ज्वार भाटा किसे कहते हैं। उत्पत्ति के सिद्धांत । विश्व । भारत का । सबसे ऊँचा । बड़ा । ज्वार भाटा कहाँ आता है ।

ज्वार भाटा किसे कहते हैं । ज्वार भाटा की उत्पत्ति के सिद्धांत । विश्व । भारत का । सबसे ऊँचा । बड़ा । ज्वार भाटा कहाँ आता है । वीडियो

ज्वार भाटा किसे कहते हैं । ज्वार भाटा की उत्पत्ति के सिद्धांत । विश्व । भारत का । सबसे ऊँचा । बड़ा । ज्वार भाटा कहाँ आता है । वीडियो

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपके लिए  पोस्ट में ज्वार भाटा किसे कहते हैं,ज्वार भाटा की उत्पत्ति के सिद्धांत के साथ साथ यह विश्व और भारत का सबसे ऊँचा, बड़ा ज्वार भाटा कहाँ आता है इसका पूरा वीडियो और लिखा हुए लेख नीचे लाया हूं।

ज्वार भाटा किसे कहते हैं यह क्या है

चन्द्रमा एवं सूर्य की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने तथा गिरने को ज्वार-भाटा कहते हैं। सागरीय जल के सतह ऊपर उठकर आगे बढ़ने को ज्वार तथा सागरीय जल को नीचे गिरकर पीछे लौटने (सागर की ओर) को भाटा कहते हैं।


विश्व का सबसे ऊंचा ज्वार कहा आता हैं

विश्व का सबसे ऊंचा ज्वार फंडी की खाडी में आता है

महासागरों और समुद्रों में ज्वार भाटा के लिए उत्तरदायी कारक है-
1. सूर्य का गुरुत्वीय बल 
2. चन्द्रमा का गुरुत्वीय बल एवं
3. पृथ्वी का अपकेन्द्रीय बल

ज्वार भाटा के बारे में कुछ तथ्य

चन्द्रमा का ज्वार उत्पादक बल सूर्य की अपेक्षा दुगुना होता है, क्योंकि यह सूर्य की तुलना में पृथ्वी के अधिक निकट है ।

अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा, सूर्य एवं पृथ्वी एक सीध में होते हैं। अतः इस दिन उच्च ज्वार उत्पन्न होता है।
दोनों पक्षों की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के केन्द्र पर समकोण बनाते हैं, इस स्थिति में सूर्य और चन्द्रमा के आकर्षण बल एक-दूसरे को संतुलित करने के प्रयास में प्रभावहीन हो जाते हैं। अतः इस दिन निम्न ज्वार उत्पन्न होता है। पृथ्वी पर प्रत्येक स्थान पर प्रतिदिन 12 घंटे 26 मिनट के बाद ज्वार तथा ज्वार के 6 घंटा 13 मिनट बाद भाटा आता है।

ज्वार प्रतिदिन दो बार आते हैं-एक बार चन्द्रमा के आकर्षण से और दूसरी बार पृथ्वी के अपकेन्द्रीय बल के कारण.

सामान्यतः ज्वार प्रतिदिन दो बार आता है किन्तु इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथैम्प्टन में ज्वार प्रतिदिन चार बार आते हैं.

यहाँ दो बार ज्वार इंगलिश चैनल से होकर और दो बार उत्तरी सागर से होकर विभिन्न अंतरालों पर पहुँचते हैं।

महासागरीय जल की सतह का औसत दैनिक तापान्तर नगण्य होता है (लगभग 1°C)।

महासागरीय जल का उच्चतम वार्षिक तापक्रम अगस्त में एवं न्यूनतम वार्षिक तापक्रम फरवरी में अंकित किया जाता है ।

ज्वार भाटा के प्रमुख प्रकार

यह दो प्रकार के होते हैं
1)उच्च ज्वार
2)निम्न ज्वार
उच्च ज्वार
जब सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा एक सीध में या एक सीधी रेखा में होते हैं। तब उच्च ज्वार होता है।
निम्न ज्वार
जब सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा समकोणिक अवस्था में या 90° कोण पर होते हैं। तो निम्न ज्वार होता है।



विश्व में ज्वार भाटा क्यों उत्पन्न होता है

पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार भाटा की उत्पन्न होने का मुख्य कारण हैं। चन्द्रमा का ज्वार उत्पादक बल सूर्य की अपेक्षा दोगुना होता है। क्योंकि यह सूर्य की तुलना में पृथ्वी के अधिक निकट है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा, सूर्य एवं पृथ्वी एक सीध में होते हैं, तो उच्च ज्वार उत्पन्न होता है। दोनों पक्षों की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं, इस समय में सूर्य और चन्द्रमा के आकर्षण बल एक दुसरे को संतुलित  करने के प्रयास में प्रभावहीन हो जाते हैं, तो निम्न ज्वार उत्पन्न होता है।


पृथ्वी पर प्रत्येक स्थान पर प्रतिदिन 12 घंटे 26 मिनट के बाद ज्वार तथा ज्वार के 6 घंटा 13 मिनट बाद भाटा आता है।


ज्वार प्रतिदिन दो बार आता है

पहला जब चन्द्रमा के आकर्षण से ,
दूसरी बार पृथ्वी के अपकेन्द्रीय बल के कारण। लेकिन इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथेम्पटन में ज्वार प्रतिदिन चार बार आते हैं।

नदियों, झीलों, तालाबों और अन्य छोटे जल निकायों में ज्वारभाटा नहीं होते हैं 

ज्वार भाटा की घटना केवल सागर पर ही लागू नहीं होती बल्कि उन सभी चीजों पर लागू होतीं हैं जिन पर समय एवं स्थान के साथ परिवर्तनशील गुरुत्वाकर्षण बल लगता है। इसका अनुभव नदियों, झीलों, तालाबों और अन्य छोटे जल निकायों में नहीं होता है क्योंकि बड़े जल क्षेत्र में इसका परिणाम व्यापक होता है। इस कारण महासागर और समुद्र में ज्वारभाटा का अनुभव आसानी से हो जाता है।

ज्वारभाटा का मानव जीवन पर प्रभाव/महत्व

प्रत्येक प्राकृतिक घटना मानव जीवन के लिए प्रासंगिक है। और जीवित प्राणियों पर अपना प्रभाव डालती है। 
इसी संदर्भ में ज्वार के महत्व पर नीचे चर्चा की गयी है:


मत्स्य पालन
ज्वार समुद्री जीवन जैसे समुद्री पौधों और मछलियों की प्रजनन गतिविधियों को भी प्रभावित करता है।
मौसम 
ज्वारभाटा के नियमिता के कारण समुंद्री जलवायु समुंद्री जल जीवन के रहने योग्य बनती है। और पृथ्वी के तापमान को संतुलित करता है।
ज्वार ऊर्जा 
ज्वारभाटा प्रतिदिन दो बार आता है जिसके कारण पानी में तीव्रता आती है। अगर हम इस उर्जा को संचित कर ले तो यह अक्षय उर्जा का एक और स्रोत हो सकता है। जिसके कारण तट के किनारे रहने वाले समुदायों को नवीकरणीय ऊर्जा प्रदान किया जा सकता है।
ज्वारपूर्ण खाद्य क्षेत्र
ज्वारभाटा की नियमिता के कारण ज्वारीय क्षेत्र के समुद्री जीव जैसे केकड़े, मसल, घोंघे, समुद्री शैवाल आदि की संख्या संतुलित रहती है। अगर ज्वारभाटा नियमित ना हो तो इनकी संख्या कम या ये विलुप्त हो सकते हैं।
नौ-परिवहण 
उच्च ज्वार समुद्री यात्राओं में मदद करते हैं। वे समुंद्री किनारों के पानी का स्तर बढ़ा देते हैं जिसकी वजह से जहाज को बंदरगाह पर पहुंचाने में मदद मिलती है।


इस लेख में ज्वार भाटा किसे कहते हैं ज्वार भाटा की उत्पत्ति के सिद्धांत विश्व ,भारत का सबसे ऊँचा बड़ा ज्वार भाटा कहाँ आता है सब कुछ इस लेख में मैंने वताने की कोशिश की है यदि आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कृपया नीचे कमेंट अवश्य करें और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।
इस लेख का सोर्स विकिपीडिया और लाइसेंस बुक है

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.