अंग्रेजों ने भारत को गुलाम कैसे बनाएं। How British Come To India

अंग्रेजों ने भारत को गुलाम कैसे बनाएं , 

How British Come To India

अंग्रेजों ने हमें गुलाम कैसे बनाएं

हम सभी जानते है कि 15 अगस्त को भारत की आजादी का जश्न मनाया जाता है क्योकि इस दिन हमें अंग्रेजों की 200 साल की गुलामी से आजादी मिली लेकिन एक बड़ा सवाल होता है जो हर भारतीय पाकिस्तानी और बांग्लादेशी को जानना बेहद जरूरी है पाकिस्तानी बांग्लादेश का नाम इइसलिए लिया क्योंकि बटवारे से पहले हम सब एक ही थे और यह इतिहास इन देशों का है भारत की गुलामी की कोई स्पेशल date या साल नहीं बताया जा सकता लेकिन इतना मान सकते हैं कि 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ चला गया क्योंकि प्लासी की लड़ाई में बंगाल जैसा एक बड़ा क्षेत्र ब्रिटिश ने अपने कब्जे में ले लिया था जिसके कारण अंग्रेजी धीरे भारत में पकड़ बनाने में सफल रहे और उन्होंने भारत की सत्ता पर लगभग 1947 तक राज किया ।ऐसा कहा जाता है कि भारत लगभग 200 साल तक अंग्रेजों का गुलाम रहा हम अपने इतिहास को थोड़ा और आगे से शुरू कर दी है 


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बात सन 1588 की है जब लंदन की कुछ व्यापारियों ने मिलकर एक कंपनी की शुरुआत की जिसका नाम ईस्ट इंडिया कंपनी रखा गया ।कंपनी से जुड़े व्यापारियों ने वहां की रानी एलिजाबेथ से हिंद महासागर में व्यापार करने की इजाजत मांगी लेकिन शुरुआत में यह कंपनी दिवालीया घोषित हो गई। क्योंकि है कंपनी पैसा नहीं कमा पा ई। जब लंदन की व्यापारी पहली बार व्यापार के लिय तो अरब सागर से ही वापस लौट आए इसके बाद फिर दोबारा से 1596 में पानी के जहाज लंदन से रवाना हुए लेकिन रास्ते में तूफान की चपेट में आ जाने से सब तबाह हो गए असफलताओं को देखकर रानी का दिमाग खराब हो गया और उसने पैसे देने से मना कर दिया लेकिन व्यापारियों की जिद से रानी को मानना पड़ा। तीसरी बार 1608 में हैक्टर नाम का एक जहाज भारत के लिए रवाना हुआइस जहाज के कैप्टन का नाम हॉकिंग्स था जहाज सबसे पहले सूरत के बंदरगाह पर जाकर रुका उस समय सूरत भारत का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र हुआ करता था हाव्हिंग्स शुरुआत में भारत में व्यापार करने की नियत से ही आया था इसलिए राजदूत के तौर पर उस समय मोहन बादशाह जहांगीर से मिला ।राजा ने उसका स्वागत भारतीय परंपरा के अनसार किया
जहांगीर ने परंपरा के अनुसार उसका विशेष स्वागत किया साथ ही उसे पुरस्कार देकर सम्मानित किया शायद उस वक्त जहांगीर को इस बात का इल्म ना था जिस अंग्रेज कॉम के नुमाइंदे को वह सम्मानित कर रहा है एक दिन उसी कॉम के बंशज भारत पर शासन करेंग। इंडिया कंपनी ने वैसे तो व्यापार के बहाने दुनिया भरो को लुटा । लेकिन भारत से जितना पैसा कमाया उतना कीजिए देश से नहीं हम आया। क्योंकि शुरुआत में अंग्रेज व्यापार करने के मकसद से आई थी तो उन्होंने देखा कि सूरत उस समय का सबसे धनवान प्रदेश था क्योंकि वहां से एक्सपोर्ट इंपोर्ट के जरिए काफी मुनाफा होता था ।अंग्रेजों को भारत से कपड़ा स्टील और मसालों के बदले सोना मिलता था।

सूरत में उस समय हर घर में सोने के भंडार थे और इतना सुना था कि उनको सोना तौल कर रखना पड़ता था अंग्रेजों के आने से पहले पुर्तगाली भारत आ चुके थे साथ ही वे जहांगीर को इंप्रेस कर चुके थे इसलिए हॉकिंग्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि उन्हें रास्ते से कैसे हटाए जाए इसके खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया शुरुआत में उसे बहुत समस्या हुई लेकिन धीरे-धीरे वह अपनी योजना में कामयाब हो गया यही नहीं कुछ विशेष सुविधाएं और अधिकार लेने में कामयाब हो गया

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धीरे धीरे उसने पुर्तगाली के जहाज को लूटना शुरू कर दिया ।असल में वह चाहता था कि जल्द से जल्द काली सूरत छोड़कर भाग जाए। जिससे वह अकेला व्यापार कर सके। उसने पुर्तगालियों के जहाज को समुद्र में डुबोन शुरु कर दिया ।
सूरत में कारखाना बनाकर व्यापार करने की इजाजत मिल गई है इसी के साथ जहांगीर ने एक और बड़ी गलती की है उसने हॉकिंग्स को इजाजत दी कि उसके राज दरबार में इंग्लैंड का राजदूत रह सकता है जिसके तहत सर थोमास रो 1615 में एंबेसडर बनाकर भारत आया था ।थॉमस के करें में एक बात फेमस थी
बहुत मशहूर थी कि वह कूटनीति के मामले में बहुत तेज था थोमास इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ का बहुत करीबी था ।इसलिए अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए जल्दी ही उसने अपना काम शुरू कर दिया ।सबसे पहले उसने बादशाह से मुलाकात करनी चाहि। थॉमस ने अंग्रेजी भाषा में जिसमें भारत में व्यापार करने के लिए ट्रेड लाइसेंस जाता था ।


इसलिए अपनी एक दरबारी सेल लेटर पढ़ने को कहा लेकिन थॉमस को यह सब पहले से पता था कि राजा को इंग्लिश नहीं आती और उसी दरबारी से लेटर पढ़ने को कहेगा जहांगीर ने विश्वास करती हुई ईस्ट इंडिया कंपनी के रेट वाले लेटर पर सिग्नेचर कर दिए और उन्हें लूटमार करने की छूट मिल गई ।
अब तो वे जहां भी जात बादशाह का सिग्नेचर किया हुआ लेटर दिखाकर लूटमार करते थे ।अब उन्होंने कारखाने भी खोल लिए थे । अंग्रेजो की लूटमार मार का तरीका ऐसा होता था कि भारत की भोली-भाली जनता उनकी योजनाओं को नहीं भा पाती थी ।उन्होंने सबसे पहले सूरत से लगभग 900 जहाज भर कर सोना लंदन भेजा था और इस तरह सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत को लूटना शुरू कर दिय । धीरे धीरे कंपनी का वर्चस्व पूरे भारत में बढ़ता गया । इतिहास गवाह है किस कंपनी ने कितनी तेज अपने पैर पसारे ।ऐसा कहा जाता है कि जितने साल भी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में रहे वह मुनाफे में रहे । इस कंपनी ने लूटमार के साथ भारत पर राज करना चाहा लेकिन ऐसा करने में सफल नहीं हो ऐसा करने का मौका मिल गया था
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पुराने समय में बंगाल बहुत बड़ा राज्य था जिस के राजा का नाम सिराजुद्दौला था ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे हराने के लिए कई छोटी-छोटी ऑपरेशन चलाए लेकिन उसमें कभी भी कामयाब नहीं हो सकी इसलिए 1757 में रोबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में बंगाल पर हमला करना चाहा ।उस समय रोवर्ट पास मात्र 350 और सिराजुद्दोला के पास 18000 सेनिक । रवर्ट इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि इतनी बड़ी सेना के सामने एक घंटा कितना भी मुश्किल होगा लेकिन इतनी कम सेना होने के बाद भी रॉबर्ट जीत गया।और सिराजुद्दौला हर गया।ये युद्ध प्लासी के युद्ध के नाम से जाना जाता। जिसने हम पर शासन करने का मौका दे दिया हुआ ऐसा किस सिराुद्दौला का एक सेनापति था उसका नाम था मीर जाफर था।रोवर्त ने मीर जाफर को धन और सत्ता का लालच देकर अपनी और के दिया। प्लासी का युद्ध हुआ तो मीर जाफर ने अपनी सेना को बिना लड़े समर्पण करने को कहा और इतिहास में अंग्रेजों की जीत कहा गया ।

रोबोट की सिर्जुद्दोला की पूरी सेना को बंदी बना लिया और उनको सैनिकों को 10 दिन तक भूखा रखा गया और उसके बाद उन सब की हत्या कर दी गई । मीर जफर और राबर्ट क्लाइव ने योजना बनाकर सिराजुद्दौला को भी मरवा दिया और किस तरह मीर जाफर को सिंहासन मिल गया मीर जाफ़र की गद्दारी की वजह से इस्ट इंडिया कंपनी सत्ता में आ गई और हम अंग्रेज़ो के गुलाम बन गए।

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