मानव हृदय की संरचना । कार्य प्रणाली । इसके प्रमुख भाग । हृदय रोग के लक्षण । इसका चित्र । धड़कन

मानव हृदय की संरचना । कार्य प्रणाली । इसके प्रमुख भाग । हृदय रोग के लक्षण । इसका चित्र । धड़कन 

हेलो दोस्तों आज मैं आपको मानव के हृदय के बारे में बताने जा रहा हूं। इसमें मैं हृदय की संरचना के साथ-साथ हृदय की कार्यप्रणाली के बारे में भी बताऊंगा और साथ ही साथ इस का नामांकित चित्र भी इस पोस्ट में नीचे दे दूंगा। जिससे आपको हृदय के बारे में पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त हो सके, हृदय के बारे में समस्त प्रकार की जानकारी इसमें देने की पूरी कोशिश की है। 
मानव हृदय का नामांकित चित्र


मानव हृदय का नामांकित चित्र


हृदय रक्त परिसंचरण तन्त्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग होता  है | किसी भी प्राणी के हृदय का पूर्ण रूप से कार्य करना बंद कर देने  का अर्थ होता है उसकी मृत्यु हो गई । आज हम चर्चा करेंगे हृदय की संरचना एवं कार्यप्रणाली के विषय में जानकारी प्राप्त करेगे ।


हृदय के बारे में
हृदय एक पेशीय , खोखला, संकुचनशील, शंक्वाकार अंग होता है जो वक्ष में स्टर्नम के पीछे दोनों फेफड़ों के बीच ऊतकों के एक भाग जिसे मीडिएस्टिनम कहते हैं। कुछ बायीं ओर को हटा हुआ तिरछेपन के साथ स्थित है | बायीं तरफ हटा होने के कारण हृदय का एक तिहाई भाग शरीर की मध्यरेखा से दाहिनी ओर एवं दो तिहाई भाग बायीं ओर स्थित रहता है ।

हृदय का उपर का हिस्सा कुछ चौड़ा होता है जो आधार कहलाता है, यह हिस्सा कुछ दहिनी तरफ झुका होता है ।

हृदय का निचला हिस्सा नुकीला होता है, यह शिखर कहलाता है यह थोडा बायीं ओर झुका डायाफ्राम पर स्थित होता है ,यह हिस्सा पांचवी एवं छठी बायीं पसलियों के मध्य तक पहुँचता है इसी स्थान पर हाथ रखने से ह्रदय की धड़कन का आभास मिलता है 

हृदय का आकार स्वयं की मुट्ठी के लगभग आकार का होता है । ह्रदय की औसतन लम्बाई लगभग 12 से.मी. एवं चौड़ाई 9 से.मी. (5×3.5 इंच) होती है ।

वयस्क व्यक्ति के हृदय का वजन लगभग 250 से 390 ग्रा. एवं स्त्रियों में 200 से 275 ग्रा. के बीच होता है 

मानव के हृदय की संरचना

हृदय भित्ति का निर्माण तीन परतों से होता है –

1) पेरीकार्डियम (Pericardium)
2) मायोकार्डियम (Myocardium)
3) एण्डोकार्डियम (Endocardium)


पेरीकार्डियम (Pericardium) :
पेरीकार्डियम दो कोशों का बना होता है ।बाह्य कोश तंतमय ऊतकों का बना होता है। यह अन्दर से सीरमी कला की दोहरी परत की निरंतरता में होता है। बाह्य तंतुमय कोश ऊपर ह्रदय की बड़ी रक्त वाहिकाओं के टुनिका एडवेंटिशिया के साथ निरंतरता में रहता है, तथा नीचे डायाफ्राम से सटा रहता है। तंतुमय एवं अप्रत्यास्थ प्रकृति होने के कारण यह ह्रदय के अत्यधिक फैलाव को रोकता है। सीरमी कला की बाह्य परत, पार्श्विक पेरीकार्डियम तंतुमय कोश को आस्तारित करती है ।आंतरिक परत, अंतरांगी पेरीकार्डियम या एपिकार्डियम जो पार्श्विक पेरीकार्डियम के निरंतरता में होती है, हृदय पेशी से चिपटी होती है।

सीरमी कला में चपटी उपकला कोशिका का समावेश रहता है। यह अंतरांगी एवं पार्श्विक परतों के बीच के स्थान में एक सीरमी द्रव स्रवित करती हैं,जो हृदय स्पन्द के दौरान दोनों परतों के बीच घर्षण को रोकता है, जिससे ह्रदय स्वच्छन्दतापूर्वक गतिशील बना रहता हैं।


मायोकार्डियम (Myocardium)
यह एक विशेष प्रकार की हृदयपेशी की बनी होती है,जो केवल ह्रदय में ही पायी जाती है । इसमें विशेष प्रकार के तंतु रहते हैं, जो अनैच्छिक वर्ग के होते हैं । मायोकार्डियम की मोटाई भिन्न भिन्न होती है । यह शिखर पर सबसे मोटी होती है। एवं आधार की ओर पतली होती चली जाती है। यह बाएं निलय में अधिक मोटी रहती है, क्योंकि यहाँ पर इसे अधिक कार्य करना पड़ता है, जबकि दाहिने निलय में पतली रहती है, क्योकि यहाँ इसे सिर्फ फेफड़ों में रक्त प्रवाहित करना होता है । यह अलिन्दों में बहुत पतली रहती है ।


एण्डोकार्डियम (Endocardium)
एण्डोकार्डियम हृदय में सबसे भीतर की एक पतली, चिकनी झिलमिलाती कोमल कलाहै । यह चपटी उपकला कोशिका से निर्मित है जो एण्डोथीलियम के साथ निरंतर रहकर रक्त वाहिकाओं के आन्तरिक स्तर में विलीन हो जाती है । एण्डोकार्डियम हृदय के चारों कक्षों एवं कपाटों को आच्छादित किये रहती है 


मानव हृदय के प्रमुख कार्य 

(1) हृदय एक पम्प की तरह कार्य करता है जो खून को अन्दर खींचता है तथा धमनियों के द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पहुॅचता है।
(2) हृदय शरीर के सभी हिस्सों से उघ्र्व महाशिरा तथा निन्म महाशिरा के द्वारा अशुद्ध खून की दॉए एट्रियम में इकट्ठा करता है।
(3) पूरी तरह से भर जाने पर दॉयें एट्रियम में यंकुचन होता है और रक्त दॉए वेन्ट्रिकल मे आ जाता है। इस प्रक्रिया के बाद ट्राइकस्पिड वालव बन्द हो जाता है।
(4) इसके बाद दायेें वेन्ट्रिकल के संकुचित होने पर रक्त पल्मोनरी वाल्व से होकर फुफ्फसीय धमनी आगे जाकर उपशाखाओं में विभक्त हो जाती है , जिसे दॉयी एवं बॉयी फुफ्फसीय धमनी कहा जाता है।
(5) इन धमनियों का कार्य है अशुद्ध रक्त को शुद्ध करने के लिए फुफ्फसो तक ले जाना। (6)फेफड़ों से शुद्ध रक्त चार फुफ्फसीय शिराओं के माध्यम से हृदय के बॉयी एट्रियम में संकुचन की क्रिया होती है
(7) धक्के के साथ बॉयें एट्रियों वेन्ट्रिकुलर वाल्व से होते हुए बॉये वेन्ट्रिकल में आता है।
(8) इसके बाद एट्रियों वेन्ट्रिकुलर वाल्व बन्द हो जाता है। 
(9) इसके बाद बॉया वेन्ट्रिकल संकुचित होता है , जिसके कारण शुद्ध रक्त महाधमनी में पहुॅचता है। 
(10) महाधमनी शुद्ध रक्त को सम्पूर्ण शरीर के अंगो तक पहुॅचाने का कार्य करता है।.
(11) आपने जाना है कि जिस प्रकार से हमारा हृदय निरन्तर एक पम्पिंग मषीन की तरह कार्य करता रहता है।


मानव हृदय रोग के लक्षण

(1) बुखार आना 
(2)सूजे हुए, मुलायम, लाल और दर्दयुक्त जोड़, खास कर घुटना, टखना, कोहनी या कलाई
(3)कमजोरी और सांस फूलना
(4)हाथ, पैर या चेहरे की मांसपेशियों की अनियंत्रित गतिविधि
(5)सूजे हुए जोड़ों पर उभार या गांठ


हृदय स्वास्थ्य कैसे रखें उपाय 


चिकित्सक इसका उपचार मरीज के सामान्य स्वास्थ्य , चिकित्सकीय  इतिहास और बीमारी की गंभीरता के आधार पर तय करते हैं।
चूंकि रुमेटिक बुखार  हृदय रोग का कारण है, इसलिए इसका सर्वोत्तम उपचार रुमेटिक बुखार के बार-बार होने से रोकना है।

इसे कैसे रोका जा सकता है ?

रुमेटिक हृदय रोग को रोकने का सर्वश्रेष्ठ उपाय रुमेटिक बुखार को रोकना है। गले के  संक्रमण के तत्काल और  समुचित उपचार से इस रोग को रोका जा सकता है।  यदि रुमेटिक बुखार हो, तो लगातार एंटीबायोटिक उपचार से इसके दोबारा आक्रमण को रोका जा सकता है।

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