रेडियोसक्रियता ,रेडियोधर्मिता, Radioactivity । किसे कहते हैं ,यह क्या है
रेडियोसक्रियता |
वह प्रकिया होती है जिसमें एक अस्थिर परमाणु अपने नाभिक से आयनकारी विकिरण के रूप में ऊर्जा फेंकता है। ऐसे पदार्थ जो अपने ही ऐसी ऊर्जा निकालते हों विकिरणशील या रेडियोधर्मी कहलाते हैं। यह विकिरण अल्फा कण, बीटा कण, गामा किरण और इलेक्ट्रॉनों के रूप में होती है। ऐसे पदार्थ जिनकी परमाण्विक नाभी स्थिर नहीं होती और जो निश्चित मात्रा में आवेशित कणों को छोड़ते हैं, रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) कहलाते हैं।
रेडियोसक्रियता की खोज फ्रेंच वैज्ञानिक हेनरी बेकरल पी क्यूरी एवं एम० क्यूरी ने किया था।
इस खोज के लिए इन तीनों को संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार मिला ।
जिन नाभिकों में प्रोटॉन की संख्या 83 या उससे अधिक होती है, वे अस्थायी होते हैं। स्थायित्व प्राप्त करने के लिए ये नाभिक
स्वतः ही अल्फा, बीटा एवं गामा किरणें उत्सर्जितकरने लगती हैं। ऐसे नाभिक जिन त्त्वों के परमाणुओं में होते हैं, उन्हें रेडियो एक्टिव तत्त्व कहते हैं तथा किरणों की उत्सर्जन की घटना को रेडियो सक्रियता कहते हैं।
गामा किरणें, अल्फा एवं बीटा किरणों के बाद ही उत्सर्जित होती हैं।
राबर्ट पियरे एवं उनकी पत्नी मैडम क्यूरी ने नए रेडियो एक्टिव तत्व रेडियम की खोज की।
रेडियो सक्रियता के दौरान निकलने वाली किरणों की पहचान सर्वप्रथम 1902 ई. में रदरफोर्ड नामक वैज्ञानिक ने की ।
सभी प्राकृतिक रेडियो सक्रिय तत्व अल्फा, बीटा और गामा किरणों के उत्सर्जन के बाद अन्ततः सीसा में बदल जाते हैं।
सबसे अधिक वेधन क्षमता गामाकिरण की होती है।
सबसे अधिक आयनन क्षमता अल्फा-किरण (अल्फा किरण) की होती है।
एक अल्फा-किरण के निकलने से परमाणु संख्या में दो इकाई तथा द्रव्यमान संख्या में चार इकाई की कमी होती है।
एक B-किरण के निकलने से परमाणु-संख्या में एक इकाई की वृद्धि होती है, तथा द्रव्यमान संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
अल्फा , बीटा और गामा किरणों के निकलने से परमाणु संख्या और द्रव्यमान संख्या पर पड़ने वाले प्रभाव को वर्ग विस्थापन नियम या सोडी
फॉजन नियम कहा जाता है।
रेडियो सक्रियता की माप "जी. एम. काउंटर" से की जाती है।
जितने समय में किसी रेडियो सक्रिय तत्त्व के परमाणुओं की संख्या आधी हो जाय, वह समय उस तत्त्व का अर्द्ध जीवन काल कहलाता है। इसे प्रायः H.L. या t1/2 से सूचित किया जाता है।
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