोग तथा मनुष्यों में तपेदिक रोग तथा हैजा रोग का कारण भी जीवाणु है। रॉबर्ट कोच ने ही सर्वप्रथम जीवाणुओं का कृत्रिम सवद्द्धन किया। लिस्टर ने जीवाणुओं के सम्बन्ध में प्रतिरोधी मत प्रस्तुत किया।
जीवाणुओं के अध्ययन करने वाली विज्ञान को जीवाणु विज्ञान (Bacteriology) के नाम से जाना जाता है।
यह भी पढ़े: विषाणु की खोज
में माइटोकॉण्डरिया, अंतःद्रव्य जालिका तथा अन्य विकसित कोशिकांग का अभाव होता है।इनमें केन्द्रकभित्ति और क्रोमोसोम का भीअभाव होता है। इनमें प्राथमिक प्रकार का
केन्द्रक पाया जाता है जिसे न्यूक्लिआइड(Nucleoid) कहते हैं। जीवाणु(Bacteria) में रोम और कशाभिका भी पाए जाते हैं जो उन्हेंगमन, पोषण एवं प्रजनन में सहायता प्रदान
करते हैं।
1. एककोशिकीय जीव हैं जो एकल या समूहों में पाये जाते हैं।
2.इनमें सत्य केन्द्रक का अभाव होता है।
3.विषाणु को छोड़कर जीवाणु सबसे सरलतम जीव है।
4. इनमें जनन मुख्य रूप से विखण्डन द्वारा होता है।
5.इनकी कोशिकाभिक्ति मोटी तथा काइटिन (Chitin) की बनी होती है।
6. सभी स्थानों पर पाये जाते हैं।
7.ये परजीवी, मृतोपजीवी अथवा सहजीवी होते हैं।
৪. इनकी कोशिका में लवक, माइटोकॉण्ड्रिया गॉल्जी उपकरण तथा अंतःद्रव्यी जालिका
नहीं होते।
9. इनका आकार 2-10π तक होता है।
1. शलाकवत् (Bacillus): इस प्रकार का जीवाणु छड़नुमा या बेलनाकार आकृति का होता
है। जैसे-बेसिलस एन्थ्रासिस (Bacillus anthracis)।
2. गोलाकार (Coccus) : गोलाकार आकृति के जीवाणुओं को कोकस (Coccus) के नाम
से जाना जाता है। ये सबसे छोटे जीवाणु होते हैं कोशिकाओं के विन्यास के आधार पर ये कई
प्रकार के होते हैं:
(a) माइक्रोकोकाई (Micrococci): एक कोशिका के रूप
में, जैसे-माइक्रोकोकस (Micrococcus)।
(b) डिप्लोकोकाई (Diplococci) : दो -दो कोशिकाओं
के समूह में, जैसे-डिप्लोकोकस न्यूमोनी (Diplococcus
pneumoniae)
(c) स्ट्रेप्टोकोकाई (Streptococci): अनेक कोशिकाओं
के समूह में, जैसे-स्ट्रेष्टोकोकस लैक्टिस (Streptococcus
lactis)
(d) सारतिनी (Sarcinae): 8, 64 अथवा 128 के घनाकू
तिक पैकेट में, जैसे-सारसिना (Sarcina)
3. सर्पिलाकृतिक :
इस प्रकार का जीवाणु Coiled अथवा Spiral होता है। जैसे- स्पाइरिलम
रूप्रेम
जीवाणुओं में 2 प्रकार का पोषण होता है
आदि।
जीवाणु अपना भोजन दूसरे जीवों से प्राप्त करते हैं ये तीन प्रकार के होते हैं-
a)परजीवी: इस प्रकार के पोषण के अन्तर्गत जीवाणु दूसरे जीव पर आश्रित रहते है।
b) सहजीवी (Symbiotic): इस प्रकार के पोषण में जीवाणु अन्य जीव के शरीर में रहकर
भोजन लेते रहते है, लेकिन उस जीव को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाते हैं। जैसे-राइजोबियम(Rhizobium)
c) मृतोपजीबी (Saprophytic): इस प्रकार के पोषण में जीवाणु मृत जीवों के शरीर के अवशेषों से भोजन
प्राप्त करते हैं। जैसे-लैक्टोबेसिलस (Lactobacillus)।
जीवाणु लाभदाक एवं हानिकारक दोनों
प्रकार के होते हैं
लाभदायक जीवाणु (Useful bacteria)
हैं। राइजोवियम (Rhizobium) नामक जीवाणु जो दलहनी फसलों की जड़ों में उपस्थित गाँठ में पाया जाता है, वायुमण्डलीय नाइट्रोजन लेकर उसे नाइट्रेट में परिवर्तित करने में सक्षम हैं। चूँकि पीधे सीधे वायुमण्डल से नाइट्रोजन ग्रहण करने की क्षमता नहीं रखते हैं, इसलिए नाइट्रोजन नाइट्रेट के रूप में इन्हीं जीवाणुओं की मदद से प्राप्त होता है।
condisans) नामक जीवाणु द्वारा चाय की पत्तियों पर किण्वन क्रिया द्वारा क्यूरिंग(Curing)किया जाता है।
) नामक जीवाणु द्वारा जूट, पटसन और सन के रेशों का रेटिंग होता है।
प्रतिजेबिकी का नाम
clostridium botulinium) भोजन को विषाक्त बना देते हैं।
गौगिकों को स्वतंत्र नाइट्रोजन में परिवर्तित कर देते हैं जैसे-बैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स
3. पौधों में रोग (Disease in plants) : पौधों में होने वाले अनेक रोगों के लिए जीवाणु
उत्तरदायी होते हैं। जैसे-
(i) आलू का शैथिल रोग (Potato wilt) स्यूडोमोनास सोलेनिसियेरम (Pscudomonas
solanacearum) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(i) नींबू का कैंकर रोग (Citrus canker) जेन्थोमोनास सीट्री (Xanthomonas citri)
नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(ii) गेहँ का टुन्डू रोग (Tundudisease) कोरीनो बेक्टीरियम ट्रिटिकी (Corynebacterium
tritici) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(iv) सेव का अग्निनीरजा रोग (Fire blight of apple) इरविनिया (Ervinia) नामक
जीवाणु द्वारा होता है।
(७) चावल का अंगमारी रोग (Blight of rice) जैन्थोमोनास ओराइजी (Xanthomonas
oryzae) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(vi)फलों में क्राउन गॉल (Crowngall) एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमेफिसीयेन्स (Agro bacterium tumefaciens) नामक जीवाणु द्वारा होता है
4. पशुओं में रोग :
जीवाणुओं द्वारा जानवरों में अनेक रोग उत्पन्न होते हैं जैसे-
(i) जानवरों का काला पैर रोग (Blackleg of animals) क्लास्ट्रीडियम चावेई (Clostridium
Chauvei) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(ii) भेड़ में एन्ग्रैक्स रोग बेसिलस एन्थ्रेसिस (Bacillus anthrasis) नामक जीवाणु द्वारा
होता है।
5. मानव रोग (Human disease) : मनुष्यों में होने वाले अनेक रोग जीवाणुओं के
पैदा होते हैं। जैसे-
रोग का नाम---जीवाणु
1. हैजा (Cholera)-विब्रियो कॉलरी (Vibrio Cholerae)
2. डिप्थीरिया (Diphtheria)-कोरीनोबैक्टीरियम डिप्थीरी (Corynbacterium diphtheriae)
3. सुजाक (Gonorrhea)-गोनोकोकस गोनोराही (Gonococcus gonorahi)
4. कोढ़ या कुष्ठ (Leprosy)- माइकोवैक्टीरियम लेप्री (Mycobacterium leprae)
5. न्यूमोनिया (Pneumonia)-डिप्लोकोकस न्यूमोनी (Diplococcus pneumoniae)
6. प्लेग (Plague)-वैसिलस पेस्टिस (Bacillus pestis)
7. सिफलिस (Syphilis)-ट्रेपोनेमा पैलीडम (Treponema palidum)
৪.टाइफाइड (Typhoid)-साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi)
9. तपदिक (Tuberculosis)- माइकोबैक्टीरियम ट्रयूबरकुलोसिस(Myobacterium tuberculosis)
10. टिटेनस (Tetanus)-क्लोस्ट्रीडियम टिटैनी (Clostridium tetani)
11. काली खाँसी
(Whooping cough)-हेमोफिलस परटूसिस (Hemophilous pertusis)
तो दोस्तो हमने इस पोस्ट में जीवाणु से मिलते जुलते पूरी महत्वपूर्ण टॉपिक पर इसमें चर्चा की है।यदि पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया शेयर करे और कोई समस्या हो तो कृपया कमेंट करे
इसमें बहुत सारी बाते लूसेंट बुक से ही बताई गई है कृपया बुक को भी एक बार पढ़े।
हरितलवक रहित कोशिकाओं वाले , एककोशिकीय या बहकोशिकीय प्रोकैरियोटिक सूक्ष्मजीव जीवाणु(Bacteria) होते हैं। जीवाणु वास्तव में पौधे नहीं होते हैं। इनकी कोशिकाभित्ति का रासायनिक संगठन पौधों से बिल्कुल भिन्न होता है। यद्यपि कुछ जीवाणु प्रकाश-संश्लेषण क्रिया किया करते हैं लेकिन उनमें विद्यमान बैक्टीरियोक्लोरोफिल पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल से बिल्कुल भिन्न होता है।
ये एक एककोशिकीय जीव है।मिलिमीटर तक ही इनका आकार होता है। [जीवाणु क्या होते हैं । जीवाणु की खोज किसने की । उसकी संरचना । लक्षण । और जीवाणुओं का पोषण Bacteria in hindi]
जीवाणु की खोज
जीवाणु की खोज 1683 ई० में हॉलैंड (Holland) के वैज्ञानिक एण्टॉनी वॉन ल्यूवेनहॉक(Antony Von Leeuwenhock) ने की थी। उन्होंने अपने एक अविष्कार बनाए हुए सूक्ष्मदर्शी से दाँत खुरचन में इन जीवाणुओं को देखा तथा इन्हें सूक्ष्म जीव कहा ।इसीकारण से ल्यूवेनहॉक को जीवाणु(Bacteria) विज्ञान का पिता (Father of Bacteriology) कहा जाता है।एहरेनबर्ग (Ehrenberg) ने 1829 ई० में इन्हें जीवाणु (Bacteria) नाम दिया लुई पाश्चर ने किण्वन (Fermentation) पर कार्य किया और बतलाया कि यह जीवाणुओं द्वारा ही होता है।उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से बताया कि पदार्थों का सड़ना तथा अनेक रोगों का कारण सूक्ष्मजीव होते हैं। पाश्चर ने अपने कार्य के आधार पर रोगों के जर्म मत को प्रतिपादित किया। रॉबर्ट कोच (Robert Koch) ने 1881 ई० में यह सिद्ध किया कि चौपायों में होने वाली एन्थ्रेक्स रोग तथा मनुष्यों में तपेदिक रोग तथा हैजा रोग का कारण भी जीवाणु है। रॉबर्ट कोच ने ही सर्वप्रथम जीवाणुओं का कृत्रिम सवद्द्धन किया। लिस्टर ने जीवाणुओं के सम्बन्ध में प्रतिरोधी मत प्रस्तुत किया।
जीवाणुओं के अध्ययन करने वाली विज्ञान को जीवाणु विज्ञान (Bacteriology) के नाम से जाना जाता है।
यह भी पढ़े: विषाणु की खोज
जीवाणु(Bacteria) कहा पाए जाते है :
जीवाणु बहुत सूक्ष्म होते हैं एवं प्रायः सभी जगह पाये जाते हैं। ये अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में पाये जाते हैं। ये मानव द्वारा सांस लेने की हवा, पीने के पानी तथा भोजन के अंदर मौजूद रहते हैं। ये मृदा में, दूसरी जीवित वस्तुओं में और मृत जैव पदार्थों में भी पाए जाते हैं। मानव के मुँह के अंदर भी कई प्रकार के जीवाणु पाये जाते हैं।
जीवाणु(Bacteria) की संरचना:
इनका सम्पूर्ण शरीर एक ही कोशिका युक्त बना होता है। कोशिका के रासायनिक संगठनइ सभी तरफ एक कोशिकाभित्ति पायी जाती है । कोशिकाभित्ति के नीचे कोशिका झिल्ली की बनी होती है। इसके कोशिका द्रव्यमें माइटोकॉण्डरिया, अंतःद्रव्य जालिका तथा अन्य विकसित कोशिकांग का अभाव होता है।इनमें केन्द्रकभित्ति और क्रोमोसोम का भीअभाव होता है। इनमें प्राथमिक प्रकार का
केन्द्रक पाया जाता है जिसे न्यूक्लिआइड(Nucleoid) कहते हैं। जीवाणु(Bacteria) में रोम और कशाभिका भी पाए जाते हैं जो उन्हेंगमन, पोषण एवं प्रजनन में सहायता प्रदान
करते हैं।
जीवाणु के सामान्य लक्षण :-
1. एककोशिकीय जीव हैं जो एकल या समूहों में पाये जाते हैं।
2.इनमें सत्य केन्द्रक का अभाव होता है।
3.विषाणु को छोड़कर जीवाणु सबसे सरलतम जीव है।
4. इनमें जनन मुख्य रूप से विखण्डन द्वारा होता है।
5.इनकी कोशिकाभिक्ति मोटी तथा काइटिन (Chitin) की बनी होती है।
6. सभी स्थानों पर पाये जाते हैं।
7.ये परजीवी, मृतोपजीवी अथवा सहजीवी होते हैं।
৪. इनकी कोशिका में लवक, माइटोकॉण्ड्रिया गॉल्जी उपकरण तथा अंतःद्रव्यी जालिका
नहीं होते।
9. इनका आकार 2-10π तक होता है।
जीवाणु(Bacteria) की बनावट(आकृति):-
बनावट के आधार पर जीवाणु निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-1. शलाकवत् (Bacillus): इस प्रकार का जीवाणु छड़नुमा या बेलनाकार आकृति का होता
है। जैसे-बेसिलस एन्थ्रासिस (Bacillus anthracis)।
2. गोलाकार (Coccus) : गोलाकार आकृति के जीवाणुओं को कोकस (Coccus) के नाम
से जाना जाता है। ये सबसे छोटे जीवाणु होते हैं कोशिकाओं के विन्यास के आधार पर ये कई
प्रकार के होते हैं:
(a) माइक्रोकोकाई (Micrococci): एक कोशिका के रूप
में, जैसे-माइक्रोकोकस (Micrococcus)।
(b) डिप्लोकोकाई (Diplococci) : दो -दो कोशिकाओं
के समूह में, जैसे-डिप्लोकोकस न्यूमोनी (Diplococcus
pneumoniae)
(c) स्ट्रेप्टोकोकाई (Streptococci): अनेक कोशिकाओं
के समूह में, जैसे-स्ट्रेष्टोकोकस लैक्टिस (Streptococcus
lactis)
(d) सारतिनी (Sarcinae): 8, 64 अथवा 128 के घनाकू
तिक पैकेट में, जैसे-सारसिना (Sarcina)
3. सर्पिलाकृतिक :
इस प्रकार का जीवाणु Coiled अथवा Spiral होता है। जैसे- स्पाइरिलम
रूप्रेम
जीवाणु में पोषण (Nutrition in bacteria):
जीवाणुओं में 2 प्रकार का पोषण होता है
1. स्वपोची पोषण :
इस प्रकार के पोषण में जीवाणु अपने भोजन का निर्माण स्वयं ही कर पाते है अपने आप ही के लेते हैं इसके अन्तर्गत दो प्रकार के पोषण आते हैं-
a) प्रकाश संश्लेषण (Photo synthetic) :
इस प्रकार के पोषण में जीवाणु अपना भोजन प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करके अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। इनमें पर्णहरित की जगह जीवाणु-पर्णहरित होता है। जैसे-क्रोमैटियम (Chromatium),रोडोस्पिरिलम(Rhodospirillum) आदि ।
b) रसायन संशलेशी (Chemosynthetic) : इस प्रकार के पोषण के अन्तर्गत जीवाणु
अकार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण से ऊर्जा प्राप्त करके भोजन बनाते है और भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे-नाइट्रोसोमोमास, नाइट्रोबैक्टरआदि।
2)विषमपोशी पोषण (Heterotrophic nutrition):
इस प्रकार के पोषण के द्वाराजीवाणु अपना भोजन दूसरे जीवों से प्राप्त करते हैं ये तीन प्रकार के होते हैं-
a)परजीवी: इस प्रकार के पोषण के अन्तर्गत जीवाणु दूसरे जीव पर आश्रित रहते है।
b) सहजीवी (Symbiotic): इस प्रकार के पोषण में जीवाणु अन्य जीव के शरीर में रहकर
भोजन लेते रहते है, लेकिन उस जीव को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाते हैं। जैसे-राइजोबियम(Rhizobium)
c) मृतोपजीबी (Saprophytic): इस प्रकार के पोषण में जीवाणु मृत जीवों के शरीर के अवशेषों से भोजन
प्राप्त करते हैं। जैसे-लैक्टोबेसिलस (Lactobacillus)।
जीवाणुओं का आर्थिक महत्व (Economic importance of bacteria):
जीवाणु लाभदाक एवं हानिकारक दोनों
प्रकार के होते हैं
लाभदायक जीवाणु (Useful bacteria)
1. भूमि की उर्वरता (Fertility) में वृद्धि :
कुछ जीवाणु भूमि की उर्वरता बढ़ाने का कामहैं। राइजोवियम (Rhizobium) नामक जीवाणु जो दलहनी फसलों की जड़ों में उपस्थित गाँठ में पाया जाता है, वायुमण्डलीय नाइट्रोजन लेकर उसे नाइट्रेट में परिवर्तित करने में सक्षम हैं। चूँकि पीधे सीधे वायुमण्डल से नाइट्रोजन ग्रहण करने की क्षमता नहीं रखते हैं, इसलिए नाइट्रोजन नाइट्रेट के रूप में इन्हीं जीवाणुओं की मदद से प्राप्त होता है।
2. दूध का दही में परिवर्तन :
दूध से दही बनाने में जीवाणुओं का महत्वपूर्ण योगदान रह है। लैक्टोबेसिलस (Lactobacillus) नामक जीवाणु दूध में पाये जाने वाले केसीन (Casein) नामक प्रोटीन की छोटी-छोटी बूँदों को एकत्रित करके दही जमाने में सहायता करते हैं।
3. सिरका के निर्माण में :
शर्करा घोल (Sugar solution) का किण्वन का एसेटोबैक्टर एसेटी (Acetobacter aceti) नामक जीवाणु उसे सिरका में परिवर्तित कर देता है।
4. तम्बाकू की पत्ती में सुगंध एवं स्वाद बढ़ाने में :
बेसिलस मैगाथेनियम माइकोकोकस (Bacillus megathenium mycococcus) नामक जीवाणु का उपयोग तम्बाकू की पत्ती में सुगंध एवं स्वाद बढ़ाने में किया जाता है।
5. चाय की पत्तियों के ब्यूरिंग (Curing) में :
माइकोकोकस कोन्डीसैंस (Mycococcuscondisans) नामक जीवाणु द्वारा चाय की पत्तियों पर किण्वन क्रिया द्वारा क्यूरिंग(Curing)किया जाता है।
6. रेशों के रेटिंग में :
जल में पाए जाने वाले क्लोस्ट्रीडियम व्यूटीरियम (Clostridium) नामक जीवाणु द्वारा जूट, पटसन और सन के रेशों का रेटिंग होता है।
7. लैक्टिक अम्ल के निर्माण में :
बैक्टीरियम लैक्टिसाई एसिडाई (Bacterium lactici adidi) और बैक्टीरियम एसिडाई लैक्टिसाई (Bacterium acidi lactici)नामक जीवाणु जो दूध में पाए जाते हैं, में पायी जाने वाली लैक्टोस (Lactose) शर्करा का किण्वन कर लैक्टिक अम्ल (Lactic acid) का निर्माण करते हैं।
8. प्रतिजैबिकी औषपियों के निर्माण में :
कुछ प्रति जैविकी औषधियाँ जीवाणुओं की किण्वन क्रिया द्वारा बनायी जाती है। जैसे-प्रतिजेबिकी का नाम
हानिकारक जीवाणु (Harmful bacteria):
1. भोजन विषाक्तन (Food poisoning) :
कुछ जीवाणु जैसे-क्लोस्ट्रिडियम बोटूलिनियमclostridium botulinium) भोजन को विषाक्त बना देते हैं।
2. बिनाइट्रीकरण (Denitrification):
कुछ जीवाणु नाइट्रेट, नाइट्राइट तथा अमोनियमगौगिकों को स्वतंत्र नाइट्रोजन में परिवर्तित कर देते हैं जैसे-बैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स
3. पौधों में रोग (Disease in plants) : पौधों में होने वाले अनेक रोगों के लिए जीवाणु
उत्तरदायी होते हैं। जैसे-
(i) आलू का शैथिल रोग (Potato wilt) स्यूडोमोनास सोलेनिसियेरम (Pscudomonas
solanacearum) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(i) नींबू का कैंकर रोग (Citrus canker) जेन्थोमोनास सीट्री (Xanthomonas citri)
नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(ii) गेहँ का टुन्डू रोग (Tundudisease) कोरीनो बेक्टीरियम ट्रिटिकी (Corynebacterium
tritici) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(iv) सेव का अग्निनीरजा रोग (Fire blight of apple) इरविनिया (Ervinia) नामक
जीवाणु द्वारा होता है।
(७) चावल का अंगमारी रोग (Blight of rice) जैन्थोमोनास ओराइजी (Xanthomonas
oryzae) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(vi)फलों में क्राउन गॉल (Crowngall) एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमेफिसीयेन्स (Agro bacterium tumefaciens) नामक जीवाणु द्वारा होता है
4. पशुओं में रोग :
जीवाणुओं द्वारा जानवरों में अनेक रोग उत्पन्न होते हैं जैसे-
(i) जानवरों का काला पैर रोग (Blackleg of animals) क्लास्ट्रीडियम चावेई (Clostridium
Chauvei) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(ii) भेड़ में एन्ग्रैक्स रोग बेसिलस एन्थ्रेसिस (Bacillus anthrasis) नामक जीवाणु द्वारा
होता है।
5. मानव रोग (Human disease) : मनुष्यों में होने वाले अनेक रोग जीवाणुओं के
पैदा होते हैं। जैसे-
रोग का नाम---जीवाणु
1. हैजा (Cholera)-विब्रियो कॉलरी (Vibrio Cholerae)
2. डिप्थीरिया (Diphtheria)-कोरीनोबैक्टीरियम डिप्थीरी (Corynbacterium diphtheriae)
3. सुजाक (Gonorrhea)-गोनोकोकस गोनोराही (Gonococcus gonorahi)
4. कोढ़ या कुष्ठ (Leprosy)- माइकोवैक्टीरियम लेप्री (Mycobacterium leprae)
5. न्यूमोनिया (Pneumonia)-डिप्लोकोकस न्यूमोनी (Diplococcus pneumoniae)
6. प्लेग (Plague)-वैसिलस पेस्टिस (Bacillus pestis)
7. सिफलिस (Syphilis)-ट्रेपोनेमा पैलीडम (Treponema palidum)
৪.टाइफाइड (Typhoid)-साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi)
9. तपदिक (Tuberculosis)- माइकोबैक्टीरियम ट्रयूबरकुलोसिस(Myobacterium tuberculosis)
10. टिटेनस (Tetanus)-क्लोस्ट्रीडियम टिटैनी (Clostridium tetani)
11. काली खाँसी
(Whooping cough)-हेमोफिलस परटूसिस (Hemophilous pertusis)
तो दोस्तो हमने इस पोस्ट में जीवाणु से मिलते जुलते पूरी महत्वपूर्ण टॉपिक पर इसमें चर्चा की है।यदि पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया शेयर करे और कोई समस्या हो तो कृपया कमेंट करे
इसमें बहुत सारी बाते लूसेंट बुक से ही बताई गई है कृपया बुक को भी एक बार पढ़े।