अशोक के प्रमुख शिलालेख । खोज किसने की । इनकी भाषा । अभिलेख की संख्या कितनी है ।अशोक के अभिलेख को सर्वप्रथम किसने खोजा / पढ़ा ।
हेलो दोस्तों मैं आज इस लेख में आपको अशोक के प्रमुख 14 शिलालेख के बारे में जानकारी देने जा रहा हूं।इस लेख में इनके बारे में समस्त जानकारी जैसे खोज किसने की, इनकी भाषा कौनसी है, इन अभिलेखों की संख्या कितनी है,अशोक के सभी अभिलेखों की किसने पढ़ा खोजा सभी प्रकार के अशोक से संबंधित प्रश्न के जवाब इस पोस्ट में आपको दे देने जा रहा हूं।
किन्तु उन्होंने देवानांपिय की पहचान सिंहल (श्रीलंका) के राजा तिस्स से कर डाली। किन्तु कालान्तर में यह तथ्य प्रकाश में आया कि यह उपाधि अशोक के लिए प्रयुक्त की गई है।
सभी काल के हिसाब से भारत का इतिहास अशोक के शिलालेख की खोज सर्वप्रथम 1750 ई. में पाद्रेटी फेंथैलर ने की थी।
साधारण परिभाषा में :
वह शिला या पत्थर जिस पर लेख खुदा या अक्षर उत्कीर्ण किये गए हो, उसे शिलालेख कहते हैं।
अशोक के शिलालेखों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है
दीर्घ शिलालेख, लघु शिलालेख
दीर्घ शिलालेखों की संख्या 14 है।
हृदय-परिवर्तन की बात कही गयी है। इसी में
पड़ोसी राजाओं का वर्णन है ।
हेलो दोस्तों मैं आज इस लेख में आपको अशोक के प्रमुख 14 शिलालेख के बारे में जानकारी देने जा रहा हूं।इस लेख में इनके बारे में समस्त जानकारी जैसे खोज किसने की, इनकी भाषा कौनसी है, इन अभिलेखों की संख्या कितनी है,अशोक के सभी अभिलेखों की किसने पढ़ा खोजा सभी प्रकार के अशोक से संबंधित प्रश्न के जवाब इस पोस्ट में आपको दे देने जा रहा हूं।
- भारत का इतिहास
- सिंधु घाटी सभ्यता
महान अशोक के प्रमुख शिलालेख
अशोक के शिलालेख प्राचीन इतिहास के साक्ष्य के रूप में महत्वपूर्ण स्रोत मैने गए हैं। इन शिलालेख से तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति का पता चलता है।इनमें प्रशासनिक व्यवस्था एवं धम्म से सम्बन्धित अनेक बातों का पता चलता है। अशोक के लेखों को पढ़ने में सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप ने सफलता प्राप्त की।किन्तु उन्होंने देवानांपिय की पहचान सिंहल (श्रीलंका) के राजा तिस्स से कर डाली। किन्तु कालान्तर में यह तथ्य प्रकाश में आया कि यह उपाधि अशोक के लिए प्रयुक्त की गई है।
सभी काल के हिसाब से भारत का इतिहास अशोक के शिलालेख की खोज सर्वप्रथम 1750 ई. में पाद्रेटी फेंथैलर ने की थी।
शिलालेख का अर्थ (मतलब) क्या होता है
शिलालेख का अर्थ उस प्रकार लेखों से है, जो पत्थर की पट्टियों या चट्टानों को खोदकर लिखे जाते है ।साधारण परिभाषा में :
वह शिला या पत्थर जिस पर लेख खुदा या अक्षर उत्कीर्ण किये गए हो, उसे शिलालेख कहते हैं।
अशोक के शिलालेखों की मुख्य भाषा
भारत में पाये जाने वाले प्राचीनतम ऐतिहासिक शिलालेख अशोक के शिलालेख हैं। जो कि मुख्य रूप से ब्राह्मी लिपि में लिखे गये हैं।किन्तु कुछ लघु शिलालेखों में आरमेइक तथा यूनानी लिपि पायी जाती है जैसे की शरेकुना (कन्धार) से प्राप्त शिलालेख में यूनानी तथा आरमेइक लिपि का प्रयोग किया गया है। यहां कुछ शिलालेख खरोष्ठी, आरमेइक, यूनानी लिपियों में भी लिखे गये हैं। जैसे कि शाहबाजगढ़ी तथा मानसेहरा शिलालेख खरोष्ठी लिपि में हैं।तथा अफगानिस्तान के लमगान से प्राप्त पुलेदारुत्त शिलालेख आरमेइक भाषा में है।अशोक के शिलालेखों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है
दीर्घ शिलालेख, लघु शिलालेख
दीर्घ शिलालेखों की संख्या 14 है।
अशोक के शिलालेख की संख्या कितनी हैं
शिलालेखों संख्या 14 है इन्हें चतुर्दश शिलालेख भी कहा जाता है। जो आठ विभिन्न स्थानों शाहबाजगढ़ी (पाकिस्तान के पेशावर जिले में), , कालसी (उत्तराखंड के देहरादून जिले में), मानसेहरा (पाकिस्तान के हजारा जिले में),गिरिनार (काठियावाड़), एर्रगुडि(आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में),धौली (ओडिशा के पुरी जिले), जौगढ़ (ओडिशा के गंजाम जिले में), सोपारा (महाराष्ट्र के थाना जिले में) से प्राप्त हुए।अशोक के प्रमुख 14 शिलालेख और उनमें वर्णन किया गया विषय नीचे है:
पहला शिलालेख
इसमें पशुबलि की निंदा की गयी है ।दूसरा शिलालेख
इसमें अशोक ने मनुष्य एवं पशु दोनों की चिकित्सा-व्यवस्था का उल्लेख किया है ।तीसरा शिलालेख
इसमें राजकीय अधिकारियों को यह आदेश दिया गया है कि वे हर पाँचवें वर्ष के उपरान्त दौरे पर जाएँ। इस शिलालेख में कुछ धार्मिक नियमों का भी उल्लेख किया गया है ।- भारत का इतिहास
- सिंधु घाटी सभ्यता
चौथा शिलालेख
इस अभिलेख में भेरीघोष की जगह धम्मघोष की घोषणा की गयी है ।पाँचवाँ शिलालेख
इस शिलालेख में धर्म-महामात्रों की नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है ।छठा शिलालेख
इसमें आत्म-नियंत्रण की शिक्षा दी गयी है ।सातवाँ एवं आठवाँ शिलालेख
इनमें अशोक की तीर्थ यात्राओं का उल्लेख किया गया है।नौवाँ शिलालेख
इसमें सच्ची भेंट तथा सच्चे शिष्टाचार का उल्लेखकिया गया है।दसवाँ शिलालेख
इसमें अशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें ।- भारत का इतिहास
- सिंधु घाटी सभ्यता
ग्यारहवाँ शिलालेख
इसमें धम्म की व्याख्या की गयी है ।बारहवाँ शिलालेख
इसमें स्त्री महामात्रों की नियुक्ति एवं सभी प्रकार के विचारों के सम्मान की बात कही गयी है।तेरहवाँ शिलालेख
इसमें कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक केहृदय-परिवर्तन की बात कही गयी है। इसी में
पड़ोसी राजाओं का वर्णन है ।
चौदहवाँ शिलालेख
अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया।- भारत का संपूर्ण इतिहास सभी टॉपिक
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